खबरों को खजाना

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खबरों को खजाना, काबिल को बना डाला डिफाल्टर, जो काबिल टीचर थी उस पर डिफाल्टर का तमगा लगाना मेरठ जिला के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भारी पड़ गया। मामला जब सीएम योगी तक पहुंचा तो अब महकमे के मेरठ के बेसिक शिक्षा अधिकारी लीपापोती व सफाई देने पर उतर आए हैं। जिला के बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की यह कारगुजारी अब भले ही उन पर भारी पड़ रही हो और खुद की गर्दन बचाने को एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश की जा रही हों, लेकिन जिस टीचर को डिफाल्टर साबित करने का प्रयास किया गया, उसको काफी मानसिक वेदना से होकर गुजरना पड़ा। दरअसल इस मामले की यदि बात की जाए तो टीचरों को परेशान करने के खेल में मामले से जुड़े अधिकारी अपनी ही गलती से हिट विकेट हो गए हैं।

यह है पूरा मामला:

मेरठ जनपद के विकास क्षेत्र रजपुरा के जूनियर हाई स्कूल रजपुरा में सहायक अध्यापिका शिप्रा कुशवाह से यह पूरा मामला जुड़ा है, जिन्हें कारगुजारियां दिखाते हुए बेसिक शिक्षा विभाग के मेरठी अधिकारियों ने बाकायदा एलानिया डिफाल्टर बना डाला। इसको लेकर शिप्रा कुशवाह निवासी गोरखपुर  ने 8 जून 2023 को जिलाधिकारी काे पत्र लिखकर बताया कि साल 2015 से वह जूनियर हाईस्कूल रजपुरा में बतौर सहायक शिक्षक कार्यरत हैं। जिस वक्त उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था, उस समय स्कूल में मात्र 15 बच्चे थे। सकारात्मक छवि, शैषणिक योग्यता व दृढ निश्चय का ही यह परिणाम है कि आज इस स्कूल में सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। इसके बावजूद डिफाल्टर लिस्ट में नाम को शामिल इसलिए कर दिया गया ताकि मेरी छवि नारात्मक व धूमिल हो जाए। जिलाधिकारी को प्रेषित पत्र में शिप्रा कुशवाह ने बेसिक शिक्षा के मेरठी अधिकारियों पर क्षेत्रवाद से ग्रसित होने के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यह सब उनके साथ तब किया गया जब वह लगातार परिश्रम से स्कूल में अभूतपूर्व सुधार लाने में सफल रही हैं।

सेलरी पर बैठाया पहरा:

शिप्रा कुशवाह ने बताया कि 25- दिसंबर-2022 को पोर्टल बंद होने की स्थिति में आकस्मिक अवकाश हेतु विद्यालय इंचार्ज इरम जहां, एसएमसी अध्यक्ष व खंड विकास अधिकारी को लिखित तौर पर सूचना के बावजूद अनुपस्थित मानकर शिप्रा का एक दिन यानि 25 दिसंबर 022  का वेतन रोक दिया गया। अगले दिन डायट की गीता चौधरी ने स्कूल का निरीक्षण किया। उस दिन शिप्रा अवकाश पर थीं, लेकिन गीता चौधरी ने उन्हें अनुपस्थित दर्शा दिया और बाकि रही सही कसूर खंड शिक्षा अधिकारी कमलराज ने सेलरी काट कर पूरी कर दी।

नियमावली रद्दी की टोकरी में

आरोप है कि परेशान करने पर उतारू बेसिक शिक्षा विभाग के मेरठी अधिकारियों ने विभाग के कायदे कानून भी रद्दी की टोकरी में फैंक दिए। शिप्रा का कहना है कि नियमानुसार मासिक कार्यकाल हर माह की बीस तारीख को पूरा हो जाता है। इस प्रकार माह दिसंबर में वेतन रोके जाने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। यदि वेतन काटना भी था तो माह जनवरी में काटते। हालांकि वह तो बाकायदा सूचित करने के बाद ही अवकाश पर थीं। इतना ही नहीं परेशान करने के चलते ही  इसके बाद माह फरवरी में एक बार फिर एक दिन का वेतन रोक दिया गया। इस संबंध में जब अधिकारियों से संपर्क किया तो उन्होंने निस्तारित करते हुए सफाई दी कि यह त्रुटिवश हो गया।

गोरखपुर से एप्रोच के बाद सुनवाई:

शिप्रा का कहना है कि करीब छह माह से जब लगातार उन्हें परेशान किया जाता रहा तो उन्होंने अपने गृह जनपद गोरखपुर के रहने वाले सूबे के सीएम तक अपनी बात पहुंचायी, उसके बाद ही वेतन बहाली का आदेश जारी किया जा सका। पीड़ित टीचर ने जिलाधिकारी से खंड शिक्षा अधिकारी रजपुरा के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आग्रह इसलिए किया ताकि भविष्य में किसी अन्य टीचर को इस प्रकार के मानसिक अवसाद न गुजरना पड़े। दरअसल शिप्रा गोरखपुर के महाराजा प्रताप इंटर कालेज में पढ़ी हैं जो महाराज के ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने गोरखपुर मठ से भी काल कराया था।

डीएम को रिपोर्ट का इंतजार:

बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से इस मामले में स्पष्टीकरण देने के लिए खंड़ शिक्षा अधिकारी कमल राज को 14 जून को 2022 को पत्र भेज कर यह भी अवगत कराया था कि इस मामले को लेकर गंभीर जिलाधिकारी ने फाइल पुटअप करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन जिला के बेसिक शिक्षा अधिकारी डीएम के आदेशों को लेकर कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 20 जून की सुबह दस बजे तक भी यह खंड़ शिक्षा अधिकारी कार्यालय से संबंधित प्रकरण को लेकर स्पष्टीकरण नहीं भेजा जा सका था।

वर्जन

रिश्वत मांगी गयी:

 सेलरी रोके जाने की जानकारी मिलने पर जब वह खंड़ शिक्षा अधिकारी से मिलने गयी तो उनसे रिश्वत की मांग की गयी। निदंनीय व आपत्तिजनक व्यवहार किया गया। इसी के चलते उन्हें शिकायत करनी पड़ी। अपनी परेशानी सीएम योगी यानि महाराज तक पहुंचानी पड़ी। इस मामले को लेकर महिला आयोग, थाना, सीएम कार्यालय, डीएम व सीडीओ समेत कई जगह शिकायत कर कार्रवाई का आग्रह किया है।

-शिप्रा कुशवाह

जूनियर हाईस्कूल रजपुरा के निरीक्षण के बाद ही यह सारा घटनाक्रम हुआ। कोई गलत मंशा नहीं। जिलाधिकारी के आदेश पर बेसिक शिक्षा अधिकारी मेरठ ने जो स्पष्टीकरण मांगा है उसको 21 जून को भेज दिया जाएगा।

-कमलराज खंड़ शिक्षा अधिकारी रजपुरा-मेरठ

इस मामले की फाइल 8 जून तक पेश किए जाने के जिलाधिकारी के आदेश के अनुपालन में देरी को लेकर जब बेसिक शिक्षा अधिकारी सुदर्शन लाल से सवाल के लिए उनके मोबाइल पर काॅल किया गया तो दूसरी ओर से काल रिसवी नहीं की गयी।

गले की बनेगा फांस प्रकरण

शिप्रा कुशवाह के दो बार एक-एक दिन की सेलरी रोके जाने की कारगुजारी लगता है कि मेरठ के बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों के गले की फांस बने जा रहा है। शिप्रा ने बताया कि महिला आयोग में जो शिकायत की गयी है, उसका संज्ञान ले लिया गया है। इतना ही नहीं महिला आयोग ने इस संबंध में जिला प्रशासन व संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण भी मांगा है। इसके अलावा एक जांच पुलिस क्षेत्राधिकारी कर रहे हैं। उन्होंने आरोपियों पर एफआईआर के लिए थाने में भी तहरीर दी है। इस मामले को लेकर शिप्रा कुशवाह ने जितने बड़े स्तर पर लिखा पढ़ी की है, उसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मुश्किल बढ़ना तय है। इतना ही नहीं इस मामले में आरोपियों को लीगल नोटिस भी जारी किया है जिसमें मानहानि की बात कही गयी है।

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बीएसए के लिपिक की आय से अधिक संपत्ति की जांच शुरू, बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के एक लिपिक प्रदीप बंसल की आय से अधिक संपत्ति मामले में शासन के निर्देश पर जांच शुरू कर दी गयी है। इससे पहले भी बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय का यह लिपिक नियुक्ति के एक साल के भीतर टंकड़ यानि टाइपिंग की परीक्षा उत्तीर्ण न किए जाने के मामले की जांच का सामना कर रहे हैं। बीएसए कार्यालय के इस लिपिक की शासन के आईजीआरएस पोर्टल पर विगत 10 जून को की गई थी। दस जून को प्रेषित इस पत्र में राधे श्याम गौड़ नाम के शख्स ने शासन को अवगत कराया है कि विगत तीन सालों से बीएसए कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की लगातार शिकायत करता आ रहा है। उसने यह भी अवगत कराया है कि उसकी शिकायतों पर संज्ञान लेकर पूर्व में शासन स्तर से जितनी भी जांच सचिव बेसिक शिक्षा परिषद प्रयागराज कार्यालय से आदेशित की गयी हैं उन सभी में मेरठ स्थित मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक कार्यालय की मार्फत बीएसए कार्यालय से जो जवाब तलब किया गया है, वह झूठ का पुलिंदा के अलावा कुछ भी नहीं है। जांच के नाम पर जो भी रिपोर्ट भेजी गयी है उसमें तमाम साक्ष्यो की अनदेखी की गयी है। शिकायत करने वाले से जांच करने वाले अधिकारी ने जो आरोप लगाए गए हैं उनके संदंर्भ में साक्ष्य तक नहीं मांगे न ही उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया। शिकायत करने वाले का आरोप है कि आय से अधिक संपत्ति मामले में उनकी शिकायत के संदर्भ में जो जांच की गयी है और मामले को निस्तारित बता दिया गया है, वह नितांत कोरा झूठ है। साथ ही यह भी अवगत कराया गय है कि बीते तीन साल में बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में बीएसए के रूप में कार्यरत रहे इकबाल अहमद, सतेन्द्र ढाका व योगेन्द्र कुमार का कार्यकाल में भ्रष्टाचार पराकाष्ठा की हद तक पहुंच गया। शिकायतकर्ता ने उसके संबंध में तमाम साक्ष्य होने का दावा किया है। साथ ही यह भ आरोप है कि भ्रष्टाचार संबंधित जो भी जांच शासन से वाया मेरठ स्थित मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक कार्यालय की मार्फत बीएसए कार्यालय आती हैं उन सभी को प्रदीप बंसल ही रिसीव करते हैं। कई बार तो शिकायत की जांच संबंधित पत्र कार्यारत बीएसए तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। इसी संबंध में एक पत्र विगत 23 फरवरी 2023 को भी सचिव बेसिक शिक्षा परिषद प्रयागराज कार्यालय प्रषित किया गया था। लेकिन जांच के नाम पर केवल लीपापोती भर की गयी।

रमेश गिल भी कर चुके हैं शिकायत:

आय से अधिक संपत्ति मामले की एक शिकायत सिटी चर्च जूनियर हाई स्कूल के प्रबंधक/सचिव रमेश गिल पूर्व प्रधानाचार्य सेंट जोन्स भी कर चुके हैं। उन्होंने अपनी शिकायत में उन सभी संपत्तियों को ब्योरा बिस्तार से दिया है जो शिकायती पत्र में प्रदीप बंसल की बतायी गयी हैं, लेकिन वो संत्तियां रिश्तेदारों या नातेदारों अथवा परिचितों के नाम पर खरीदी गयी हैं।

जिलाधिकारी स्तर पर भी जांच:

शिकायत करने वाले राधे श्याम ने जिलाधिकारी को एक मामले से अवगत कराया था। जिसके बाद एसीएम सिविल लाइन कार्यालय से भी आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच की जानकारी राधे श्याम ने दी है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि जिलाधिकारी स्तर से करायी जा रही उस जांच का स्टेटस क्या है। वहीं दूसरी ओर एससीएम कार्यालय से पता चला है कि उक्त जांच के संबंध में 21 जनवरी 2023 को आराेपों के संबंध में बीएसए व प्रदीप बंसल से स्पष्टीकरण मांगा गया है।

आईजीआरए पाेर्टल का बदला स्टेटस

इस संवाददाता ने जब शनिवार की सुबह उक्त मामले का स्टेटस जानने के लिए बताए गए नंबर का स्टेटस की जांच की तो उस समय आईजीआरए मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक कार्यालय में जांच का स्टेटस बता रहा था, लेकिन शनिवार की दोपहर करीब तीन बजे के बाद इसका स्टेटस बीएसए  कार्यालय को जांच कर रिपोर्ट मांगे जाने का स्टेट बताया गया।

वर्जन 

बीएसए कार्यालय के लिपिक के संबंध में कई शिकायतें पहले भी आयी हैं। उन सभी की जांच कर रिपोर्ट शासन को भेज दी गयी है। चार से पांच दिन पहले शासन से कोई जांच मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक कार्यालय को भेजी गयी हो उसकी जानकारी अभी मुझे नहीं है।

दिनेश कुमार यादव

मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक मेरठ


सीडी न बन जाए अफसरों की मुसीबत, सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक सीडी मेरठ मंडल के खाद्यान विभाग के उच्च पदस्थ अफसरों के लिए मुसीबत बन सकती है। जिन अफसरों को लेकर सीडी वायरल हो रही है उनमें एक बड़ी महिला अफसर भी हैं शासन ने जिनको फूड की जिम्मेदारी से मुक्त कर पावर में भेज दिया है। यह सीडी सबूत के साथ 12 जून को आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन को सौंपी गयी है। साथ ही मांग की गयी है कि इसकी फारेंसिक जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई की जाए। इस पूरे मामले का खुलासा सजग प्रहरी के कुलदीप शर्मा मेरठ ने लखनऊ जाकर आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन के समक्ष साक्ष्यों के साथ दिए गए एक शिकायती पत्र के जरिये किया है। बकौल कुलदीप शर्मा इस सीडी में कई सनसनी खेज बातों से पर्दा उठा है। उन्होंने यहां तक कहा कि कई बातें इसमें बेहदआपत्तिजनक भी हैं जो शासन की सेवा नियमावली का भी गंभीर उल्लंघन हैं। कुलदीप शर्मा काे यह सीडी बतौर साक्ष्य रमेश चंद पुत्र राम सिंह डिवाई मोहल्ला महादेव बुलंदशहर ने साक्ष्यों के साथ उपलब्ध करायी। इसको देखने के बाद ही आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन से मामले को एक की मार्फत अवगत कराया।

कुल 11 वीडियो सभी आपत्तिजक

आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन तक इस मामले को ले जाने वाले कुलदीप शर्मा ने बताया कि इस सीडी में कुल 11 वीडियो हैं सभी बेहद आपत्तिजनक हैं। आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित पत्र में उन्होंने कहा है कि एक वीडियो में जिला खाद्य विपणन अधिकारी जेया करीम और राहुल गौड कनिष्ठ सहायक से अति गोपनीय सूचनाओं का वाट्सअप के माध्यम से आदान-प्रदान करने की चैटिंग दिखी जा सकती है। जैसे टेंडरों के लेनदेन में घुमा फिराकर वार्ता, डीएम बुलंदशहर एवं एडीएम बुलंदशहर से हस्ताक्षर कराए जाने वाले पत्रों को राहुल गौड को भेजा जाना, जनवरी 2022 में प्रधानमंत्री के नाम पर अवैध उगाही/मासिक वसूली जैसे संवेदनशील प्रकरण में कथित मुख्य आरोपी राहुल गौड को सूचनाएं प्रेषित करना। राहुल गौड के अनुरूप ही कार्यवाही करना आपत्तिजनक पाया गया है।

महिला अफसर का पत्र में उल्लेख

आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन को जांच कराए जाने के लिए जो पत्र कुलदीप शर्मा ने सौंपा है उसमें मेरठ की एक बड़ी महिला अफसर का भी जिक्र है। आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन को अवगत कराया गया है कि तत्कालीन अपर आयुक्त और संभागीय खाद्य नियंत्रक मेरठ द्वारा जिला खाद्य विपणन अधिकारी बुलंदशहर जेया करीम से वाट्सअप पर सुमित शर्मा कनिष्ठ सहायक पर एससी/एसटी एक्ट लगाने तथा सेफ जोन खेलते हुए मौका मिलने पर सुमित शर्मा पर हमला करने की वार्ता की जा रही है, जो उच्चाधिकारी व कर्मचारियों द्वारा अपने ही विभाग कर्मचारी के प्रति साजिश सरीखा नजर आता है, इसलिए जांच जरूरी हो जाती है। पत्र में आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन मांग की गयी है कि सुमित शर्मा को लेकर जो कुछ वायरल सीडी में नजर आ रहा है उसकी जांच किसी स्वतंत्र ऐजेन्सी से कराया जाना अनिवार्य है।

