जब प्रोफेसर ही नहीं है तो कौन है पढ़ा रहा, सूबे के टॉप मेडिकल में शुमार एलएलआरएम मेडिकल कालेज में रेडियोलॉजी विभाग में पीजी व डिप्लोमा की सीट भी हैं और पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट भी हैं, लेकिन रेडियोलॉजी की पढाई कराने वाले प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर नहीं है, इसीलिए यह सवाल पूछा जा रहा है कि जब प्रोफेसर ही नहीं है तो फिर पढ़ा कौन रहा है। नौबत केवल यहीं तक नहीं है, सबसे बड़Þी मुसीबत तो मेडिकल के लाला लाजपत राय अस्ताल में आने वाले मरीजों के अल्ट्रासाउंड की रिपोटिंग की है। रिपोटिंग तभी संभव है जब वहां प्रोफेसर हों। यह स्थिति हफ्ता दो हफ्ता या महीना दो चार महिना नहीं बल्कि करीब चार साल से है। मसलन जब से रेडियोलाजी विभाग की एचओडी रहीं डा. यासमीन को सहारनपुर मेडिकल भेजा गया है तब से मेडिकल के रेडियोलॉजी विभाग की गाड़ी बेपटरी है। इसके इतर यदि स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो रेडियोलॉजी सरीखे विभागों में भले ही हालात कैसे भी हों, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में प्रिंसिपल डा. आर.सी. गुप्ता की बदौलत एलएलआरएम का डंका चारों ओर बज रहा है।
पहले डा. अनीता अनेजा फिर डा. यासमीन और फिर सन्नाटा
मेडिकल के रेडियोलॉजी विभाग की यदि बात की जाए तो बतौर एचओडी लंबी पारी खेलने वाली डा. यासमीन से पहले इस बेहद महत्वपूर्ण डिपोर्टमेंट का जिम्मा डा. अनीता अनेजा के कंधों पर था। सहारनपुर मेडिकल कालेज बन जाने के बाद डा. अनीता अनेजा को वहां प्रिसिपल बनाकर भेज दिया गया। उसके बाद एलएलआरएम के रेडियोलॉजी विभाग की जिम्मेदारी डा. यासमीन के कंधों पर आ गयी। वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि डा. अनीता अनेजा को बतौर सहारनपुर जाना कोई खास रास नहीं आया। वह वहां लंबे वक्त तक नहीं टिक सकीं। कुछ समय बाद उन्हें गौतमबुद्ध नगर में बनाए गए नए मेडिकल में बतौर प्रिंसिपल भेज दिया गया। बाद में उन्हें फिरोजाबाद मेडिकल कालेज भेज दिया गया। लेकिन वहां का अनुभव बेहद खद्टा साबित हुआ। दरअसल एक स्टेडेंट की मौत मामले के चलते उन्हें नोएडा अटैच कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर एलएलआरएम से डा. यासमीन के जाने के साथ ही रेडियोलॉजी विभाग के बुरे दिन ओर रेडियोलॉजी की पढाई करने वाले स्टूडेंट की मुश्किलें शुरू हो गयीं।
कारगर साबित नहीं हो पा रही वैकल्पिक व्यवस्था
रेडियोलॉजी विभाग की पीजी व डिप्लोमा की पढाई करने वाले स्टूडेंट की मदद के लिए हालांकि एलएलआरएम प्रशासन की ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्थाएं उधार का सिंदूर सरीखी साबित हो रही हैं। हालांकि कुछ स्टूडेंट प्राइवेट कोचिंग भी ले रहे हैं, लेकिन जो बात फुल फ्Þलैश एचओडी की होती है वह बात नहीं आ पा रही है।
यह कहना है मेडिकल प्राचार्य का
इस संबंध में जब एलएलआरएम मेडिकल के प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता से बात की गयी तो वह भी रेडियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर की कमी को लेकर चिंतित नजर आए। उन्होंने बताया कि कई पत्र शासन को लिखे जा चुके हैं। डा. आरसी गुप्ता ने बताया कि दरअसल प्रदेश भर में बड़ी संख्या में नए-नए मेडिकल खुल रहे हैं। उसके चलते यह परेशानी आ रही है। सभी मेडिकलों को चलाना भी है, इसलिए स्टाफ की कमी है लेकिन उम्मीद है कि शीघ्र ही यह कमी दूर होगी। उन्होंने बताया कि यदि रेडियोलॉजी के लिए एचओडी व प्रोफेसर की कमी पूरी कर दी जाए तो निश्चित रूप से सीटें बढ़ जाएंगी।