समरकंद का दरिंदा, दिल्ली की शान ओ शौकत और यहां के लोगों की अमीरी के किस्सों ने लुटेरे तैमूर लंग को बैचेन कर दिया था। समरकंद से करीब हजार किलोमीटर दूर दिल्ली पहुंचने के लिए वो बुरी तरह बेताब था। उसने दिल्ली पर कूच करने के लिए 90,000 सैनिक समरकंद में जमा किए। इतनी बडी संख्या में जब फौजी जमा हुए तो हुए तो पूरे समरकंद शहर में धूल ही धूल फैल गई. दिल्ली समरकंद के दक्षिण-पूर्व में था वहाँ से करीब 1,000 मील दूर.दिल्ली तक पहुंचने का रास्ता शायद दुनिया का सबसे कठिन रास्ता था जो हिंदुकुश की पहाड़ियों के ऊपर से होकर जाता था जिसके आसपास वो लोग रहते थे जिनको सिकंदर महान भी झुका पाने में कामयाब नहीं हुए थे. दिल्ली पहुंचने से पहले रास्ते में तैमूर ने करीब एक लाख हिंदू लोगों को बंदी बना लिया. तब अफगानिस्तान और उससे सटे इलाकों में बड़ी संख्या में हिन्दुओं का बसेरा था। तैमूर और दिल्ली के सैनिकों की पहली झड़प तब हुई जब तैमूर के 700 सैनिकों के अग्रिम दस्ते पर मल्लू ख़ाँ के सैनिकों ने हमला किया.
उस समय दिल्ली पर सुल्तान मोहम्मद शाह राज कर रहे थे लेकिन वास्तविक प्रशासन उनके खास मल्लू ख़ां के नियंत्रण में था.” तैमूर को डर था कि अगर मल्लू ख़ां के सैनिक उन पर हमला करते हैं तो उनके साथ चल रहे एक लाख हिंदू बंदी उनका हौसला बढ़ाएंगे और उनके समर्थन में उठ खड़े होंगे.
“तैमूर को अपनी सेना के पीछे चल रहे इन बंदियों के विद्रोह का इतना डर था कि उसने उसी जगह पर एक एक बंदी को मारने का आदेश दे दिया. तैमूर के साथ चल रहे धार्मिक मौलानाओं तक की ड्यूटी लगाई गई कि वो इन बंदियों की अपने हाथ से हत्या करें.”17 दिसंबर, 1398 को मल्लू ख़ाँ और सुल्तान महमूद की सेना तैमूर की सेना से लड़ने दिल्ली गेट से बाहर निकली. तैमूर लड़ाई का नेतृत्व क़ुर्रा ख़ाँ को देकर खुद लड़ाई में कूद पड़ा. तैमूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मैंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी थाम ली. मैं दाएं बाएं तलवार और कुल्हाड़ी चलाता हुआ चल रहा था.
मैंने हैरान होकर मशाल की रोशनी में अपना हाथ देखा. तो पता चला कि एड़ के हाथ से फिसलने के कारण मेरा खुद का ख़ून था जिससे मेरा हाथ भीग गया था. मैंने अपने ऊपर नज़र डाली तो मेरे सारे कपड़े ख़ून से तरबतर थे. मुझे लगा जैसे किसी ख़ून के तालाब में फेंक कर मुझे बाहर निकाला गया है. तैमूर के फौजी दिल्ली में दाखिल हो चुके थे। उन्होंने दरिंदगी मचानी शुरू कर दी। उनके निशाने पर केवल हिन्दू ही नहीं मुसलमानों की भी बहन बेटियां थीं। वो खूंखार दरिंदे की तरह पेश आ रहे थे। सरेआम महिलाओं को नंगा किया जा रहा था। उनकी आबरू से खेला जा रहा था। ऐसा वो दिल्ली पर अपनी दहशत कायम करने को कर रहे थे। तैमूर के सैनिकों ने घर घर जा कर ये बताना शुरू कर दिया कि उन्हें कितना हरज़ाना देना होगा.हिंदुओं ने जब देखा कि उनकी महिलाओं की बेइज़्ज़ती की जा रही है और उनके धन को लूटा जा रहा है तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर अपने ही घरों में आग लगा दी. यही नहीं वो अपनी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर तैमूर के सैनिकों पर टूट पड़े. इसके बाद तो दिल्ली में वो नरसंहार देखने में आया कि सड़कों पर लाशों के ढेर लग गए. तैमूर की पूरी सेना दिल्ली में तमाम गलियों व मोहल्लों में भूखे भेडियों की तरह घूमने लगी।. थोड़ी देर में दिल्लीवासियों ने हथियार डाल दिए.”मंगोलों ने दिल्ली वासियों को पुरानी दिल्ली तक खदेड़ दिया जहाँ उन्होंने एक मस्जिद के अहाते में शरण ली. इतिहासकार जस्टिन मरोज़ी लिखते हैं, “तैमूर के 500 सैनिकों और दो अमीरों ने मस्जिद पर हमला कर वहाँ शरण लिए हुए एक एक व्यक्ति को मार डाला. उन्होंने उनके काटे हुए सिरों की एक मीनार सी बना दी और उनके कटे हुए शरीर चील और कव्वों के लिए खाने के लिए छोड़ दिए. लगातार तीन दिनों तक ये क़त्ल ए आम चलता रहा.”तातार सैनिक दिल्लीवासियों पर इस तरह टूटे जैसे भूखे भेड़ियों का झुंड भेड़ों के समूह पर टूटता है.” नतीजा ये रहा कि अपनी धन-दौलत, जवाहरातों और इत्र के लिए मशहूर दिल्ली जलते हुए नर्क में बदल गई जिसके कोने कोने से सड़ रही लाशों की बदबू आ रही थी.
दिल्ली पूरी तरह से बरबाद हो गई. वहाँ बच गए लोग भुखमरी से मरने लगे और करीब दो महीनों तक पक्षियों तक ने दिल्ली का रुख़ नहीं किया.
दिल्ली को उस हालत से उबरने में पूरे 100 सालों का समय लग गया. ये थी कहानी समरकंद के दरिंदे तैमूर की। ऐसी ही एक और कहानी के साथ आपसे शीघ्र रूबरू होंगे तब तक न्यूज ट्रैकर 24 के लिए शेखर शर्मा को अज्ञात दीजिए। आपसे विनम्र आग्रह है कि चैनल सब्सक्राइब अवश्य करें।