जातिगत आधार पर वाट्सअप ग्रुप

आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन को दिए गए पत्र में सबसे ज्यादा आपत्ति जातिगत आधार पर बनाए गए वाट्सअपर ग्रुप की जांच व उससे जुड़े अफसरों की भूमिका की भी फारेसिंक जांच कराए जाने की मांग की गयी है। जातिगत आधार पर बनाए गए वाट्सअप ग्रुप की जांच को एसआईटी का गठन किए जाने की मांग भी आयुक्त खाद्य एवं रसद उत्तर प्रदेश शासन से की गयी है। कुलदीप शर्मा ने पत्र में कहा है कि क्योंकि यह प्रथम दृष्टया सरकारी योजनाएं जो प्रधानमंत्री के नाम से संचालित हैं, में कथिततौर पर भ्रष्टाचार व कुछ कर्मचारियों को लक्षित कर उनके खिलाफ अपराधिक षडयंत्र नजर आता प्रतीत होता है। इसीलिए पूरे प्रकरण की जांच अनिवार्य है। साथ ही दोषियों के खिलाफ अपराधिक मुकदमों की जरूरत पर भी बल दिया गया है।

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फीस घोटाला ही नहीं-नियुक्तियां भी हैं जांच के दायरे में, मेरठ के परतापुर स्थित डीएन पॉलीटैक्निक में स्टूडेंट की फीस के 9 करोड़ खुर्दबुर्द किए जाने का ही मामला नहीं है, बल्कि उससे भी बड़ा मामला तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर छह नियुक्तियां किए जाने का मामला है। 9 करोड़ रुपए स्टूडेंट की फीस के मामले की शासन के आदेश पर जांच कर रही संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला मेरठ से शासन की अनुमति लिए बगैर की गई उक्त छह नियुक्तियों की भी जांच कराए जाने का आग्रह फीस के 9 करोड़ रुपए खुर्दबुर्द किए जाने के मामले को शासन के संज्ञान में लाने वाले गुरूचरण बिल्टोरिया प्रांतीय अध्यक्ष सजग प्रहारी उत्तर प्रदेश ने पत्र लिखकर की है। इस संबंध में संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को एक पत्र भी भेजा गया है। पत्र में छह नियुक्तियों का भी विस्तार से उल्लेख किया गया है। साथ ही मामले की जानकारी शासन को भी दी गयी है।

शासन से अनुमोदित नहीं:

डीएन पॉलीटैक्निक परतापुर मेरठ में उक्त जिन 23  नियुक्तियों (छह प्रवक्ता व छह तृतीय श्रेणी के पद ) की बात जांच समिति के अध्यक्ष संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला के समक्ष प्रमुखता से उठायी गयी है, उनके संबंध में पत्र में कहा गया है कि 20 मार्च 2016 को की गयीं इन नियुक्तियों के लिए शासन से अनुमोदन तक नहीं लिया गया। इसका साक्ष्य भी दिया गया है जिसमें अध्यक्ष प्रबंध समिति के अनुमोदन न होने का प्रपत्र नत्थी किया गया है। यह भी कहा गया है कि तत्कालीन अध्यक्ष प्रबंध समिति दयानंद गुप्ता द्वारा विज्ञापन कराया गया था। उक्त तिथि में अध्यक्ष प्रबंध समिति शासन से अनुमोदित न होते हुए भी ये छह नियुक्ति कर ली गयीं। इन 12 नियुक्तियों की भी जांच कराए जाने का आग्रह किया गया है। साथ ही शासन को भी अवगत कराया गय है।

कालातीत है प्रबंध समिति:

डीएन पॉलीटैक्निक परतापुर की प्रबंध समिति अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 30 जून 2020 को समाप्त हो गया था। संस्था के प्रबंध तंत्र व प्रधानाचार्य के विरूद्ध नियुक्तियों में कथित तौर पर भ्रष्टाचार किए जाने के कारण अध्यक्ष प्रबंध समिति का कार्यकाल आज तक नहीं बढ़ाया जा सका। मेरठ स्थित डिप्टी रजिस्ट्रार फर्म्स सोसाइटीज मेरठ से आरटीआई के तहत मांगी गयी जानकारी में सबसे चौंकाने वाला व भयंकर खुलासा यह हुआ है कि साल 2010 से 2023 तक प्रबंध कार्यकारिणी डिप्टी रजिस्ट्रार फार्म्स सोसाइटी के यहां रजिस्टर्ड नहीं है। सोसाइटी के संशोधित बायलाज सन 1982 की धारा की धारा 11 के अनुसार अध्यक्ष/सदस्य प्रबंध सोसाइटी कालातीत होने पर कोई भी प्रशासनिक व वित्तीय कार्य नहीं कर सकती।

ताक पर कायदे कानून-

संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को प्रेषित पत्र में आरोप है कि डीएन पॉलीटैक्निक की प्रबंध समिति कालातीत होने के बावजूद उक्त के द्वारा तमाम प्रशासनिक व वित्तीय कार्य किए गए, जो कि शासन की नियमावली के मुताबिक पूरी तरह से अवैध हैं तथा कालीतीत अवधि में जो भी वित्तीय व प्रशासनिक निर्णय लिए गए हैं वो सभी निरस्त किए जाने चाहिए।  पत्र में कहा गया है कि शासन से प्राप्त सूचना के तहत अध्यक्ष का कार्यकाल न बढ़ाने का पत्र, फर्म्स सोसइटी द्वारा जारी पत्र एवं डीएन सोसाइटीज के संशोधित बायलाज की भी जानकारी संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को दी गयी है।

जो पद सृजित नहीं उस पर नियुक्ति कैसे:

डीएन पॉलीटैक्निक के प्रधानाचार्य वीरेन्द्र आर्य की जो नियुक्ति है, उसका मूल पद प्रवक्ता इलैक्ट्रानिक विद्युत विभाग है, जबकि यह पद शासन से आज तक सृजित नहीं।संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को प्रेषित पत्र में सवाल किया गया है कि जब शासन से पद ही सृजित नहीं है तो उस पर वीरेन्द्र आर्य की नियुक्ति किस आधार पर कर दी गयी। जिस दौरान इनकी  नियुक्त प्रवक्ता इलैक्ट्रानिक पद पर की गयी उस समय  विद्युत विभाग के तीनों पद भरे हुए थे। इसी वजह से कहा जा रहा है कि पद सृजित न होते हुए भी नियुक्ति किस आधार पर कर दी गयी। आरोप है कि वीरेन्द्र आर्य ने प्रवक्ता पद का अनुचित लाभ पाकर ही प्रधानाचार्य का पद हासिल किया, जिसकी जांच की जानी जरूरी है। इससे संबंधित संयुक्त निदेशक एसएस राम संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला की जांच रिपोर्ट 1886/जांच डीएन पॉलीटैक्निक दिनांक 21-जुलाई- 2012 से भी पुष्टि की जा सकती है। संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को जांच रिपोर्ट भी प्रेषित की गयी है।

संस्था कालातीत तो प्रशासक की नियुक्ति का रास्ता साफ:

संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिम क्षेत्र दौराला को अवगत कराया गया है कि देवनागरी पॉलीटैक्निक परतापुर मेरठ की भूमि, भवन एवं सभी साज सज्जा सरकारी है। प्रबंध तत्र का इस संस्था में कोई योदान नहीं। डीएन सोसाइटी के बॉयलॉज एवं विनियमावली 1996 के अनुसार संस्था के चेयरमैन पद पर बाहर का या राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि या सोसाइटी सदस्य हो। इसलिए कालीतीत प्रबंध तंत्र के स्थान पर सरकार का प्रतिनिधि या प्रशासक नियुक्त किए जाने की सिफारिश की जानी चाहिए।

तथ्यों व साक्ष्यों के आलोक में जांच  व कार्रवाई कर दोषियों के विरूद्ध उच्चाधिकारियों को विनियमावली 1996 एवं शासनादेश के अनुसार कार्यवाही की सिफारिश की जाए।  इन तमाम साक्ष्यों से उप सचिव उत्तर प्रदेश शासन व सीएम योगी को भी अवगत कराया गया है।

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फ्लैट ही नहीं मकान भी अवैध, मेरठ छावनी के वेस्ट एंड रोड बंगला नंबर 210-ए में केवल छह फ्लैट ही अवैध रूप से नहीं बनाए गए हैं, बल्कि धन शाकुंतलम नाम से जो आवासीय निर्माण किया गया है, वह भी पूरी तरह से अवैध है। छावनी परिषद मेरठ से उसका कोई नक्शा पास कराया गया हो ऐसी जानकारी नहीं मिली है। फ्लैट के साथ-साथ यह आवासीय भवन धन शाकुंतलम के भी अवैध होने के बावजूद कैंट बोर्ड प्रशासन बजाए इस पर जेसीबी चलाने के चुप्पी साधे बैठा है। ध्वस्तीकरण के सवाल पर इस चुप्पी की वजह क्या है यह तो पता नहीं लेकिन अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई का दम भरने व दावा करने वाले कैंट बोर्ड प्रशासन की करनी व कथनी में कितना अंतर है, यह जरूर स्पष्ट हो गया है। कैंट बोर्ड की जेसीबी या फिर हथोड़ा गैंग केवल वहीं पर कार्रवाई करता नजर आता है जहां सेटिंग से गेटिंग न होने के मामले होते हैं। लेकिन जहां सेटिंग के साथ-साथ गेटिंग भी हो जाती है, वहां कार्रवाई करना तो दूर की बात जेसीबी के सवाल पर कैंट प्रशासन के तमाम अफसर भागते नजर आते हैं, वर्ना कोई वजह नजर नहीं आती कि वेस्ट एंड रोड बंगला 210-ए धन शाकुंतल पर बुलडोजर न चले। धन शाकुंतल भी अवैध है और इसके पीछे सर्वेट ह पक्वार्टर तोड़कर बनाए गए  छह फ्लैट भी अवैध हैं, लेकिन इन के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कब होगी यह सवाल कैंट प्रशासन को काटता नजर आता है।  210-ए के छह फ्लैट  की यदि बात की जाए तो करीब तीस साल पहले अवैध रूप से बनाए गए छह फ्लैट जो लगभग सतरह से बीस लाख की कीमत पर बेचे गए थे और जिनकी सर्किल रेट से आज की कीमत अस्सी लाख से एक करोड़ तक आंकी जा रही है,  उन अवैध फ्लैटों को ध्वस्त करना कैंट बोर्ड मेरठ के अफसर भूले बैठे हैं। तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर बनाए गए ये फ्लैट कैंट बोर्ड मेरठ के तत्कालीन अधिकारियों के भ्रष्टाचार और भारत सरकार के बंगलों को खुर्दबुर्द किए जाने का सबसे शर्मनाक सबूत है। नवाब की कोठी के नाम से मशहूर इस बंगले में तीन भूमाफियाओं ने इन छह फ्लैटों का अवैध निर्माण किया, चंद सिक्कों की लालच में यह छह फ्लैट बनाए गए। इसमें जिनका नाम आज ली कैंट बोर्ड का स्टाफ ( जिनमें से ज्यादातर रिटायर्ड हो चुके हैं) बताते हैं कि अनिल जैन, जय प्रकाश अग्रवाल और सुनील सिंहल उर्फ नीलू ने इनका अवैध निर्माण कराया था। तीनों ने एक-एक फ्लैट अपने पास रख लिए थे। बाकि को बेच दिया गया। नवाब के बंगले कैसल व्यू में अवैध रूप से फ्लैट बनाने के इस खेल में कैंट बोर्ड मेरठ के तत्कालीन अफसरों  का खास रोल बताया जाता है। यहां तक सुना जाता है कि इन छह फ्लैट के लिए काफी हैडसम डीलिंग की गयी थी। ऐसा नहीं कि कैंट बोर्ड ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। कार्रवाई कुछ इस अंदाज में की गयी कि दो कदम आगे और चार कदम पीछे। नोटिस भी दिए गए और चालान भी किए गए, लेकिन आरोप है कि बाद में जब सेटिंग के बाद गेटिंग हो गयी तो जैसा कि आमतौर पर इस प्रकार के मामले में होता है, 210-ए के इन अवैध फ्लैटों की फाइल पर धूल चढ़ती चली गयी। कैंट बोर्ड में बतौर अध्यक्ष कई कमांडर आए, सीईओ आए और तब से अब तक इंजीनियरिंग सेक्शन में में आमूलचूक परिवर्तन हो चुका है, लेकिन इस बंगले में अवैध रूप से बनाए गए फ्लैटों की कोई भी धूल झाड़ने की हिम्मत नहीं जुटा  पा रहा है या फिर सवाल यही पूछ लिया जाए कि अवैध फ्लैट बनाने वालों से कैंट बोर्ड के अफसरों का यह रिश्ता क्या कहलाता है।

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क्यों पैरवी से भाग रहा है बीएसए आफिस, डीआईओएस ( जिला विद्यालय निरीक्षक सहारनपुर) के कथित फर्जी हस्ताक्षर से कूटरचित कर तैयार कराए गए प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाने वाली पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कू मोरीपाड़ा मेरठ में प्रधानाध्यापिका के पद पर नौकरी पानी वाली प्रियंका शर्मा निवासी मालीवाडा मेरठ के प्रकरण में बीएसए (बेसिक शिक्षा अधिकारी आफिस) अपने ही आदेश के खिलाफ लाए गए स्टेट की हाईकोर्ट में पैरवी से क्यों भाग रहा है। प्रधाध्यापिका पद पर जिस नियुक्ति को कथित रूप से फर्जी प्रमाण पत्र को कुटरचित तरीके से तैयार कर हासिल किए जाने की बात सिद्धांत रूप से स्पष्ट हो चुकी है, उस मामले में को लेकर अब बीएसए कार्यालय का दो कदम आगे चार कदम पीछे होने के चलते ही तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।

यह है पूरा मामला:-

प्रियंका शर्मा पत्नी नितिन शर्मा व पुत्री बिजेन्द्र कुमार शर्मा निवासी 101 मालीवाडा मेरठ की नियुक्ति प्रधानाध्यापिका पद पर चयन समिति पीएबी गर्ग्स जूनियर हाई स्कूल मोरीपाड़ा की विगत 11 जुलाई 2016 के आधार पर बीएसए मेरठ से पत्रांक/प्रबंध/नियुक्ति/8931-33-2016-17 दिनांक 23 जुलाई 2016 के द्वारा की गयी थी। इसके बाद प्रियंका ने कार्यभार संभाल लिया था। नियुक्ति के समय शैक्षिक योग्यता के सबूत के ताैर पर बीएबीएड, यूपीटैक जूनियर स्तर एवं प्राइमरीस्तर की थी तथा प्रधानाध्यापिका के पद की योग्यता पांच वर्ष की अनिवार्यता के आधार पर केबी हॉयर सैकेड्री स्कूल (खुशनूमा बेगम हॉयर सैकेड्री स्कूल) माध्यमिक शिक्षा उत्तर प्रदेश द्वारा मान्यता प्राप्त हयात कालोनी गली नं. 4 खाता खेड़ी सहारनपुर उत्तर प्रदेश के पत्रांक  3151/2016 –  3 मार्च 2016 के द्वारा निर्गत अनुभव प्रमाण पत्र जो नियुक्ति के समय दाखिल किया गया था उसमें प्रियंका शर्मा के 1 जुलाई 2009 से 9 मार्च 2015 तक अस्थायी सहायक अध्यापिका के तौर पर केवी हॉयर सैकेड्री खाता खेड़ी सहारनपुर पढ़ाने की बात को जांच के बाद कथित तौर पर फर्जी व कुटरचित पाया गया।

शासन में शिकायत करायी गयी दर्ज:

कथित कुटरचित प्रमाण पत्रों से नौकरी पाने का मामला पकड़ने का काम तत्कालीन प्रबंधक डा. राधे श्याम गौड़ एडवोकेट ने किया और इसकी शिकायत सीएम, आयुक्त मेरठ मंडल, जिलाधिकारी मेरठ, बेसिक शिक्षा अधिकारी व वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा मेरठ से की गयी।

डीआईओएस सहारनपुर ने खोली पोल:

