फंसे हैं सीबीआई जांच में फिर भी.., पहले से ही सीबीआई की जांच और उससे पहले रक्षा मंत्रालय के आदेश पर पीडी मध्य कमान द्वारा डायरेक्टर डा. डीएन यादव की जांच इतना ही नहीं इन सब के इतर मेरठ कैंट बोर्ड के द्वारा चालान और सील सरीखी कार्रवाई, इतना कुछ होने के बाद भी पीवीएनएल के अफसरों द्वारा बगैर किसी एनओसी के मेरठ छावनी स्थित कुछ आवासीय बंगलों में अवैध निर्माण कर बनाए गए व्यवसायिक कांप्लैक्सों व होटलों को व्यवसायिक कनैक्शन का दिया जाना, कई सवाल खड़े करता है। हालांकि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में ऊर्जा राज्य मंत्री ने इस संवाददाता को स्पष्ट बताया कि व्यवसायिक कनैक्शन के लिए कैंट बोर्ड की एनओसी सबसे पहले अनिवार्य है। बगैर कैंट बोर्ड की एनओसी किसी भी होटल या व्यवसायिक कांप्लैक्स को कनैक्शन नहीं दिया जा सकता ना दिया जाना चाहिए, यदि ऐसा कोई कनैक्शन दिया गया है तो वह शिकायत आने पर इसकी जरूर जांच कराएंगे और केवल जांच ही नहीं कराएंगे बल्कि संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी भी तय होगी।
मेरठ छावनी के वो बंगले:
तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर जिन बंगलों में किए गए अवैध निर्माणों के बाद वहां व्यवसायिक कनैक्शन दिए गए हैं उनमें सबसे ज्यादा चर्चित बाउंड्री रोड स्थित बंगला 22-बी है। इसके अलावा सरकुलर रोड स्थित बंगला 262 जो अब व्हाईट हाउस बन गया है। आबूलेन स्थित बंगला-173 व बंगला 182 जय प्लाजा, कैंट बोर्ड से चंद कदम की दूरी पर रजबन निकट सेंट मेरी गोल्डन स्पून रेस्टोरेंट, सदर शिव चौक स्थित मल्टीनेशन कंपनी के शोरूम, सरकुल रोड स्थित एफटीसी आदि कई ऐसे अवैध व्यवसायिक निर्माण हैं जिन्हें पीवीएनएल ने बगैर कैंट बोर्ड की एनओसी के ही व्यवसायिक कनैक्शन दे दिए हैं।
विवादित बंगले और उनका स्टेटस:
अब यदि इन बंगलों के स्टेटस की बात की जाए तो उपरोक्त के अलावा मेरठ छावनी स्थित कई ऐसे व्यवसायिक कांप्लैक्स है जो तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर अवैध रूप से निर्माण किए गए हैं। इन सभी में सब डिवीजन ऑफ साइट, चेंज आफ परपज, अवैध निर्माण जैसे गंभीर मामले हैं।
बाउंड्री रोड होटल 22-बी:
बाउंड्री रोड स्थित 22-बी से मेरठ छावनी का सबसे विवादित बंगला रहा है। हाईकोर्ट ने इसकाे ध्वस्त किए जाने का आदेश दिया है। अवैध निर्माण करने वालों ने हाईकोर्ट को भरोसा दिलाया था कि ध्वस्त न किया जाए, इसमें अवैध निर्माण नहीं किया जाएगा, लेकिन राहत मिलते ही वहां तेजी से दिन रात अवैध निर्माण कर होटल 22-बी बना डाला गया। इतना ही नहीं जिस कैंट बोर्ड को इसको ध्वस्त करना था उन्होंने 22-बी को ट्रेड लाइसेंस जारी करने का गुनाह किया। इस गुनाह में एक दो नहीं बल्कि सभी बराबर के कसूरवार थे। पीडी मध्य कमान लखनऊ के निर्देश पर जब डायरेक्टर डीएन यादव अवैध निर्माणों की जांच को मेरठ आए तो उन्होंने 22-बी को ट्रेड लाइसेंस जारी करने कैंट बोर्ड के गुनाह से पर्दा उठा दिया। कारगुजारी की गूंज लखनऊ तक सुनाई दी। आनन-फानन में ट्रेड लाइसेंस निरस्त करने के आदेश दे दिए गए। जो इस खेल के किरदार थे, उन्हें सजा भी सुना दी गयी, यह बात अलग है कि बाद में सजा को राहत में बदल दिया गया। उस दौरान 22 बी पर सील लगाए जाने के आदेश जारी किए गए। सील लगाने के नाम पर जो इंवेट आयोजित किया वह सबके सामने है बात ज्यादा पुरानी नहीं है। इतना कुछ होने के बाद भी 22 बी को व्यवसायिक कनैक्शन जारी करने वाले पीवीएनएल अफसरों ने एनओसी की जरूरत नहीं समझी।