कथित कुटरचित प्रमाण पत्रों के बूते पर प्रधानाध्यापिका की नौकरी पाने वाली प्रियंका शर्मा के इस कारनामे की पोल खोलने का काम भी डीआईओएस सहारनपुर ने किया। दरअसल हुआ यह कि गिरीश चंद्र गुप्ता निवासी जे-40 शास्त्रीनगर मेरठ ने विगत 24 मार्च 2018 को आरटीआई के तहत प्रिंयका शर्मा के संबंध में डीआईओएस सहारनपुर से जो सूचनाएं मांगी गयी थीं, उनसे सारे खेल का खुलासा हो गया था। बकौल डा. राधे श्याम एडवोकेट आरटीआई के जवाब मे डीआईओएस सहारनपुर ने गिरीश चंद्र गुप्ता को  अवगत कि प्रियंका शर्मा का केवी हॉयर सैकेंड्री में अध्यापिका का कोई प्रमाण पत्र प्रतिहस्ताक्षरित नहीं किया गया है।

कमिश्नर को कराया अवगत:

डीआईओएस सहारनपुर का आरटीआई का जो उत्तर प्रियंका शर्मा के प्रमाण पत्रों को लेकर मिला, उसकी जानकारी गिरीश चंद गुप्ता ने कमिश्नर मेरठ मंडल को देते हुए मामले में कार्रवाई की मांग की। मामले का संज्ञान लेते हुए मंडलीय साहयक शिक्षा निदेशक बेसिक प्रथम मेरठ मंडल कार्यालय  ने एडीएम प्रशासन मेरठ से प्रियंका शर्मा प्रकरण में रिपोर्ट तलब कर ली। इसके बाद 24 सितंबर 2018 को चरन सिंह खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय एवं सूर्यकांत गिरी खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नगर मेरइ को जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच के आदेश जारी किए गए।

केवी हायर सैकेंड्री ने किया प्रियंका का बचाव:

प्रियंका शर्मा के जिन प्रमाण पत्रों को डीआईओएस सहारनपुर ने कुटरचित करार दिया था, उसको केवी हॉयर सैकेड्री स्कूल ने एक सिरे से खारिज करते हुए प्रियंका शर्मा के अनुभव प्रमाण पत्रों को सत्य करार दिया, लेकिन डीआईओएस सहारनपुर के प्रति हस्ताक्षर करने के संबंध में कोई स्पष्ट आख्या नहीं दी। केवी हॉयर सैकेड्री ने जो रिपोर्ट पूरे प्रकरण में भेजी उसको केवल प्रिंयका शर्मा का बचाव करने का प्रयास भर माना गया।

बीएसए ने नियुक्ति को किया शून्य:

इस पूरे मामले का पर्दाफाश होने के बाद विगत 6 अगस्त 2020 को बीएसए मेरठ ने प्रियंका शर्मा द्वारा नियुक्ति के समय प्रस्तुत प्रमाण पत्रों को फर्जी मानते हुए उनकी नियुक्ति के अनुमोदन को शून्य कर दिया तथा पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल मोरीपाड़ा के तत्कालीन प्रबंधक डा. राधे श्याम गौड़ को प्रियंका शर्मा की नियुक्ति तत्काल प्रभाव से समाप्त कर बीएसए कार्यालय को अवगत कराए जाने के आदेश दिए थे। दरअसल गिरीश चंद गुप्ता ने जो शिकायत की थी, उसकी जांच कराने के बाद ही तत्कालीन बीएसए ने प्रियंका शर्मा को लेकर आदेश जारी किए थे।

हाईकोर्ट से प्रियंका को राहत व

बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के 6 अगस्त 2020 के आदेश के खिलाफ प्रियंका शर्मा हाईकोर्ट में पहुंच गयीं। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने उन्हें राहत प्रदान करते हुए हाईकोर्ट ने बीएसए सहारनपुर से प्रतिहस्ताक्षरित को अवगत कराने को आदेश भी जारी किया। हाईकोर्ट के आदेश को प्रियंका शर्मा के लिए राहत का पिटारा मनाया गया।

एक ओर धमाकेदार खुलासा:

वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट से मिली राहत के बाद प्रियंका प्रकरण में एक अन्य धमाकेदार खुलासा गिरीश चंद्र गुप्ता ने केवी हॉयर सैकेंड्री स्कूल खाता खेडी सहारनपुर के अनुभव प्रमाण पत्र को फर्जी बताने की अपनी बात को दोहराते हुए प्रियंका शर्मा के भगवती कालेज सिवाया रूड़की रोड में बतौर टीचर कार्य करने का खुलासा कर डाला। इसके संबंध में उन्होंने आरटीआई द्वारा मांगी गयी जानकारी को आधार बनतो हुए जानकारी दी कि भगवती कालेज ऑफ एजेकेशन ने 1 सितंबर से 10 जुलाई 2015 तक प्रियंका शर्मा के शिक्षिका के रूप में उनके विद्यालय में सेवाएं देने की जानकारी दी। इसके एवज में प्रियंका शर्मा को वेतन के रूप मे भुगतान उनके खातों में किया गया। गिरीश गुप्ता ने यह भी खुलासा किया कि प्रियंका को लेकर शुरू में जब उन्होंने पत्राचार किया तो भगवती कालेज ने सात माह तक उसका कोई उत्तर नहीं दिया, जिसके बाद उन्हें आरटीआई दायर करनी पड़ी जिसमें प्रियंका शर्मा के बतौर शिक्षिका सेवाएं देने की बात स्वीकार की गयी। गिरीश चंद का तर्क है कि एक ही कार्यकाल में प्रियंका दो विद्यालयों मसलन भगवती कालेज सिवाया और केवी हाॅयर सैकेड्री सिवाया में कैसे सेवा दे सकती हैं। यदि भगवती कालेज ने चैक द्वारा बैंक की मार्फत भुगतान किया है तो फिर केवी हॉयर सैकेड्री में शिक्षण कार्य को लेकर जाे भी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए जा रहे हैं वह स्वत: ही कुटरचित प्रमाणित हो जाते हैं। इससे भी बड़ा खुलासा पूरे मामले में राधे श्याम गौड़ ने यह किया कि नियुक्ति के लिए जो कमेटी बनायी गयी थी उसमें प्रियंका शर्मा के रिश्तेदार शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके फर्जी हस्ताक्षर कर यह नियुक्ति की गयी। फर्जी हस्ताक्षर की बात भी जांच में प्रमाणित हो चुकी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि प्रियंका की नियुक्ति को लेकर जो कुछ भी उनको लेकर कहा जा रहा है वह कोरा असत्य है।

बीएसए कार्यालय के लिपिक की भूमिका संदिग्ध:

इस पूरे मामले में बीएसए कार्यालय के एक लिपिक की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि फर्जी हस्ताक्षर से प्रियंका की नियुक्ति को लेकर जो भी पेपर तैयार कराए गए हैं उनकी एक बार फिर से नए सिरे से फारेसिंक जांच करायी जाए। साथ ही जांच में दोषी पाए जाने पर संबंधित लिपिक पर भी कार्रवाई की जाए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल इस पूरे मामले में बीएसए के उन आदेशों को लेकर उठ रहा है जिनके विरूद्ध प्रियंका शर्मा स्टे लेकर आयी हैं और इस स्टे के विरूद्ध अब बीएसए कार्यालय किसी प्रकार की पैरवी के मूड में नहीं।

वर्जन-

पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल मोरीपाडा के पूर्व प्रबंधक का कहना है कि प्रियंका शर्मा की नियुक्ति पूरी तरह से अवैध है तथा इस काम में बीएसए कार्यालय के एक चर्चित लिपिक की भूमिका संदिग्ध है। इतना ही ऐसा क्या कारण है कि बीएसए अपने ही आदेश के खिलाफ प्रियंका द्वारा लाए गए स्टे की पैरवी से भाग रहे हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट गिरीश चंद्र गुप्ता का कहना है कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इस मामले की तमाम परतें खोल कर रख दी हैं।

बीएसए सुदर्शन लाल से जब इस संबंध में जानकारी की गयी तो उन्होंने मामले से अनभिज्ञता जाहिर की, जबकि जिस लिपिक पर आरोप लगाए जा रहे हैं उनसे जब जानकारी चाही तो उन्होंने भी मामला कोर्ट में होने की बात कहकर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

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173-आबूलेन दे रहा कारगुजारियों की गवाही, आबूलेन बंगला-173 फाइलों में सील, मालिकाना हक तक नहीं, मौके तीन भव्य शोरूम- सिविल एरिया स्थित कथित विवादित   बंगले को लेकर सीईओ कैंट बोर्ड का यह कैसा है मैनेजमेंट–

शहर का दिल कहे जाने वाले आबूलेन स्थित बंगला 173 फाइलों में सील है, जो लोग इसमें कथित अवैध रूप से काविज हैं उन पर इस बंगले का मालिकाना हक तक नहीं, लेकिन यदि स्टेटस की बात की जाए तो इस आवासीय संपत्ति में आबूलेन मेन रोड पर तीन भव्य शोरूम नजर आएंगे। सब डिविजन आफ साइट और चेंज आफ परपज जैसी कैंट अधिनियम की धाराओं के गंभीर उल्लंधन के बावजूद कैंट बाेर्ड कार्यालय न जाने ऐसे क्या कारण है कि गंभीर नजर नहीं आ रहा है। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस बंगले को रिज्यूम करने का  एक प्रस्ताव भी पूर्व में कैंट बोर्ड द्वारा भेजा जा चुका है, हालांकि बंगले पर अवैध रूप से काविज तत्वों के मददगार बोर्ड के कुछ पूर्व सदस्य व कैंट बोर्ड अफसर सफाई में कह सकते हैं कि बंगला 173 रिज्यूम का जाे प्रस्ताव भेजा गया था, उसको विड्रा कर लिया गया था, लेकिन जानकारों का कहना है कि ऐसा कोई प्रावधान एक्ट में नहीं है। यह बार यदि किसी बंगले को रिज्यूम किए जाने का प्रस्ताव सेना मुख्यालय या रक्षा मंत्रालय को भेज दिया जाता है तो फिर उस पर अंतिम निर्णय बोर्ड की बैठक, में तकनीकि तौर पर लिए जाने के लिए कोई अधिकृत नहीं है।उस संबंध में केवल मंत्रालय या सेना मुख्यालय में बैठने वाले उच्च पदस्थ अधिकारी ही अधिकृत होते हैं।

जीएलआर में दर्ज 173 का इतिहास:

आबूलेन स्थित 173 की यदि बात की जाए तो जीएलआर में यह बंगला किन्हीं ज्योति प्रसाद जैन के नाम दर्ज है। उनके कोई संतान नहीं थी। बताया जाता है कि निधन से पूर्व उन्होंने किसी प्रकार की वसीयत इस बंगले को लेकर नहीं की थी। जिसकी वजह से यह बंगला किसी अन्य के नाम मुटेशन नहीं हो सका। हालांकि अवैध रूप से काविज लोगों के पैरोकार रहे कैंट बोर्ड के कुछ पूर्व सदस्यों का तर्क है कि ज्योति प्रसाद के रिश्तेदार किसी दिनेश चंद जैन गाजियाबाद के पास पावर आफ अटार्नी थी। उसका प्रयोग करते हुए ही दिनेश जैन ने तरूण प्रकाश और अतुल एरन के नाम कर दी। बंगले का कुल रकबा करीब तीन हजार गज बताया जाता है। जिस सेल डीड की बात सुनने में आ रही है उसके 17 सौ गज तरूण प्रकाश व 13 गज अतुल ऐरन के नाम लिखी गयी सुनी जाती है। अतुल एरन वाले पार्ट में भाजपा नेता सुधीर रस्तौगी व कारोबारी रवि माहेश्वरी का हिस्सा भी बताया जाता है।

कैंट बोर्ड अफसरों की पहली कारगुजारी

आबूलेन स्थित आवासीय बंगला-173 को लेकर कैंट बोर्ड अफसरों व तत्कालीन बोर्ड के मैंबरों की यह पहली कारगुजारी थी जो सामने आयी थी। आवासीय बंगला वो लोग बेच देते हैं जिनके नाम मुटेशन तक नहीं। बंगला बिकने के साथ ही सब डिविजन ऑफ साइट व चेंज आफ परपज यानि कैंट की धाराओं का गंभीर उल्लंघन, लेकिन खेल का हिस्सा होने की वजह से कैंट बोर्ड के तत्कालीन अफसरों ने बजाए हाथ खोलने के मुट्टी बंद कर ली, ऐसा सुना जाता है। दरअसल शुरू में इस आवासीय बंगले को किराए पर दिया गया।

आवासीय बंगले में अवैध निर्माण

आबूलेन के सिविल एरिया में मौजूद बंगला-173 इस प्रकार खुदबुर्द किए जाने के बाद यहां अवैध निर्माण शुरू करा दिया गया। काफी काम जब पूरा हो गया उसके बाद कैंट अफसरों ने किसी भी जांच में अपनी गर्दन को फंसने से बचाने के लिए साल 2010-11 में तत्कालीन सीईओ कैंट ने बंगले पर सील लगा दी। इसके खिलाफ काविज पक्ष कैंट बोर्ड की लचर पैरवी के चलते ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई के विरूद्ध स्टे ले आया। तब से आज तक इस बंगले का स्टेटस फाइलों में यथास्थिति का है। मसलन साल 2010-11 में जो स्टेटस था, वहीं स्टेटस आज भी फाइलों में बना है, भले ही मौके पर मौजूद शोरूम कैंट बोर्ड अफसरों की कारगुजारियों की पोल खोल रहे हैं।

साल 2016 में सीईओ राजीव श्रीवास्तव का एक्शन

आबूलेन बंगला-173 में यूं तो सेटिंग गेटिंग के चलते यथास्थिति के हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी लगातार निर्माण का काम जारी रहा, लेकिन साल 2016 में तत्कालीन सीईओ राजीव श्रीवास्तव ने कार्रवाई करते हुए इसको सील कर दिया। फाइलों में सील होने के बावजूद ताबड़-तोड़ अवैध निर्माण जारी रहा ओर वहां भव्य हाल बना डाले। इस बीच अवैध निर्माण व लोगों के अवैध रूप से काविज होने का उल्लेख करते हुए कैंट बोर्ड ने इस बंगले को रिज्यूम करने का एक प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय व सेना मुख्यालय को भेज दिया। हालांकि बाद में खेल के चलते बताया गया कि रिज्यूम के प्रस्ताव को वापस कर लिया गया है, जबकि कैंट बोर्ड प्रशासन नियमानुसार इसके लिए अधिकृत नहीं। यह निर्णय केवल सेना के अधिकार क्षेत्र में ही निहित है। यह काम प्रसाद चव्हाण के कार्यकाल में हुआ।

कैंट अफसरों की बड़ी कारगुजारी-बोर्ड को ही लगा दिया चूना

आबूलेन बंगला-173 में अवैध कब्जा और अवैध निर्माण तथा हाईकोर्ट के यथा स्थिति के विरूद्ध जब आरोपियों पर कोर्ट की अवमानना का वाद दायर करने की बारी आयी या कहें कार्रवाई की बात कही जाने लगी तो अवैध निर्माण में मदद को लेकर बदनाम रहे स्टाफ ने कारगुजारी दिखाते हुए बोर्ड को चूना लगाने और अवैध काविज लोगों से दोस्ती निभाने के लिए बोर्ड के साथ गद्दारी का काम किया। दरअसल जो कुछ भी हुआ, उसको लेकर नोटिस दिया जाना था। होना तो यह चाहिए था कि जो नोटिस भेजा गया वह आबूलेन बंगला-173 के पते पर भेजा जाता। लेकिन कैंट बोर्ड के हितों को नुकसान पहुंचाते हुए नोटिस भेजा गया बंगला- 173-बी आबूलेन के पते पर। इस खेल ने हाईकोर्ट की अवमानना के दोषियों को साफ बचा लिया। क्योंकि कोर्ट को बता दिया गया कि जिस पते पर नोटिस भेजा गया है, वो तो वहां रहते तक नहीं ना ही उससे कोई वास्ता।

निष्कर्ष:- इस कारगुजारी से साफ है कि जिनके कंधों पर अवैध निर्माण व अवैध कब्जे रोकने की जिम्मेदारी है वो यदि दोस्ती निभाने पर आ जाएं तो क्या नहीं कर सकते। ऐसा नहीं कि कारगुजारियां केवल स्टाफ तक ही सीमित हैं। इस मामले में बोर्ड के सदस्य भी स्टाफ से कमतक नहीं आंके जा सकते। दरअसल हुआ यह कि जब बड़े-बड़े अवैध निर्माणों को लेकर फजीहत होने लगी और मामला पीडी मध्य कमान तक पहुंच गया तो उसके बार कैंट प्रशासन के तत्कालीन अफसरों ने फजीहत से बचने के लिए  कार्रवाई-कार्रवाई का शोर मचाना शुरू कर दिया। इस कार्रवाई को टालने के लिए बोर्ड के तमाम सदस्य बजाए बोर्ड के प्रति निष्ठा जाहिर करने के अवैध रूप से काविज लोगों के समर्थन में खुलकर उतर आए और तब हुई  बोर्ड की एक बैठक में प्रस्तावित कार्रवाई को टलवा दिया गया। नतीजा सबके सामने है। कैंट बोर्ड के हाथों से करोड़ों रूपए की संपत्ति निकल गयी। पूरी तरह से उसको खुर्दबुर्द कर दिया गया।

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खोलने के बजाए मिला लिया हाथ, मेरठ छावनी माल रोड के समीप बीआई लाइन बंगला-45 जिसमें किए जा रहे अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए बजाए हाथ खोलने के लिए अवैध निर्माण रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने अवैध निर्माण करने वालों से ही हाथ मिला लिया है। सेना की हायरिंग वाले ओल्डग्रांट के इस बंगले को लेकर कैंट अफसरों की कारगुजारियों की लंबी फेरिस्त है। जिस प्रकार से यह बंगला खुर्दबुर्द किया गया और भारत सरकार की इस संपत्ति को बचाने के बजाए कैंट प्रशासन के आला अफसर केवल तमाशा भर देखते रहे, उसके बाद ही यह कहा जा रहा है कि अवैध निर्माण कराने वालों से कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों का यह रिश्ता क्या कहलाता है। वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि मेरठ छावनी के सबसे बड़े फौजी अफसर यानि कमांडर तक या तो इस बंगले में किए जा रहे अवैध निर्माण की स्टाफ ने भनक ही नहीं लगने दी या फिर यह मान लिया जाए कि इस बंगले को लेकर अब तक जो अपडेट सुनने में आ रहा है, उसकी सही रिपोर्टिंग सीईओ व डीईओ कार्यालय के अफसरों ने कमांडर को नहीं की। अन्यथा ऐसी कोई वजह नजर नहीं आती कि तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर किए जा रहे अवैध निर्माण को लेकर कमांडर स्तर से कोई एक्शन नहीं लिया जाता। अवैध निर्माण और बंगलाें को खुर्दबुर्द किए जाने को लेकर कमांडर का सख्त रवैया किसी से छिपा नहीं है। पूर्व के तमाम ऐसे वाक्यात हैं जिनमें कमांडर ने अवैध निर्माण का प्रकरण हो या फिर किसी बंगले को खुर्दबुर्द किए जाने का मामला, उसमें सख्त एक्शन लिय है। लेकिन बीआई लाइन बंगला-45 के अवैध निर्माण को लेकर रहस्मयी चुप्पी के बाद बार-बार यही कहा जा रहा है कि अवैध निर्माण करने वालों से यह रिश्ता क्या कहलाता है। इस बीच यह भी जानकारी मिली है कि एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने बंगले में किए जा रहे अवैध निर्माणों को लेकर उच्च पदस्थ अधिकारियों से जानकारी भी मांग ली है। ऐसा करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट का यहां तक कहना है कि यदि तय मियाद में उत्तर नहीं दिया गया तो इस को लेकर पहले तो पीडी मध्य कमान लखनऊ और उसके बाद डीजी डिफैंस से भी जानकारी मांगी जाएगी कि क्या वजह है कि भारत सरकार की संपत्ति डीईओ का बंगला बीआई-45 लाइन में किसकी शहर पर अवैध निर्माण किया गया और बजाए कार्रवाई के अवैध निर्माण रोकने के लिए जिम्मेदार अफसरों ने हाथ क्यों बांध लिए। उनका यहां तक कहना है कि इस मामले को लेकर जरूरत पड़ने पर कमिश्नरी सूचना अधिकार तक से दखल देने का आग्रह किया जाएगा। जानकारों का कहना है कि इस बंगले के अवैध निर्माण को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट जिस प्रकार से जानकारी जुटा रहे हैं और लिखा पढी की जा रही है, वो आने वाले दिनों में कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों के लिए संभत बड़ी मुश्किल का सवब बन जाए। जिस प्रकार के हालात नजर आने रहे हैं उसके चलते तो यही कहा जा सकता है या समझा जा सकता है कि मेरठ छावनी बीआई लाइन स्थित बंगला-45 को लेकर किसी बड़ी मुसीबत की आहट सुनाई देने लगी है। यह बात अलग है कि कैंट प्रशासन इससे अनभिज्ञ है या फिर सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने हैं।

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210-ए के कब टूटेंगे अवैध फ्लैट, मेरठ छावनी के वेस्ट एंड रोड बंगला नंबर 210-ए में करीब तीस साल पहले अवैध रूप से बनाए गए छह फ्लैट जो लगभग सतरह से बीस लाख की कीमत पर बेचे गए थे और जिनकी सर्किल रेट से आज की कीमत अस्सी लाख से एक करोड़ तक आंकी जा रही है,  उन अवैध फ्लैटों को ध्वस्त करना कैंट बोर्ड मेरठ के अफसर भूले बैठे हैं। तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर बनाए गए ये फ्लैट कैंट बोर्ड मेरठ के तत्कालीन अधिकारियों के भ्रष्टाचार और भारत सरकार के बंगलों को खुर्दबुर्द किए जाने का सबसे शर्मनाक सबूत है। नवाब की कोठी के नाम से मशहूर इस बंगले में तीन भूमाफियाओं ने इन छह फ्लैटों का अवैध निर्माण किया, चंद सिक्कों की लालच में यह छह फ्लैट बनाए गए। इसमें जिनका नाम आज ली कैंट बोर्ड का स्टाफ ( जिनमें से ज्यादातर रिटायर्ड हो चुके हैं) बताते हैं कि अनिल जैन, जय प्रकाश अग्रवाल और सुनील सिंहल उर्फ नीलू ने इनका अवैध निर्माण कराया था। तीनों ने एक-एक फ्लैट अपने पास रख लिए थे। बाकि को बेच दिया गया। नवाब के बंगले कैसल व्यू में अवैध रूप से फ्लैट बनाने के इस खेल में कैंट बोर्ड मेरठ के तत्कालीन अफसरों  का खास रोल बताया जाता है। यहां तक सुना जाता है कि इन छह फ्लैट के लिए काफी हैडसम डीलिंग की गयी थी। ऐसा नहीं कि कैंट बोर्ड ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। कार्रवाई कुछ इस अंदाज में की गयी कि दो कदम आगे और चार कदम पीछे। नोटिस भी दिए गए और चालान भी किए गए, लेकिन आरोप है कि बाद में जब सेटिंग के बाद गेटिंग हो गयी तो जैसा कि आमतौर पर इस प्रकार के मामले में होता है, 210-ए के इन अवैध फ्लैटों की फाइल पर धूल चढ़ती चली गयी। कैंट बोर्ड में बतौर अध्यक्ष कई कमांडर आए, सीईओ आए और तब से अब तक इंजीनियरिंग सेक्शन में में आमूलचूक परिवर्तन हो चुका है, लेकिन इस बंगले में अवैध रूप से बनाए गए फ्लैटों की कोई भी धूल झाड़ने की हिम्मत नहीं जुटा  पा रहा है या फिर सवाल यही पूछ लिया जाए कि अवैध फ्लैट बनाने वालों से कैंट बोर्ड के अफसरों का यह रिश्ता क्या कहलाता है।

बंगले का इतिहास:– अपनी गोद में एतिहासिक बिरासतों खास कर उन पलों को जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस कैसल व्यू में आए थे और उनकी मेजबानी नवाब मोहम्मद इस्माइल ने थी, छिपाए गए कैसल व्यू बंगले की तामीर साल 1879 में की गयी थी। जीएलआर में यह बंगला अशफाक जमानी बेगम के नाम से दर्ज है। याद रहे कि नवाब मोहम्मद इस्माल मुल्क की आजादी के बाद बनने वाली पहली अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री भी थे। इस नजरिये और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इस बंगले में आमद के नजरिये से भी यह बंगला यूं तो एतिहासिक धरोहरों की श्रेणी में होना चाहिए था। लेकिन भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि से यह एतिहासिक धरोहर नहीं बचायी जा सकी। उन्होंने इस बंगलों को कई बार नोंचा। कैसल व्यू के ओपन एरिया में सबसे पहले महाराज वैकटहाल अवैध रूप से बनाया गया। यह काम किया चौक फुव्वारा सदर के मदन लाल मित्तल ने। उन्होंने इसको किराए पर लिया था। कुछ समय इसके साथ प्रेमी टेंट वालों का नाम भी जुड़ा रहा। महाराज वैकट हाल को ध्वस्त भी किया गया। सालों तक उसका मलवा भीतर ही पड़ा रहा। लेकिन जैसे ही इस बंगले पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि पड़ी बंगला का हुलिया ही बदल गया। इसमें धन शाकुंतल नाम से अवैध इमारत कैसल व्यू की तर्ज पर बना दी गयी। पीछे के हिस्से में जहां कभी सर्वेन्ट क्वार्टर हुआ करते थे, वहां छह फ्लैट बना दिए गए। इतना कुछ हो गया, लेकिन इंतजार है कि कैंट बोर्ड के अफसरों की नींद टूटने और अवैध निर्माणों को लेकर जो उनकी डयूटी है उसको कराने का।


क्यों पैरवी से भाग रहा है बीएसए आफिस, डीआईओएस ( जिला विद्यालय निरीक्षक सहारनपुर) के कथित फर्जी हस्ताक्षर से कूटरचित कर तैयार कराए गए प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाने वाली पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कू मोरीपाड़ा मेरठ में प्रधानाध्यापिका के पद पर नौकरी पानी वाली प्रियंका शर्मा निवासी मालीवाडा मेरठ के प्रकरण में बीएसए (बेसिक शिक्षा अधिकारी आफिस) अपने ही आदेश के खिलाफ लाए गए स्टेट की हाईकोर्ट में पैरवी से क्यों भाग रहा है। प्रधाध्यापिका पद पर जिस नियुक्ति को कथित रूप से फर्जी प्रमाण पत्र को कुटरचित तरीके से तैयार कर हासिल किए जाने की बात सिद्धांत रूप से स्पष्ट हो चुकी है, उस मामले में को लेकर अब बीएसए कार्यालय का दो कदम आगे चार कदम पीछे होने के चलते ही तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।

यह है पूरा मामला:-

प्रियंका शर्मा पत्नी नितिन शर्मा व पुत्री बिजेन्द्र कुमार शर्मा निवासी 101 मालीवाडा मेरठ की नियुक्ति प्रधानाध्यापिका पद पर चयन समिति पीएबी गर्ग्स जूनियर हाई स्कूल मोरीपाड़ा की विगत 11 जुलाई 2016 के आधार पर बीएसए मेरठ से पत्रांक/प्रबंध/नियुक्ति/8931-33-2016-17 दिनांक 23 जुलाई 2016 के द्वारा की गयी थी। इसके बाद प्रियंका ने कार्यभार संभाल लिया था। नियुक्ति के समय शैक्षिक योग्यता के सबूत के ताैर पर बीएबीएड, यूपीटैक जूनियर स्तर एवं प्राइमरीस्तर की थी तथा प्रधानाध्यापिका के पद की योग्यता पांच वर्ष की अनिवार्यता के आधार पर केबी हॉयर सैकेड्री स्कूल (खुशनूमा बेगम हॉयर सैकेड्री स्कूल) माध्यमिक शिक्षा उत्तर प्रदेश द्वारा मान्यता प्राप्त हयात कालोनी गली नं. 4 खाता खेड़ी सहारनपुर उत्तर प्रदेश के पत्रांक  3151/2016 –  3 मार्च 2016 के द्वारा निर्गत अनुभव प्रमाण पत्र जो नियुक्ति के समय दाखिल किया गया था उसमें प्रियंका शर्मा के 1 जुलाई 2009 से 9 मार्च 2015 तक अस्थायी सहायक अध्यापिका के तौर पर केवी हॉयर सैकेड्री खाता खेड़ी सहारनपुर पढ़ाने की बात को जांच के बाद कथित तौर पर फर्जी व कुटरचित पाया गया।

शासन में शिकायत करायी गयी दर्ज:

कथित कुटरचित प्रमाण पत्रों से नौकरी पाने का मामला पकड़ने का काम तत्कालीन प्रबंधक डा. राधे श्याम गौड़ एडवोकेट ने किया और इसकी शिकायत सीएम, आयुक्त मेरठ मंडल, जिलाधिकारी मेरठ, बेसिक शिक्षा अधिकारी व वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा मेरठ से की गयी।

डीआईओएस सहारनपुर ने खोली पोल:

कथित कुटरचित प्रमाण पत्रों के बूते पर प्रधानाध्यापिका की नौकरी पाने वाली प्रियंका शर्मा के इस कारनामे की पोल खोलने का काम भी डीआईओएस सहारनपुर ने किया। दरअसल हुआ यह कि गिरीश चंद्र गुप्ता निवासी जे-40 शास्त्रीनगर मेरठ ने विगत 24 मार्च 2018 को आरटीआई के तहत प्रिंयका शर्मा के संबंध में डीआईओएस सहारनपुर से जो सूचनाएं मांगी गयी थीं, उनसे सारे खेल का खुलासा हो गया था। बकौल डा. राधे श्याम एडवोकेट आरटीआई के जवाब मे डीआईओएस सहारनपुर ने गिरीश चंद्र गुप्ता को  अवगत कि प्रियंका शर्मा का केवी हॉयर सैकेंड्री में अध्यापिका का कोई प्रमाण पत्र प्रतिहस्ताक्षरित नहीं किया गया है।

कमिश्नर को कराया अवगत:

डीआईओएस सहारनपुर का आरटीआई का जो उत्तर प्रियंका शर्मा के प्रमाण पत्रों को लेकर मिला, उसकी जानकारी गिरीश चंद गुप्ता ने कमिश्नर मेरठ मंडल को देते हुए मामले में कार्रवाई की मांग की। मामले का संज्ञान लेते हुए मंडलीय साहयक शिक्षा निदेशक बेसिक प्रथम मेरठ मंडल कार्यालय  ने एडीएम प्रशासन मेरठ से प्रियंका शर्मा प्रकरण में रिपोर्ट तलब कर ली। इसके बाद 24 सितंबर 2018 को चरन सिंह खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय एवं सूर्यकांत गिरी खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नगर मेरइ को जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच के आदेश जारी किए गए।

केवी हायर सैकेंड्री ने किया प्रियंका का बचाव:

प्रियंका शर्मा के जिन प्रमाण पत्रों को डीआईओएस सहारनपुर ने कुटरचित करार दिया था, उसको केवी हॉयर सैकेड्री स्कूल ने एक सिरे से खारिज करते हुए प्रियंका शर्मा के अनुभव प्रमाण पत्रों को सत्य करार दिया, लेकिन डीआईओएस सहारनपुर के प्रति हस्ताक्षर करने के संबंध में कोई स्पष्ट आख्या नहीं दी। केवी हॉयर सैकेड्री ने जो रिपोर्ट पूरे प्रकरण में भेजी उसको केवल प्रिंयका शर्मा का बचाव करने का प्रयास भर माना गया।

बीएसए ने नियुक्ति को किया शून्य:

इस पूरे मामले का पर्दाफाश होने के बाद विगत 6 अगस्त 2020 को बीएसए मेरठ ने प्रियंका शर्मा द्वारा नियुक्ति के समय प्रस्तुत प्रमाण पत्रों को फर्जी मानते हुए उनकी नियुक्ति के अनुमोदन को शून्य कर दिया तथा पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल मोरीपाड़ा के तत्कालीन प्रबंधक डा. राधे श्याम गौड़ को प्रियंका शर्मा की नियुक्ति तत्काल प्रभाव से समाप्त कर बीएसए कार्यालय को अवगत कराए जाने के आदेश दिए थे। दरअसल गिरीश चंद गुप्ता ने जो शिकायत की थी, उसकी जांच कराने के बाद ही तत्कालीन बीएसए ने प्रियंका शर्मा को लेकर आदेश जारी किए थे।

हाईकोर्ट से प्रियंका को राहत व

बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के 6 अगस्त 2020 के आदेश के खिलाफ प्रियंका शर्मा हाईकोर्ट में पहुंच गयीं। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने उन्हें राहत प्रदान करते हुए हाईकोर्ट ने बीएसए सहारनपुर से प्रतिहस्ताक्षरित को अवगत कराने को आदेश भी जारी किया। हाईकोर्ट के आदेश को प्रियंका शर्मा के लिए राहत का पिटारा मनाया गया।