सरकुलर रोड व्हाईट हाउस:
सरकुलर रोड स्थित व्हाइट हाउस कुछ समय पहले तक बंगला 262 हुआ करता था। इसमें माप-ताल विभाग का पुराना दफ्तर था। हरी भरी मेरठ छावनी को कंकरीट के जंगल में बदलने पर उतारू लोगों की नजर जब इस बंगले पर पड़ी तो सब डिवीजन आफ साइट व चेंज आफ परपज करते हुए बंगले में अवैध निर्माण शुरू करा दिया गया। अवैध निर्माण की खबर जब मीडिया की सुर्खी बनीं तो तत्कालीन सीईओ कैंट बोर्ड प्रसाद चव्हाण ने इंजीनियरिंग सेक्शन के जेई को साथ लेकर मौके पर छापा मारा तो वहां अवैध निर्माण पाया गया। तेजी से काम जारी था। सीईओ ने छापा मारा था तो कुछ दिन तो काम रोका ही जाना था और किया भी ऐसा ही गया। कुछ समय काम बंद रहा। उसके बाद न जाने क्या हुआ कि सीईओ प्रसाद चव्हाण भी यही रहे और अवैध निर्माण करने वाले भी, देखते ही देखते व्हाईट हाउस बनकर तैयार हो गया। आज इसमें व्यवसायिक गतिविधियां पूरे जोरशोर से जारी हैं। न कोई रोकने वाला ना कोई टोकने वाला। दरअसल यह सब सेटिंग है तो गेटिंग है की तर्ज पर संभव हो सका। इसको भी व्यसायिक कनेक्शन जारी करते वक्त किसी एनओसी की दरकार नहीं की गयी।
आबूलेन 173 जय व 182 जय प्लाजा:
आबूलेन स्थित बंगला 173 जिसमें दो बड़े शोरूम बना दिए गए हैं तथा 182 जय प्लाजा जिसमें आज भी अवैध निर्माण का सिलसिला जारी है। बंगला-173 की कहानी और इस कहानी के कैंट बोर्ड के किरदार तो बेहद गजब हैं। फाइलों में बंगला-173 सील रहा। सील लगे लगे इसमें लैंटर भी डाल दिया गया और वहां दो भव्य शोरूम भी बना दिए गए। इसको लेकर जब मीडिया में किरकिरी होने लगी तो कैँट बोर्ड प्रशासन ने कार्रवाई कार्रवाई खेलना शुरू कर दिया। तय किया गया कि हाईकोर्ट की अवमानना का नोटिस दिया जाए, लेकिन जब नोटिस की बारी आयी तो कैंट बोर्ड के किरदारों ने खेल करते हुए बजाए 173 आबूलेन के उसके पड़ौस वाले एड्रस पर नोटिस भेज दिए। जिस एड्रस पर नोटिस भेजा गया, वहां को लेकर जब कोर्ट ने तलब किया तो अवैध निर्माण करने वालों ने कह दिया कि हम तो उस एड्रेस पर रहते ही नहीं, न ही वहां के अवैध निर्माण से कुछ लेना देना है।सेटिग गेटिंग हो तो इस प्रकार की राहत आसानी से हासिल की जा सकती हैं। आबूलेन-173 के अवैध निर्माण को कराने और बचाने में कैंट बोर्ड के तत्कालीन निर्वाचित सदस्य भी कम कसूरवार नहीं। दरअसल इस अवैध निर्माण की जड़ ही कैंट बोर्ड के तत्कालीन सदस्य हैं। इससे ही कुछ मिलता जुलता खेल आबूलेन स्थित बंगला 182 को लेकर भी किया गया। इसमें तो आज भी अवैध निर्माण जारी है। आबूलेन के इन दोनो ही बंगलों में किए गए अवैध व्यवसायिक निर्माणों को कैंट बोर्ड की एनओसी के बगैर ही पीवीएनएल ने अपनी मेहरबानियां दिखाते हुए बिजली का कनैक्शन दे दिया। बाकि जहां जहां व्यवसायिक कनैक्शन जिनका उल्लेख किया गया है उनमें किसी में भी एनओसी मांगी गयी हो ऐसा जान नहीं पड़ता।
वर्जन
शासन का स्पष्ट आदेश है कि व्यवसायिक कनैशन से पूर्व संबंधित स्थानीय निकाय की एनओसी ली जाए। मामला मेरठ छावनी से संबंधित है तो कैंट बोर्ड की एनओसी व्यवसायिक कनैक्शन दिए जाने से पहले बेहद जरूरी है। यदि इस मामले में किसी ने लिखित शिकायत की तो जांच करायी जाएगी। जांच में यदि आरोप सही पाए गए तो कठोर कार्रवाई भी तय है।
सोमेन्द्र तोमर
ऊर्जा राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश शासन