एक ओर धमाकेदार खुलासा:

वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट से मिली राहत के बाद प्रियंका प्रकरण में एक अन्य धमाकेदार खुलासा गिरीश चंद्र गुप्ता ने केवी हॉयर सैकेंड्री स्कूल खाता खेडी सहारनपुर के अनुभव प्रमाण पत्र को फर्जी बताने की अपनी बात को दोहराते हुए प्रियंका शर्मा के भगवती कालेज सिवाया रूड़की रोड में बतौर टीचर कार्य करने का खुलासा कर डाला। इसके संबंध में उन्होंने आरटीआई द्वारा मांगी गयी जानकारी को आधार बनतो हुए जानकारी दी कि भगवती कालेज ऑफ एजेकेशन ने 1 सितंबर से 10 जुलाई 2015 तक प्रियंका शर्मा के शिक्षिका के रूप में उनके विद्यालय में सेवाएं देने की जानकारी दी। इसके एवज में प्रियंका शर्मा को वेतन के रूप मे भुगतान उनके खातों में किया गया। गिरीश गुप्ता ने यह भी खुलासा किया कि प्रियंका को लेकर शुरू में जब उन्होंने पत्राचार किया तो भगवती कालेज ने सात माह तक उसका कोई उत्तर नहीं दिया, जिसके बाद उन्हें आरटीआई दायर करनी पड़ी जिसमें प्रियंका शर्मा के बतौर शिक्षिका सेवाएं देने की बात स्वीकार की गयी। गिरीश चंद का तर्क है कि एक ही कार्यकाल में प्रियंका दो विद्यालयों मसलन भगवती कालेज सिवाया और केवी हाॅयर सैकेड्री सिवाया में कैसे सेवा दे सकती हैं। यदि भगवती कालेज ने चैक द्वारा बैंक की मार्फत भुगतान किया है तो फिर केवी हॉयर सैकेड्री में शिक्षण कार्य को लेकर जाे भी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए जा रहे हैं वह स्वत: ही कुटरचित प्रमाणित हो जाते हैं। इससे भी बड़ा खुलासा पूरे मामले में राधे श्याम गौड़ ने यह किया कि नियुक्ति के लिए जो कमेटी बनायी गयी थी उसमें प्रियंका शर्मा के रिश्तेदार शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके फर्जी हस्ताक्षर कर यह नियुक्ति की गयी। फर्जी हस्ताक्षर की बात भी जांच में प्रमाणित हो चुकी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि प्रियंका की नियुक्ति को लेकर जो कुछ भी उनको लेकर कहा जा रहा है वह कोरा असत्य है।

बीएसए कार्यालय के लिपिक की भूमिका संदिग्ध:

इस पूरे मामले में बीएसए कार्यालय के एक लिपिक की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि फर्जी हस्ताक्षर से प्रियंका की नियुक्ति को लेकर जो भी पेपर तैयार कराए गए हैं उनकी एक बार फिर से नए सिरे से फारेसिंक जांच करायी जाए। साथ ही जांच में दोषी पाए जाने पर संबंधित लिपिक पर भी कार्रवाई की जाए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल इस पूरे मामले में बीएसए के उन आदेशों को लेकर उठ रहा है जिनके विरूद्ध प्रियंका शर्मा स्टे लेकर आयी हैं और इस स्टे के विरूद्ध अब बीएसए कार्यालय किसी प्रकार की पैरवी के मूड में नहीं।

वर्जन-

पीएवी गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल मोरीपाडा के पूर्व प्रबंधक का कहना है कि प्रियंका शर्मा की नियुक्ति पूरी तरह से अवैध है तथा इस काम में बीएसए कार्यालय के एक चर्चित लिपिक की भूमिका संदिग्ध है। इतना ही ऐसा क्या कारण है कि बीएसए अपने ही आदेश के खिलाफ प्रियंका द्वारा लाए गए स्टे की पैरवी से भाग रहे हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट गिरीश चंद्र गुप्ता का कहना है कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इस मामले की तमाम परतें खोल कर रख दी हैं।

बीएसए सुदर्शन लाल से जब इस संबंध में जानकारी की गयी तो उन्होंने मामले से अनभिज्ञता जाहिर की, जबकि जिस लिपिक पर आरोप लगाए जा रहे हैं उनसे जब जानकारी चाही तो उन्होंने भी मामला कोर्ट में होने की बात कहकर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

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स्कूलो में बड़े घपलों का पुलिंदा तैयार, सौ से ज्यादा नियुक्तियों की जांच शुरू, स्कूलो में बड़े घपलों का पुलिंदा तैयार, सौपा जाएगा शिकायतों का पुलिंदा, तीन जून को तीन मंडलों की प्रस्तावित समीक्षा बैठक के लिए मेरठ आ रहे महा निदेशक शिक्षा आईएएस विजय किरन आनंद के समक्ष शिक्षा विभाग में चल रही कारगुजारियों का बम फूट सकता है। सूत्रों की माने तो महानिदेशक शिक्षा दो जून को शाम में मेरठ सर्किट हाउस संभवत: पहुंच जाएंगे और तीन जून को तीन मंडलों के अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक में कामकाज की समीक्षा करेंगे। सूत्रों ने बताया कि यूं तो कई ऐसे मामले हैं जिनकी शिकायत की जाएगी या शिकायतों का पुलिंदा थमाया जाएगा, लेकिन इन सब में सबसे प्रमुख मामला जो बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के एक लिपिक के लिए मुश्किलें खड़ी करा सकता है। दरअसल चर्च सिटी जूनियर हाई स्कूल के प्रबंधक रमेश गिल (सेंट जोन्स के पूर्व प्रधानाचार्य) ने एक शिकायती पत्र मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक बेसिक, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा की मार्फत महानिदेशक शिक्षा को सौंपा है। साथ ही चर्च सिटी जूनियर हाई स्कूल के प्रबंधक ने इस पत्र में चर्च सिटी स्कूल द्वारा संचालित किए जाने वाले तीन स्कूलों ठठेरवाड़ा, अंदरकोट और  सदर (मेरठ) की प्रधानाचार्यों द्वारा कथित रूप से अनर्गल आरोप लगाए जाने की शिकायत करते हुए पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग महानिदेशक शिक्षा से की है। उनको शिकायती पत्र के साथ कुछ साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं। पत्र में बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में नियुक्त प्रदीप बंसल (परिषदीय कर्मचारी) की नियुक्ति बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में साल 2001 में होने की जानकारी देते हुए अवगत कराया गया है कि तत्समय प्रदीप बंसल टंकण अर्हता नहीं रखते थे। अत: उनकी यह नियुक्ति शासनादेश 1999 के विपरीत है। पत्र में आरोप है कि चर्च सिटी जूनियर हाईस्कूल अंदरकोट, सदर और ठठेरवाड़ा में 9 नियुक्तियों के साथ ही जनपद में करीब सौ नियुक्तियां पूरी तरह से अवैध व मानकों के विपरीत की गयी हैं। अनेक के प्रशिक्षण व अनुभव प्रमाण पत्र नौकरी के लिए फर्जी तक लगा दिए गए हैं। ऐसा ही मामला चर्च सिटी जूनियर हाईस्कूल सदर व अंदरकोट की प्रधानाचार्य का भी है। महानिदेशक को भेजे गए पत्र में अवगत कराया गया है कि उक्त विद्यालय की प्रधानाचार्य की बीएड प्रशिक्षण योग्यता रोहतक से पत्राचार से है, जबकि शासनादेश वर्ष 2008 के अनुसार प्रधानाचार्य पद नियमित बीएड व जूनियर हाईस्कूल में पांच वर्ष का अनुभव अनिवार्य है। इसके अलावा पत्र में लिपिक प्रदीप बंसल पर चर्च सिटी जूनियर हाईस्कूल के प्रबंधक ने कई अन्य गंभीर आरोप लगाए हैं जिनमें उनकी संपत्ति के आय से अधिक होने की बात कहते हुए शासन से जांच कराए जाने की भी मांग की है। सबसे गंभीर आरोप महिला टीचरों से चरित्र हनन कराए जाने तथा धर्मांतरण सरीखे आरोप लगाए जाने की बात कही है। रमेश गिल का कहना है कि इस सारे फसाद की वजह उनकाे बतौर प्रबंधक चर्च सिटी जूनियर हाईस्कूल में नियुक्त किए जाने के बाद उन्होंने जो लगत लोग फर्जी संस्था बनाकर काविज हो गए थे, उनको डिप्टी रजिस्ट्रार की जांच के बाद बाहर कर देने की वजह से ही ये तमाम घटक्रम घटित होने लगे थे। उन्होंने बताया कि शिक्षिकाओं ने धर्मांतरण सरीखे जो गंभीर अनर्गल आरोप उन पर लगाए थे तमाम जांचों के बाद वो झूठे पाए गए है और उन्हें जांच ऐजेन्सियों ने क्लीनचिट भी थमाई है। सबसे गंभीर तथ्य तो यह है कि ठठेरवाड़ा विद्यालय की टीचर पुष्पा देवी ने जो आरोप लगाए थे सेवानिवृत्ति होने के बाद उन्होंने उस आरोप को निरस्त किए जाने का शपथ पत्र भी दाखिल किया। पत्र में ठठेरवाडा विद्यालय की श्रीमती क्लेरिंस व पूर्व प्रबंधक वेद प्रकाश शर्मा वेतन भगतान को लेकर गंभीर आरोप लगाते हुए जांच की मांग की है। ऐसे ही कई अन्य गंभीर आरोप लगाते हुए महानिदेशक शिक्षा से जांच कराकर विभागीय कार्रवाई की भी मांग की गयी है।

विभागीय जांच के आदेश:

वहीं दूसरी ओर प्रदीप बंसल पर लगाए गए आरोपों को लेकर कई शिकायतें पहुंचने के बाद संयुक्त शिक्षा निदेशक बेसिक गणेश कुमार ने विभागीय जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। प्रदीप बंसल ने स्वीकार किया कि विभागीय जांच की जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जांच के आदेश भाजपा नेता मनोज कुमार की शिकायत का संज्ञान लेने जारी किए गए हैं।

वर्जन

एडी बेसिक दिनेश कुमार यादव का कहना है कि  बीएसए कार्यालय में तैनात प्रदीप बंसल को लेकर किसी विभागीय जांच संज्ञान में नहीं

बीएसए कार्यालय के लिपिक प्रदीप बंसल का कहना ने विभागीय जांच की बात मानते हुए कहा कि कुछ लोग निजी महत्वाकांक्षा के चलते ऐसी झूठी शिकायतें करते रहते है।

बीएसए सुदर्शन से भी उनका वर्जन लेने का प्रयास किया गया, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी बात नहीं हो सकी।

 

चर्च सिटी जूनियर हाईस्कूल के प्रबंधक रमेश गिल का कहना है कि चर्च सिटी के तीन स्कूलों में 9 नियुक्तियों के अलावा जनपद भर में अन्य करीब सौ नियुक्तियां ऐसी की गयी हैं जिनमें अर्हता का पालन नहीं किया गया है।


क्यों बेबस नजर आता है एमडीए, मेरठ विकास प्राधिकरण और भू-माफियाओं का गठ जोड़ मेरठ महानगर को तेजी से अवैध कालाेनियों के स्लम एरिया में तब्दील करने पर उतारू है। यह स्थिति तो तब है जब सूबे की योगी सरकार अवैध कालोनियों को लेकर सख्त है। इतना ही नहीं करीब सप्ताह भर पहले समीक्षा बैठक में मंडलायुक्त और पुलिस महानिरीक्षक भी भू-माफियाओं के खिलाफ संगठित होकर कार्रवाई की हिदायत केवल एमडीए के अफसरों को ही नहीं बल्कि अवैध कालोनियाें में जो भी मददगार साबित हो रहे हैं, उन तमाम विभागों के अफसरों के पेंच कस चुके हैं। इस सख्ती का कब और कितना असर होगा यह कहना तो जल्दबाजी होगी, लेकिन जहां तक भू-माफियाओं की बात है, उन  पर मंडलायुक्त या पुलिस महानिरीक्षक के सख्त रवैये का असर बिलकुल नजर नहीं आ रहा है।

बाबा के बुलडोजर का खौफ नहीं भूमाफियाओं को

भू-माफियाओं की यदि बात की जाए तो ऐसा लगता नहीं कि सीएम योगी सरकार के बुलडोजर का उन्हें कोई खोफ है। इसका बड़ा सबूत रूडकी रोड शील कुंज डोरली डीएवी स्कूल वाले मार्ग से लालड़ रोड तक के मार्ग पर खेतों में दोनों ओर इन दिनों तेजी से अवैध कालोनियों का काम चल रहा है। भू-माफिया किस कदर बेखौफ हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब आधा दर्जन अवैध कालोनियों का यहां काम चल रहा है। इनमें से एक कालोनी तो इतनी ज्यादा विशाल है कि उसका फ्रंट लावड रोड से शुरू होता है और बैक पार्ट डोरली मार्ग पर जाकर खत्म होता है। इस अवैध कालोनी का करीब 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। केवल फाइनल टच दिया जा रहा है।

एमडीए प्रशासन को पहले ही किया था सजग

इस इलाके में जिसको मेरठ विकास प्राधिकरण का जोन बी कहा जाता है, वहां  अवैध कालोनियों को लेकर धारा न्यूज ने करीब चार माह पूर्व मेरठ विकास प्राधिकरण प्रशासन को सजग किया था। जो कालोनियां अब करीब-करीब पूरी तरह से बिकने के लिए तैयार हैं, जिस वक्त धारा न्यूज ने एमडीए प्रशासन को आगाह किया था, उस वक्त इन कालोनियाें के लिए खेतों की हरियाली का कत्ल कर वहां चार दीवारी बनाकर मिट्टी का भराव शुरू किया गया। बहुत ही कम समय में यहां बड़ी-बड़ी कालोनियां अब बिकने के लिए तैयार हैं। इनमें बिजली के खंबे लग गए हैं। जहां तक पानी के कनैशन की बात है तो मेरठ महानगर की जितनी भी अवैध कालाेनियां हैं, उन सभी में पानी के कनैक्शन के नाम पर अवैध बोरिंग की जा रही है। यह सीधे-सीधे भूमिगत जल के अवैध दोहन की श्रेणी में आता है।

अवैध खनन पर अफसरों की चुप्पी

भू-माफिया जोन बी ही नहीं बल्कि पूरे मेरठ महानगर में अवैध कालोनियां काट रहे हैं, वो सभी हरियाली का कत्ल कर खेतों में काटी जा रही हैं। खेतों में काटी जाने वाली इन अवैध कालोनियों के लिए मिट्टी की भराई के लिए रात के अंधेरे में अवैध खनन कराया जाता है। जहां-जहां अवैध कालोनियाें का काम चल रहा है, उन तमाम इलाकों में रात के अंधेरे में बड़े-बड़े ट्रक और जेसीबी मशीनें खेतों से मिट्टी का अवैध खनन करते देखते जा सकते हैं। लावड़ रोड पर जहां जहां अवैध कालोनियां काटी गयी हैं, वहां अवैध खनन से लायी जानी वाली मिट्टी के डंफर दौड.ते हैं। दिन निकलने से पहले ये डंफर व जेसीबी मशीने एक कालोनी के बाहर इसी मार्ग पर खड़े कर दिए जाते हैं, जैसे ही शाम ढलती है, ये डंफर व जेसीबी मेशीन अवैध खनन के लिए निकल जाते हैं।

काली कमाई में सभी का हिस्सा

अवैध कालोनियां के लिए किसान से खेती की जमीन बीघे के हिसाब से उधार ली जाती है और कौड़ियों के भाव ली गयी उस जमीन को ऊंची कीमत पर अवैध बेचा जाता है। जानकारों की मानें तो ऐसा नहीं कि इस काली कमाई में सारी रकम भू-माफिया के पेट में उतर जाती है। इस धंधे में भू माफिया के अलावा कुछ सफेद पोश जो सत्ता से जुड़े होते हैं। इनके अलावा बड़े फाइनेंसर तथा अपराधिक छवि के माफियाओं के अलावा एमडीए के कुछ अफसरों का भी कनेक्शन इनसे जुड़ा होता है। यह मजबूत गढजोड़ तमाम कायदे कानूनों व शासन तथाा मंडलायुक्त स्तर से की जाने वाली सख्ती के बादजूद अपना काम जारी रखता है।

लिखा पढ़ी भूरी जमीनी हकीकत अधूरी

अवैध कालोनियों को लेकर एमडीए की जहां तक बात है तो जितने भी जोनल अधिकारी या जेई होते हैं वो खुद को किसी भी जांच से बचाने के लिए अपने स्तर से फाइलों में कागजी कार्रवाई पूरी रखते हैं। मसलन अवैध कालोनी पर नोटिसों का अंबार, बार-बार चालान, थाने में एफआईआर सरीखी तमाम कार्रवाई लगातार जारी रहती हैं, यह बात अलग है कि यह सब केवल कागजों पर होता है, इस कार्रवाई और जमीनी हकीकत का आपस में कभी कभार ही तालमेल नजर आता है। यही कारण है जो पूरा मेरठ इन दिनों अवैध कालोनियों का स्लम एरिया बनता जा रहा है।

यह कहना है जोनल अधिकारी का

जोन बी की अवैध कालेानियाें को लेकर जब एमडीए के जोनल अधिकारी विमल सोनकर से सवाल किया गया तो उन्हाेंने बताया कि जो भी अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं उन सभी को नोटिस दिए गए हैं। जो भी विधि संवत कार्रवाई है वह की जा रही है।

ठिकाने लगा दिए फीस के 9 करोड रुपए

ठिकाने लगा दिए फीस के 9 करोड़, -बच्चों की फीस के 9 करोड़ लगा दिए ठिकाने- अब जांच में फंसी है गर्दन, मेरठ के डीएन पॉलिटेक्निक के प्रधानाचार्य छात्रों की फीस के करीब 9 करोड़ की रकम को ठिकाने लगाए जाने की जांच में फंस गए हैं। उनकी कारगुजारियों की भनक लगने के बाद शासन ने जांच के आदेश दे दिए हैं। आरोप है कि छात्रों की फीस के रूप में जमा की गयी 9 करोड़ की रकम को ठिकाने लगाने के लिए तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रख दिया गया।  इस मामले के सामने और प्रधानाचार्य स्तर पर कथित रूप से की गयी इस कारगुजारी से सभी हैरान हैं।  मामला छात्रों की फीस के 9 करोड़ की एक बड़ी रकम को लेकर गंभीर वित्तय अनियमितता का था, सो प्रथम दृष्टया मामले की गंभीरता को देखते हुए निदेशक प्राविधिक शिक्षा उत्तर प्रदेश ने संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिमी क्षेत्र जेएल वर्मा को डीएन पॉलिटेक्निक में कथित रूप से अंजाम दिए गए 9 करोड़ के वित्तीय घोटाले की जांच के आदेश दे दिए। 17 मार्च 2023 को संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा पश्चिमी क्षेत्र जेएल वर्मा ने शिकायत कर्ता को एक पत्र भेजकर डीएल पॉलिटेक्निक के प्रधानाचार्य पर कथित तौर पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि को कहा, जिसके उत्तर में कुलदीप शर्मा ने एक पत्र भेजकर बता दिया कि आरोप सत्य हैं। इसके बाद निदेशक प्राविधिक शिक्षा के राम ने 8 फरवरी 2023 को डीएन पॉलिटेक्निक के प्रधानाचार्य  के  खिलाफ जांच के लिए तीन सदस्यों वाली एक कमेटी गठित कर दी गयी। इस कमेटी का अध्यक्ष जेएल वर्मा संयुक्त निदशेक प्राविधिक शिक्षा तथा सदस्य जान बेग लोनी प्रधानाचार्य राजकीय पॉलिटेक्निक गाजियाबाद और कोषाधिकारी कोषागार मेरठ को बनाया गया है।

यह हुआ

डीएन पॉलिटेक्निक के करोड़ों के कथित वित्तीय घोटाले की यदि बात की जाए तो बताया गया है कि डीएन पॉटैक्निक में इवनिंग क्लासें चलते हैं। इन क्लासों  का टयूशन शुल्क मार्निंग में चलने वाली क्लासों की फीस से कुछ अधिक होता बताया गया है। इवनिंग क्लासों में आने वाले छात्रों की फीस के रूप में ही यह रकम जमा थी, जिसको ठिकाने लगा दिया गया। आरोप है कि जो काम कराए गए बताए जा रहे हैं उसमें अनाप शनाप रेट दिखाए गए हैं जो सत्यता से परे हैं।

जांच में सहयोग न करने का आरोप

डीएन पॉलिटेक्निक के अंजाम दिए गए इस बड़े वित्तीय घोटाले की जांच में सहयोग न करने के चलते निदेशक प्राविधिक शिक्षा कानुपर ने 13 अप्रैल 2023 को सख्त लहजा अख्तयार करते हुए एक पत्र प्रधानाचार्य डीएन पॉलिटेक्निक वीरेन्द्र आर्य को भेजा है, जिसमें निदेशक ने फटकार लगाते हुए कहा है कि जिन 13 बिंदुओं पर संयुक्त निदेशक प्राविधिक शिक्षा की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी ने जानकारी मांगी है वह जानकारी नहीं दी गयी है। डीएन पॉलिटैक्निक के प्रधानाचार्य ने दस पेजों की एक आख्या में बगैर हस्ताक्षर के उपलबब्ध करायी है। निदेशक ने इस बात भी नाराजगी व्यक्त की है कि कथित वित्तय अनियमित्ता को लेकर जो जानकारी मांगी गयी है, उन बिंदुओं पर कोई स्पष्टीकरण नहीं भेजा गया है। इधर उधर की बातें अधिक कहीं गयी हैं। सबसे गंभीर बात यह कि जो स्पष्टीकरण भेजा गया है उस पर विरेन्द्र आर्य ने हस्ताक्षर तक नहीं किए गए हैं। इससे भद्दा मजाक जांच कमेटी के साथ और क्या हो सकता है।

घोटाले की जांच कर रही टीम को मैनेज करने का आरोप

इस मामले को उजागर करने का काम सजग प्रहरी उत्तर प्रदेश शाखा के जिलाध्यक्ष कुलदीप शर्मा ने। उन्होंने ही डीएन पॉलिटेक्निक के प्रधानाचार्य के कृत्य का खुलासा करते हुए निदेशक प्राविधिक शिक्षा उत्तर प्रदेश कानपुर के राम को साक्ष्यों के साथ गोपनीय पत्र भेजा। कुलदीप शर्मा का आरोप है कि जांच को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है। किसी प्रकार से पूरी जांच कमेटी ही मैनेज हो जाए इसके लिए इन दिनों जांच टीम में शामिल प्रधानाचार्य राजकीय पॉलिटेक्निक की परिक्रमा किए जाने की खबरें मिल रही हैं, लेकिन जांच प्रक्रिया पर पूरी नजर रखी जा रही है। मामला छात्रों की फीस के 9 करोड़ के वित्तीय घोटाले का है, इसको किसी भी दशा में प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।

योगी सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस नीति

सूबे की योगी सरकार की भष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस नीति किसी से छीपी नही हैं, इसके बावजूद डीएन पॉलिटेक्निक मेरठ में कथित रूप से प्रधाानाचार्य व उनके सहयोगियों के स्तर से इतना बड़ा वित्तीय घोटाला अंजाम दे दिया जाना सवाल तो बनता है, लेकिन सवाल के दाग को निदेशक प्राविधिक शिक्षा कानपुर ने जांच के आदेश देकर धोने का प्रयास किया है।

यह कहना है प्रधानाचार्य का

डीएन पॉलिटेक्निक मेरठ के प्रधानाचार्य वीरेन्द्र आर्य का कहना है कि इस प्रकार की तमाम जांचें चलती रहती हैं। जहां तक निदशेक प्राविधिक शिक्षा कानपुर के आदेश पर चल रही जांच का प्रश्न है तो जिस प्रकरण को लेकर जांच की जा रही है वह सेल्फ फाइनेंस से जुड़ा है। उसकी फीस से कुछ निर्माण संबंधी कार्य कराए गए हैं। इस प्रकार के कार्य कराए जाने का अधिकार मैनेजमेंट कमेटी के पास सुरक्षित होता है। जांच में पूरा सहयोग भी किया जा रहा है।

यह कहना है चेयरमैन अजय अग्रवाल का

डीएन पाॅलिटैक्निक के चेयरमैन अजय अग्रवाल से जब इस मामले में बात की गयी तो उन्होंने बताया कि जिस प्रकार की बातें कहीं जा रही हैं, वैसा कुछ नहीं है। कालेज में काफी काम कराया गया है। जहां तक जांच की बातें हैं तो इस प्रकार की जांचों का सामना तो पिछले दस सालों से कर रहे हैं।

 

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घोटले में लिप्त डीलरों को सजा-अफसरों का मजा, उत्तर प्रदेश शासन के फूड सेल ने खाद्य विभाग के जिन अफसरों को घोटाले में कसूरवार ठहराया गया वो तमाम अफसर उनके ऊपर प्रस्तावित कार्रवाई को टलवाकर मजा कर रहे हैं, इसके इतर फूड सेल ने मेरठ के जिन राशन डीलरों को कसूरवार ठहराया था, उनके लिए सजा मुकर्र कर दी गयी। मेरठ जनपद के ऐसे करीब साठ राशन डीलरों पर एफआईआर करा दी गयी है।

यह है पूरा मामला

साल 2018 में मेरठ में बड़ी संख्या में राशन कार्डो में जोड़ी गयी यूनिट जांच के बाद निरस्त कर दी गयी थीं। भाजपा के एक बड़े नेता की शिकायत पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने यह जांच करायी थी। लेकिन राशन माफिया कुछ अफसरों व राशन डीलरों ने जिन राशनों से यूनिट काट दी गयी थीं, उन काटी गयी यूनिटों का भी राशन गोदाम से उठा लिया। जो राशन गोदाम से उठाया गया था, वो राशन बजाए उपभोक्ताओं को देने के उसकी कालाबाजारी कर दी गयी। खुले बाजार में वो खाद्यान बेच दिया गया। इस बात की भी शिकायत भाजपा नेता ने सूबे के सीएम से कर दी।

फूड सेल ने की थी जांच

जिला आपूर्ति कार्यालय के कुछ अफसरों तथा राशन डीलरों द्वारा मिलकर इतने बड़े घोटाले को अंजाम देने का मामला प्रकाश में आने के बाद शासन ने मामले के आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए फूड सेल से जांच करायी। फूड सेल की जांच में मेरठ के जिला आपूर्ति कार्यालय के कई अफसरों तथा मेरठ के शहर व देहात के कुल 63 राशन डीलरों को गरीबों के नाम पर खाद्यान उठाकर उसकी काला बाजारी के मामले में कसूरवार माना था। फूड सेल की जांच में डीएसओ मेरठ के अफसरों को कसूरवार ठहराए जाने के बाद हडकंप मचा  गया था। कसूरवार ठहराए गए अफसरों की गिरफ्तारी की आशंका तक व्यक्त की गयी थी जिसके चलते तब  फूड सेल की जांच में दोषी पाए गए अफसर कई दिन तक डीएसओ कार्यालय नहीं आए। दरअसल सभी को एफआईआर व गिरफ्तारी का डर सता रहा थ। इस मामले में जिन 63 राशन डीलराें को आरोप माना गया था उन सभी के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 की धारा 3/7 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गयी। यह बात अलग है कि पुलिस  वालों ने गिरफ्तारी से टूट के नाम पर जमकर मांडवाली की।

डीएम मेरठ को प्रमुख सचिव खाद्यान का पत्र

गरीबों के नाम पर राशन डकारने वालों पर फूड सेल की रिपोर्ट मिलने के बाद 9 सितंबर 2020 को तत्कालीन प्रमुख सचिव खाद्यान  ने डीएम मेरठ को एक पत्र लिखकर बताया था कि शासन के निर्देश पर फूड सेल की 12 अप्रैल 2019 को भेजी गयी आख्या का संदर्भ ग्रहण करने का आग्रह करते हुए आरोपी ठहराए गए 63 उचित दर विक्रेताओं के विरूद्ध धारा 409, 420,  407,  408, 471 आईपीसी व धारा 3/7 के तहत सभी अभियुक्तों पर एफआईआर दर्ज कराकर जांच कराए जाने के निर्देश दिए थे।  साथी ही अभियुक्त बनाए गए सभी राशन डीलरों की दुकानें भी निरस्त किए जाने के निर्देश दिए गए थे।

एसपी फूड सेल ने भेजी थी रिपोर्ट

गरीबों के नाम पर राशन घोटाला अंजाम देने वाले डीएसओ मेरठ के अधिकारियों व 63 राशन डीलरेां को लेकर जांच करने वाली फूड से के एसपी आईपीएस अधिकारी दयाशंकर मिश्रा ने 23 सितंबर 2019 को अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। इस रिपोर्ट में जांच में दोषी मनो गए सभी 63 राशन डीलरों समेत मेरठ जनपद के डीएसओ कार्यालय में कार्यरत दोषी पाए गए अधिकारियों पर भी एफआईआर व विभागीय कार्यवाही की बात कही गयी थी।

कार्रवाई के बजाए यह हुआ

वैसे तो होना चह चाहिए थे कि जब शासन के निर्देश पर सूबे की फूड सेल जैसी ऐजेंसी ने जांच कर रिपोर्ट प्रेषित कर दी थी तो बगैर देरी किए तत्कालीन डीएम व डीएसओ को कसूरवार ठहराए गए अधिकारियों जिनमें तत्कालीन डीएसओ भी  शामिल थे एफआईआर करा दी जानी चाहिए थी, लेकिन ऐवसा हुआ नहीं। इसके इतर शासन से मामले की एक ओर जांच कराए जाने के लिए तत्कालीन एक पत्र शासन को भिजवा दिया गया। जिसके चलते  फूड सेल की जांच रिपोर्ट में कसूरवार  ठहराए गए डीएसओ मेरठ कार्यालय में तैनात उन  अधिकारियों को एफआईआर से मुक्ति मिल गयी, लेकिन फूड सेल ने जिन 63 राशन डीलरों को कसूरवार माना उन्हें कोई रियायत नहीं दी गयी।

इन अधिकारियों का माना कसूरवार

डीएसओ कार्यालय मेरठ के जिन अधिकारियों को कसूरवार माना गया उनमें आशाराम तत्कालीन पूर्ति निरीक्षक तहसील सरधना। फूड सेल ने इन विभागीय कार्रवाई की भी संस्तुति की थी। नरेन्द्र सिंह क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी सरधना। इन पर भी विभागीय कार्यवाही की संस्तुति की गयी थी। विकास गौतम तत्कालीन डीएसओ जिन्हें निलंबित किया गया। अजय कुमार तत्कालीन पूर्ति अधकारी भी शामिल थी। इन सभी के खिलाफ फूड सेल ने अपनी जांच में धारा 120बी, 420,  407,  408, 471 फूड ऐल के एसपी ने उक्त रिपोर्ट तत्कालीन प्रमुख सचिद्य खाद्य मनीष चौहान को भेजी थी।

निष्कर्ष

इतने बड़े स्तर पर गरीबों के हक का राशन डकारने के लिए अंजाम दिए गए राशन घोटाले के आरोपी आज भी खुले घूम रहे हैं, इसके उलट जिन राशन डीलरों पर एफआईआर की गयी उन्होंने पुलिस से पीछा छुडाने के लिए अपनी जेबें ढीली कीं। शासन की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस नीति और घाेटाला करने वाले अधिकारियों का बचाव के लिए तमाम हथकंडे अपनाना सवाल तो बनता है

यह कहना है कि डीएसओ का

इस मामले को लेकर तत्कालीन डीएसओ से भी जब आरोपियों पर एफआईआर को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने जानकारी दी कि मामले की एक ओर जांच के लिए शासन को पत्र भेजा गया गया है, जब तक शासन स्तर से निस्तारण नहीं हो जाता तब तक कुछ भी आगे की कार्रवाई संभव नहीं है।

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कार्रवाई के बजाए आरोपी ठेकेदार की मजबूत पैरवी

FIR के बजाए ठेकेदार की पैरवीमिलने के मामले में बाजए आरोपियों पर कार्रवाई के खाद्यान अफसरों का रवैया उन्हें बचाने वाला है। बजाए कार्रवाई करने के खाद्यान अफसर उनकी पैरवी में उतर आए हैं, यह स्थिति तो तब है जब आयुक्त खाद्य उत्तर प्रदेश शासन का स्पष्ट आदेश है कि एफसीआई के गोदाम से खाद्यान उठाकर सीधे राशन डीलर तक पहुंचा जाए, लेकिन आयुक्त खाद्य उत्तर प्रदेश शासन के आदेशों का अनुपालन करने के बजाए पूरा महकमा आरोपी ठेकेदार के बचाव में उतर आया लगता है। ऐसा नहीं पहली बार गोदाम से चला खाद्यान इस प्रकार पकड़ा गया हो, करीब तीन माह पहले मवाना में भी इसी तर्ज पर करीब 19 कुंतल खाद्यान पकड़ा गया था, लेकिन उक्त मामले में भी बजाए कार्रवाई के लीपापोती कर दी गयी। एरिया थर्ड माधवपुरम में मिले खाद्यान को लेकर  जब एरिया राशनिंग अफसर पशुपति देव से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि उनमेंं गड़बड़ी जैसी कोई बात नहीं है, दरअसल एफसीआई के गोदाम से जब खाद्यान लाया जाता है तो कई ऐसे इलाके भी मेरठ महानगर में हैं जहां पर खाद्यान से भरे ट्रकों का पहुंचना संभव नहीं होता, इसीलिए कई बार माधवपुरम में जिस प्रकार से पेट्रोल पंप पर ट्रक खड़ा कर दिया गया था और वहां से तमाम राशन डीलर खाद्यान लेकर जा रहे थे, वैसा अन्य स्थानों पर भी होता रहा है, जब उनसे सवाल किया गया कि आयुक्त खाद्यान की ओर से जारी शासनादेश में स्टेप डोर डिलीवरी सिस्टम के तहत काम करने वाले ठेकेदारों को बीस फीसदी छोटे वाहन रखने की बात शर्त में अनिवार्य रूप से शामिल की गयी तो एआरओ ने बताया कि वह अभी पांच दिन के अवकाश पर हैं, इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।

यह है शासनादेश:-

खाद्य आयुक्त उत्तर प्रदेश शासन सौरभ बाबू के हस्ताक्षर से 20 मार्च 2023 को जारी शासनादेश में प्रदेश भर के जिलाधिकारी, संभागीय खाद्यन अधिकारी, जिला आपूर्ति अधिकारी व क्षेत्रीय विपणन अधिकारी को अवगत  कराया गया है कि सिंगल स्टेप डोर डिलिवरी सिस्टम प्रदेश भर में लागू कर दिया गया है। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद गोदाम से खाद्यान उठकर सीधे राशन डीलर की दुकान तक पहुंचाया जाता है, साथ ही जोर देकर कहा गया है कि इस व्यवस्था में लगे ठेकेदारों के लिए संकरी गलियों में जहां भारी भरकम ट्रक नहीं पहुंच पाते हैं, वहां संकरी गलियों में गोदाम से उठाए जाने वाले खाद्यान को राशन डीलर के पास पहुंचाने के लिए पच्चीस फीसदी छोटे वाहन रखना अनिवार्य है। आयुक्त खाद्य उत्तर प्रदेश शासन ने पत्र में कहा है कि शासन के संज्ञान में आया है कि गोदाम से उठाया जाने वाला खाद्यान सीधे राशन डीलरों तक पहुंचाने के बजाए हैण्डलिंग ठेकेदार द्वारा बीच में उतारा जा रहा है, इससे खाद्यान के काला बाजारी और डायवर्जन की पूरी आशंका बनी रहती है। आयुक्त खाद्य ने प्रदेश भर के खाद्यान अधिकारियों को हिदायत दी है कि हैण्डलिंग ठेकेदार संकरी गलियों में मौजूद राशन की दुकानों तक खाद्यान पहुंचाए यह बात सुनिश्चित की जाए, साथ ही यह भी जो भी हैण्डलिंग ठेकेदार बीच रास्ते में खाद्यान उतारते हैं उनके खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा-1955 के तहत धारा 3/7 के तहत एफआईआर दर्ज करायी जाए।—

कैंट बोर्ड व डीईओ की कारगुजारियां::——

मेरठ छावनी के बीआई लाइन स्थित बंगला 45 आर्मी हायरिंग पर है। छावनी क्षेत्र की जिस संपत्ति से आर्मी का कनेक्शन जुड़ जाता है, उसको लेकर जितनी संवेदनशीलता या कहें चौकसी कैंट प्रशासन के अफसरों से आमतौर पर बरती जानी चाहिए इस बंगले में वैसी सतर्कता बरती गयी हो, ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि यदि सतर्कता बरती गयी होती तो अवैध निर्माण का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। फिर ऐसा क्या कारण है कि जो आर्मी हायरिंग का जो बंगला रिज्यूम किया जाना चाहिए था, उसमें बड़ा अवैध निर्माण हो जाता है और इसको रोकने के लिए जिनकी जिम्मेदारी है, वो बजाए जेसीबी भेजने के हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।

नोटिस ताकि खुद रहे सलामत:

इस बंगले में कार्रवाई के नाम पर केवल इतना किया गया है कि रक्षा संपदा कार्यालय प्रशासन ने केवल बंगले के गेट पर कुछ माह पूर्व एक नोटिस चस्पा कर दिया था। नोटिस चस्पा किए जाने के बाद आगे कुछ कार्रवाई डीईओ सरीखे बड़े अफसर के स्तर से की गयी हो, ऐसा याद नहीं आता। वहीं दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि जिन बंगलों में दबंगई के चलते डीईओ या फिर कैंट बोर्ड के स्टाफ को भीतर नहीं घुसने दिया जाता, उन्हीं बंगलों पर नोटिस चस्पा किए जाते हैं। जानकारों का कहना है कि नोटिस-नोटिस का खेल तब होता है कि जब या तो अवैध निर्माण करने वालों से हाथ मिला लिया हो या फिर ऐसे मामलों में रक्षा मंत्रालय स्तर से जांच की स्थिति में खुद के बचने का रास्ता निकाला जा सके। इनमें से कौन सी बात सही है यह तो नोटिस चस्पा कराने वाले अधिकारी ही स्पष्ट कर सकते हैं। लेकिन इतना जरूर है कि इस नोटिस के बाद भी अवैध निर्माण को लेकर कोई रिजल्ट सामने आया हो, ऐसा नजर नहीं आता।

रिज्यूम किए जाने वाले बंगलों की सूची में शामिल

मेरठ छावनी के जिन बंगलों को रिज्यूम किया जाना है उनमें बीआई लाइन 45 बंगला भी शामिल है। इसकी पुष्टि विगत 3 मई 2021 को GE (North) कार्यालय से सब एरिया स्टेशन हेड क्वार्टर पश्चिम क्षेत्र को भेजे गए पत्र से होती है। इस पत्र में इस बंगले की भौगोलिक स्थिति को लेकर तमाम बातों से स्टेशन हैड क्वार्टर में बैठने वाले फौजी अफसरों को अवगत कराया गया है। जिन बातों का उल्लेख 3 मई 2021 को GE (North) कार्यालय से सब एरिया स्टेशन हेड क्वार्टर पश्चिम क्षेत्र को भेजे गए पत्र में किया गया है उन्हें वाकई गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है, लेकिन बड़ा सवाल यही कि क्या उन तमाम सवालों को जो पत्र में उठाए गए हैं गंभीरता से लेते हुए अवैध निर्माण से लवरेज बंगला 45 बीआई लाइन को रिज्यूम कराए जाने की पहल की जा सकेगी।

सेना के प्रोटोकाल ताक पर

छावनी क्षेत्र में जितने भी बंगले स्थित हैं उनकी भौगोलिक स्थिति खासतौर से बाउंड्री वाल को लेकर सेना ने कुछ प्रोटोकाल तय किए गए हैं, इसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकाल बंगलों की चार दीवारी की हाइट है, कई बार ऐसा होता है कि बंगले की चार दिवारी की हाईट  तो तय मानकों के अनुसार की करायी जाती है लेकिन उस हाईट के इतर दीवार के ऊपर लाेहे की ग्रील लगवा दी जाती हैं। उन ग्रील से ऊपर पेड़ों की हैज लगवा दी जाती है ताकि जो अवैध निर्माण कराया गया है उस पर नजर न जाए। सेना के बंगलों की बाउंड्री को लेकर तय किए गए प्रोटोकाल के मुताबिक बाउंड्री वाल इस प्रकार की होनी चाहिए कि बाहर से खड़े होकर पूरी बंगले का भीतर का नजारा किया जा सके, लेकिन बीआई लाइन 45 में ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता। इतना गंभीर वायलेंस होने के बाद भी बंगला रिज्यूम न किया जाना सवाल तो पूछा जाएगा।

अवैध निर्माण: एनजीटी व कोर्ट की सख्ती के बाद भी नहीं टूट रही अफसरों की नींद, एक ओर मेरठ महायोजना 2031 की धमाकेदार लॉचिंग की तैयारी दूसरी ओर महानगर में तेजी से पांव पसार रही अवैध कालोनियां और अवैध निर्माण। यह स्थिति तो तब है जब सुप्रीम कोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अवैध निर्माणों को लेकर सख्त है। यूं कहने को अवैध निर्माणों के खिलाफ प्राधिकरण प्रशासन की ओर से लगातार अभियान चलाए जाने के दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन तेजी शहर के आउटर इलाकों में कुकरमुक्तों की तरह उग आयीं अवैध कालोनियां इन दावों की पोल खोलने को काफी हैं। ऐसा भी नहीं कि कार्रवाई कतई नहीं हुई है, लेकिन सवाल कार्रवाई की टाइमिंग को लेकर है।

शुरू में चुप्पी क्यों:-

प्राधिकरण प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों पर इस बात का कोई उत्तर नहीं कि जब कोई अवैध कालोनी काटी जाती है उस वक्त ही ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। यदि शुरूआत में ही सख्ती बरती जाए तो शायद भूमाफियाओं के लिए भी नजीर बन सके। आमतौर पर हो यह रहा है कि कोई सख्त मिजाज अफसर यदि मेरठ विकास प्राधिकरण में आ जाएं तब अवैध कालोनियों पर कार्रवाई होती है या फिर तब जब शासन का चाबुक चलता है अथवा मीडिया अवैध कालोनियों काे लेकर लगातार सुर्खियां परोसता है।

लगातार बढ़ रहा है अवैध कालोनियों का कुनवा

महानगर में अवैध कालोनियों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। इस बात की तसदीक प्राधिकरण की ओर से करीब चार माह पूर्व जारी की गयी 366 अवैध कालोनियों की सूची से की जा सकती है। दरअसल हो यह रहा है कि शहर में तेजी से पनप रही अवैध कॉलोनियों को रोकने में मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) के पसीने छूट रहे हैं। लगातार अभियान के बावजूद इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। अब एमडीए ने सर्वे के बाद सभी 366 अवैध कॉलोनियों की सूची वेबसाइट पर अपलोड कर दी है। इसकी जानकारी शासन को भी दे दी है। एमडीए के मुख्य द्वार पर लगाई गई स्क्रीन पर प्रसारण शुरू कर दिया गया। एमडीए ने हाल ही में ड्रोन से सर्वे किया था, जिसमें 301 अवैध कॉलोनी सामने आई थीं। एमडीए उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय ने जोनवार फिर से सर्वे कराया, जिसमें 366 अवैध कॉलोनियां उजागर हुईं। इतना ही नहीं एमडीए के मुख्य प्रवेश द्वार के बराबर में लगाई गई डिस्प्ले पर अवैध कॉलोनियों का ब्योरा लगातार स्क्रीन पर डिस्प्ले किया जाता रहा।

ध्वस्त होने के बाद फिर बन गईं कॉलोनियां  
एमडीए की ओर से पिछले छह महीने में ही 123 अवैध कॉलोनियों को जमींदोज कर दिया गया। एमडीए की ओर से दी गई जानकारी में स्पष्ट भी किया गया है कि ध्वस्तीकरण किया जा चुका, लेकिन कई स्थानों पर फिर से कॉलोनी काटी जा रही हैं। एमडीए के अफसरों ने दावा किया था कि  50 करोड़ से अधिक की भूमि को कब्जा मुक्त कराया गया। इससे एक बात तो साफ है कि भूमाफिया केवल खेतों में ही अवैध कालोनियां नहीं काट रहे हैं बल्कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर अवैध कालोनियां भी काटी जा रही हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने गंभीर हैं। जोन डी में जिन प्रभावशाली भूमाफियाओं की कालोनियों को ध्वस्त किया गया था, उनमें से ज्यादातर में एक बार फिर काम शुरू कर दिय गया है। ग्राउंड जीरों पर पहुंचकर इसकी पुष्टि की जा सकती है।

हो चुके ध्वस्तीकरण के आदेश 

अवैध रूप से बनायी गयी कालोनियों को लेकर जब फजीहत होनी शुरू हुई और मीडिया की मार्फत कारगुजारियां शासन तक पहुंचने लगीं तो आनन-फानन में  एमडीए ने 366 अवैध कॉलोनियों का स्टेटस भी डाल दिया है। इसमें कई बड़े ग्रुप व नामी बिल्डरों की कॉलोनी शामिल हैं। 137 प्रकरण में जहां ध्वस्तीकरण के आदेश पारित कर दिए गए हैं तो 97 मामलों में सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे ही 57 मामलों में जहां चालान की कार्रवाई की गई तो वहीं कुछ में हाइकोर्ट में मामले विचाराधीन हैं और कुछ में स्टे भी है।

प्रमुख अवैध कॉलोनियां
अंसल टाउन, मोदीपुरम- 
मदनपाल व समरपाल द्वारा 60 हजार वर्ग गज में बसाई कालोनी को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
गोल्ड कॉस्ट कॉलोनी रोहटा रोड- भूपेंद्र बाजवा व जितेंद्र बाजवा द्वारा 2200 वर्ग गज में बनाई गई, ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
द्वारिकापुरी के सामने सिटी गार्डन के पास नूर नगर रोड पर कुंवर दिलशाद अली की सात हजार वर्ग मीटर में बनाई कॉलोनी के 22 मई 2019 व 8 दिसंबर 21 को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
हरमन सिटी बागपत रोड- मुकेश सिंघल, शेर सिंह, राकेश सैनी द्वारा 10 बीघा व अन्य 9 बीघा में बन रही कॉलोनी को 20.7.19 व 31.8.19 को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
ईशापुरम फेस-2 सिखेड़ा रोड- अभिषेक चौहान द्वारा सात हजार वर्ग गज में कॉलोनी बनाने के मामले में सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है।
अमोलिक एन्क्लेव फेस-2 ग्राम जेवरी-नीरज मित्तल, व अखिलेश गोयल द्वारा 32 हजार वर्ग गज में बनाई जा रही कॉलोनी, 15 दिसंबर 2020 को ध्वस्तीकरण किया।
सनराइज कॉलोनी बागपत रोड-ऋषिपाल यादव द्वारा चार हजार वर्ग मीटर में बनाई जा रही कॉलोनी के लिए 2 सितंबर 22 को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
खाटूधाम कॉलोनी रोहटा रोड-जरनैल सिंह द्वारा 28 हजार वर्ग गज में बसाई जा रही कॉलोनी पर सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है।
जामिया रेजीडेंसी बिजली बंबा बाईपास- दस हजार वर्ग मीटर में राहुल चौधरी तथा मौ. शादाब, हाजी सलीम व आलम द्वारा 2000 वर्ग मीटर में बनाई जा रही कॉलोनी के लिए 9 जून 2022 को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
एकता नगर रोशनपुर डोरली-कुलवीर सिंह द्वारा 4 हजार वर्ग गज में बसाई जा रही कॉलोनी को ध्वस्तीकरण आदेश पारित।
उदयकुंज उदय सिटी पल्लवपुरम फेस-2, वासुपुन्य डव्लपर्स द्वारा 20 हजार वर्ग मीटर में बसाई जा रही कॉलोनी को 6 मई 2022 को ध्वस्त कर दिया गया व एक अन्य मामले में सुनवाई प्रक्रिया चल रही है।
शिवधाम कॉलोनी भूड़बराल- अरविंद सिंघल व अमित सिंघल द्वारा 6000 वर्ग गज में बनाई जा रही कॉलोनी को 14 अप्रैल 2021 में ध्वस्तीकरण आदेश पारित।

ड्रोन ने खोल दी एमडीए के दावों की पोल- 12,349 अवैध निर्माण चिन्हित

बीते वर्ष प्रदेश के विकास प्राधिकरणों की कालोनियों में अवैध निर्माणों को लेकर यूपी सरकार के आवास एवं शहर नियोजन विभाग ने एक सर्वे कराया था। जिसमें मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) अवैध निर्माण के मामले में पूरे प्रदेश में छठे पायदान पर था। मेरठ की इस स्थिति को देखते हुए शासन ने सख्त निर्देश जारी किए। जिसके बाद मेडा ने अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। चार माह के दौरान शहर में 12 हजार से अधिक अवैध निर्माणों को चिन्हित कर उनकी सूची तैयार कर ली गई। मगर ये सूची एमडीए के किसी अधिकारी की मदद से नहीं बल्कि ड्रोन कैमरे की मदद से तैयार की गई है।बीते वर्ष प्रदेश के विकास प्राधिकरणों की कालोनियों में अवैध निर्माणों को लेकर यूपी सरकार के आवास एवं शहर नियोजन विभाग ने एक सर्वे कराया था। जिसमें मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) अवैध निर्माण के मामले में पूरे प्रदेश में छठे पायदान पर था। मेरठ की इस स्थिति को देखते हुए शासन ने सख्त निर्देश जारी किए। जिसके बाद मेडा ने अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। चार माह के दौरान शहर में 12 हजार से अधिक अवैध निर्माणों को चिन्हित कर उनकी सूची तैयार कर ली गई। मगर ये सूची एमडीए के किसी अधिकारी की मदद से नहीं बल्कि ड्रोन कैमरे की मदद से तैयार की गई है।

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तो क्या खामियों का अंबार है मेरठ महायोजना 2031-आपत्तियां मांगने वाले अफसर दूर करना भूले

-प्राधिकरण के अफसर दर्ज करायी गयी आपत्तियों पर क्यों साधे हैं चुप्पी

-आपत्तियों के निस्तारण के बगैर महायोजना को लागू किए जाने की जल्दीबाजी क्यों

शेखर शर्मा

मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसर जिस मेरठ महयोजना 2031 को लेकर जल्दबाजी में नजर आ रहे हैं, जानकारों की मानें तो वो मेरठ महायोजना दरअसल खामियों का अंबार है। ऐसा नहीं कि जिन खामियों की यहां बात की जा रही है उन खामियों से प्राधिकरण प्रशासन के आला अफसर बेखबर हैं। हकीकत तो यह है कि इन खामियों के सामने आने की शुरूआत ही तब हुई जब प्राधिकरण के अफसरों ने मेरठ महायोजना 2031 का खाका मेरठियों के सामने परोस कर कहा कि जो भी कमियां हैं या जहां आपत्ति है वो मेरठ के लोग दर्ज कराएं, उनको दूर किया जाएगा। ऐसा नहीं कि बहुत ही शार्ट नोटिस पर मेरठ महायोजना 2031 का जो खाका पेश किया गया लोगों ने तथा संस्थाओं ने उसका अध्ययन किया और बताया कि मेरठ महायोजना-2031 को तैयार करने में अफसरों से कहां-कहां चूक हो गयी है। कहां-कहां खामियां छोड़ दी गयी हैं। साथ ही यह भी आग्रह किया कि जो आपत्तियां दर्ज करायी गयी हैं, महायोजना को लागू करने से पहले उन तमाम खामियों को लेकर दर्ज की गयी आपत्तियों को दूर कर लिया जाए। यह बात अलग है कि आपत्तियां मांगने वाले अफसर उनको दूर करना भूल गए।

अफसरों की चूक या फिर कारगुजारी

मेरठ महयोजना 2031 की यदि बात की जाए तो इसको तैयार करने वाले अफसरों की काबलियत पर सवाल तो बनता है और सवाल पूछा भी जाना चाहिए। मेरठ की भौगोलिक स्थित की नव्ज पर अच्छी पकड़ रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विपुल सिंहल ने बताया कि मेरठ महायोजना-2031 की सबसे बड़ी जो खामी अफसरों ने छोड़ी है वो है महानगर के जो कारोबारी या कहें व्यवसायिक इलाके हैं जैसे बेगमपुल, बच्चापार्क, गढ रोड, ऐसे करीब दर्जन भर अन्य इलाके हैं जिन्हें महायोजना तैयार करने वाले अफसरों ने महायोजना में रिहायशी इलाके दर्शा दिया है। जबकि होना यह चाहिए था कि महानगर के जिस इलाके का जो स्वरूप है, उसको महायोजना में वैसा ही दर्शाया जाना था। लेकिन अफसरों ने वैसा नहीं किया।

टोकने पर भी सुधार नहीं

मेरठ महायोजना को लेकर आस्तीन चढ़ाए घूम रहे मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसरों से महायोजना तैयार करने में चूक की बात मानी जा सकती है, लेकिन बड़ा सवाल यही कि जो चूक की गयी है उसको सुधार करने से क्यों कन्नी काटी जा रही है। महानगर के जो बेगमपुल समेत कई अन्य इलाके जिनको महायोजना में आवासीय दर्शा दिया गया है, आपत्ति दर्ज किए जाने के बाद भी प्राधिकरण प्रशासन किस कारण से उनको ठीक नहीं करना चाहता है। इसके पीछे मंशा क्या है यह तो प्राधिकरण के अफसर ही बात सकते हैं।

लंबी हैं खामियों की सूची:

मेरठ महायोजना तैयार करने वाले अफसरों की काबलियत पर इसलिए भी सवाल उठना पड़ रहा है क्योंकि खामियां एक दो नहीं उनकी फेरिस्त लंबी है। भाजपा के नेता  व पूर्व पार्षद तथा बुलियन ट्रेडर्स एसोसिएशन के महामंत्री विजय आनंद अग्रवाल बताते हैं कि पुराना मेरठ पूरी तरह से विकसित है। यह कोई पचास साठ साल पुराना नहीं बल्कि यह मुगलों के दौरे से भी पहले अपनी जरूरत के हिसाब से पूर्ण विकसित शहरों की श्रेणी में आता है। देश की राजधानी दिल्ली के करीब होने की वजह से वैसे भी मेरठ की अहमियत कम नहीं है। मेरठ की जहां तक अहमियत व भाैगोलिक नजरिये से इसके विकसित होने की बात है तो इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने 1857 से पहले भारत के जिन शहरों में अपनी फौजी छावनियां बनायी थीं उनमें मेरठ प्रमुख था। यहां के बाजार और गलियां पूरी तरह से पहले से ही विकसित हैं। मुगलों से पहले का मेरठ, मुगलों के दाैर का मेरठ और उनके बाद अंग्रेजों के दौर का मेरठ शहर तथा बाद में 1947 स्वतंत्रता के बाद का मेरठ। मेरठ के यदि इतिहास की बात की जाए तो यह देश दुनिया के विकसित शहरों की तर्ज पर ही विकसित था। जहां तक मेरठ विकास प्राधिकरण की बात है तो मेरठ की जीवन यात्रा के सामने तो मेरठ विकास प्राधिकरण का कद अभी बहुत छोटा है। अब बात की जाए इसकी खामियां की तो यहां शाहघासा बाजार, शहर सर्राफा बाजार, वैली बाजार, खैरनगर बाजार, गुजरी बाजार, खंदक बाजार, बेगमपुल मार्केट सरीखे तमाम इलाके हैं सदियों से स्थापित बाजार हैं, लेकिन मेरठ महायोजना 2031 तैयार करने वाले अफसरों की कारगुजारियों की यदि बात की जाए तो इन तमाम इलाकों को महायोजना में आवासीय दर्शा दिया। इनका बाजार स्वरूप ही नष्ट कर दिया। विजय आनंद अग्रवाल बताते हैं कि महायोजना को लागू करने पर जो हास्यासपद  कायदे कानून शहर के लोगों पर थोप दिए गए हैं वो किसी भी दशा में स्वीकार्य नहीं है। मसलन पुराने शहर में यदि कोई अपने पुश्तैनी मकान को जो ध्वस्त होने को तैयार है उसको तोड़कर नए सिरे से मकान बनाता है तो उस पर शर्त थोप दी कि इतनी बैक साइड और इतना फ्रंट  व इतना रोड बाइंडिग में जाना होगा। पुराने शहर में जो पहले से दुरूस्त व्यवस्थाएं मौजूद है उनका बेहतर प्रबंधन करने के बजाए महायोजना तैयार करने वालों ने केवल अपना काबलियत में खामियों को ही प्रदर्शित करने का काम भर किया है। इससे बेहतर होता कि पुराने शहर के ड्रेनेज सिस्टम को दुरूस्त करते, कुछ ऐसा किया जाता कि पुराने शहर में बारिश में भी जलभराव न होने पता, लेकिन इनकी ओर महयोजना तैयार करने वाले अफसरों का कतई भी ध्यान नहीें है। इसलिए इसको केवल और केवल खामियों का पुलिंदा के अलावा कोई दूसरा नाम नहीं दिया जा सकता।

आवाज उठाने भी है जरूरी:-

महायोजना के नाम पर मेरठ प्राधिकरण के अफसरों ने जो कारगुजारी कर दी है, उस पर अब ज्यादा ध्यान न देकर इसको लेकर आपत्ति दर्ज करने वाले विपुल सिंहल, विजय आनंद अग्रवाल, लाेकेश अग्रवाल सरीखे लोगों का कहना है कि पुराने शहर का वजूद कायम रखने व महायोजना के अफसरों की कलई खोलने के लिए जरूरी है कि इसके खिलाफ मजबूत व संगठित होकर आवाज उठायी जाए। महायोजना की खामियों को लेकर बेहतर तो यह है कि अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए।

विपुल सिंहल का कहना है कि मेरठ महायोजना केवल और केवल खामियों का पुलिंदा है। इसके वर्तमान स्वरूप को बूते मेरठ के विकास की बात सोचना बेमाने है।

विजय आनंद अग्रवाल का कहना है कि अभी भी वक्त है इसमें संशोधन कर पुराने शहर के प्रबंधन की ओर मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसरों को ध्यान देना चाहिए।

लोकेश अग्रवाल का कहना है कि

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कार्रवाई के आदेश पर कार्रवाई कब, मेरठ में कचहरी के गेटों पर चल रही दो अवैध पार्किगों के खिलाफ एसपी सिटी ने कार्रवाई के आदेश दिए थे, लेकिन अपने ही अफसर के आदेशों को लेकर शहर का वीवीआईपी इलाके में तहत आने वाला सिविल लाइन सर्किंल कब कार्रवाई करेगा, यह जरूर एक बड़ा  सवाल है। अवैध पार्किंग के मुद्दे को लेकर इन दिनों वरिष्ठ अधिवक्ता अन्य मद्दों के साथ इन दिनों कलेक्ट्रेट में धरने पर हैं। वह लगातार कचहरी की अवैध पार्किगों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। उनका सवाल सीधे बार और प्रशासन से है कि किस के संरक्षण में ये अवैध पार्किंग संचालित की जा रही हैं। या फिर यह मान लिया जाए कि प्रशासन और बार का अवैध पार्किंग को खुला संरक्षण है। ऐसे ही कई अन्य मुददों को लेकर भी इन दिनों अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा सिस्टम को जगाने के लिए जून की तपती गर्मी के मौसम में कलेक्ट्रेट में धरना दे रहे हैं।

योगी सरकार के आदेश हैं तब यह हाल है

अवैध पार्किंग खासतौर से यातायात के लिए बनायी गयी सड़कों पर कोई स्टैंड नहीं होगा सूबे की योगी सरकार ने कुछ समय पूर्व ही इस आश्य के आदेश जारी किए थे, लेकिन सीएम के आदेशों को लेकर सिस्टम चलाने वाले कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा सड़कों पर संचालित अवैध पार्किंगों को देखकर लगाया जा सकता है। योगी सरकार का आदेश है कि  कोई भी वाहन पार्किंग और स्टैंड सड़क पर नहीं होंगे। आदेश का सख्ती से पालन कराने का निर्देश भी है लेकिन मेरठ शहर में अफसरों को शायद सरकार के इस आदेश की कोई परवाह नहीं है। एक तो जिम्मेदार विभागों के अफसरों ने जनता के लिए पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं की ऊपर से ऐसे अवैध पार्किंग स्थलों और स्टैंड के विरुद्ध कोई कार्रवाई भी नहीं की जो शहर में जाम का बड़ा कारण बन रहे हैं। नए मानकों के आते ही शहर में चल रही निगम की 28 में से 24 पार्किंग बंद हो गई। शहर को दस से ज्यादा स्थानों पर मल्टीलेवल पार्किंग की जरूरत है लेकिन निगम और एमडीए आज तक एक भी मल्टीलेवल पार्किंग की व्यवस्था नहीं कर पाएं हैं।

 पहले वैध थी आज अवैध

करीब  तीन साल पहले तक नगर निगम शहर में 28 स्थानों पर पार्किंग के ठेके छोड़ता था। इनमें से अधिकांश स्थान सड़कों के किनारे, अस्पतालों तथा अन्य बड़े भवनों के बाहर थे। लेकिन प्रदेश सरकार ने जैसे ही पार्किंग के लिए शौचालय, पेयजल, टीन शेड और अन्य सुविधाएं अनिवार्य करते हुए नए मानक जारी किए, वैसे ही निगम की पार्किंग फेल हो गईं। निगम को इनमें से 24 को बंद करना पड़ा। केवल चार स्थानों की पार्किंग ही नए मानकों का पालन कर पाई। आज भी केवल चार स्थानों पर निगम की पार्किंग चल रही हैैं। नगर निगम ने तो इन 24 स्थानों पर अपनी पार्किंग बंद कर दी लेकिन ऐसा नहीं है कि उक्त स्थानों पर वाहनों की पार्किंग बंद हो गई हो। पार्किंग आज भी होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ये वैध थीं आज अवैध।

ये हैं निगम की वैध पाकिंग

शहर की यातायात की सेहत के लिए मुसीबत बनीें सड़कों पर संचालित की जा रही अवैध पार्किंग का मुददा जब उठा है तो यह भी पूछा जाने लगा है कि कौन-कौन सी पार्किग नगर निगम द्वारा संचालित की जा रही हैं दरअसल  नगर निगम द्वारा वर्तमान में केवल सूरजकुंड पार्क, टाउन हाल परिसर, मिमहैंस अस्पताल तथा दयानंद अस्पताल के सामने आबूनाले को पाटकर की जा रही पार्किंग का ही ठेका दिया है। लेकिन शहर का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां पार्किंग न हो रही हो। पार्किंग शहर में चप्पे चप्पे पर है। उन्हें चलाने वाले लोग बाकायदा पर्ची भी काटते हैं लेकिन उसमें से एक भी पैसा निगम अथवा सरकारी खाते में नहीं जाता है।

पूरा शहर जाम

वाहनों की अवैध पार्किंग के चलते फिलहाल पूरा शहर जाम रहता है। सड़कों तथा बड़े बड़े कांप्लेक्स और भवनों के बाहर दो पहिया और चार पहिया वाहन सड़क के बीच तक खड़े रहते हैं। जिसके बाद सड़क पर ट्रैफिक के निकलने का स्थान मुश्किल से ही बच पाता है। सरकार ने सड़क और नाला पटरी पर पार्किंग न होने देने और अवैध पार्किंग हटाने का आदेश दिया है लेकिन अफसर हैैं कि उन्हें न सड़कों पर होने वाली पार्किंग दिखाई देती है और न ही उससे लगने वाला जाम।

कचहरी के चारों द्वारों पर भी पार्किंग

कचहरी के चार प्रवेश द्वार हैं। इन चारों पर ही वाहनों की पार्किंग होती थी। कलक्ट्रेट को जाने वाले द्वार पर निगम की पार्किंग थी जिसे बंद कर दिया गया लेकिन तीन द्वार पर पार्किंग का ठेका दोनों बार एसोसिएशन द्वारा दिया जाता है। भले ये तीनों पार्किंग मानक पूरे न करती हों लेकिन पार्किंग बदस्तूर जारी है। इन्हें रोकने की हिम्मत निगम और पुलिस दोनों में से कोई नहीं कर पा रहा है। यह बात अलग है कि मेरठ बार एसोसिएशन ने हाल ही में हनुमान मंदिर के सामने प्रवेश द्वार पर संचालित होने वाली पार्किंग का ठेका निरस्त करने की घोषणा की थी।

नहीं दे पाए एक भी मल्टीलेवल

शहर में वाहनों का दबाव इतना है कि एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर मल्टीलेवल पार्किंग की आवश्यक्ता है। लेकिन निगम एक भी स्थान पर अभी तक मल्टीलेवल पार्किंग उपलब्ध नहीं करा सका है। जब कहीं स्थान प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली तो निगम ने अपने कार्यालय परिसर में ही मल्टीलेवल पार्किंग का 46 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया। यह बात अलग है कि इस पर शासन स्तर से आज तक कोई जवाब नहीं मिला है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता व भाजपा के पूर्व पार्षद तथा मेरठ बुलियन ट्रेडर्स एसोसिएशन के महामंत्री विजय आनंद अग्रवाल बताते हैं कि मेरठ महानगर मे मल्टीलेबल पार्किंग पर अभी रोक है।

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