है उसकी आदत डरा रहा है-है मेरी फितर डरा नहीं हूं, लोकसभ चुनाव परिणाम आ गए हैं, नरेन्द्र मोदी तीसरी बार पीएम बन गए हैं, लेकिन सत्ता का जो जश्न चेहरे पर नजर आना चाहिए वो नजर नहीं आ रहा है। यूपी में इंडिया गठबंधन के बड़े घटक दल समाजवादी पार्टी का उदय और चुनावी नतीजोंं में अस्ताचल की ओर जाती भाजपा और इनके बीच खुद को संभालने का प्रयास करती नजर आती कांग्रेस राजनीतिक विश्लेषक इसको आने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भगवा पार्टी के लिए बड़े खतरे की घंटी मान रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भगवा पार्टी और उसके खैर-ओ-ख्वाह यूपी में जो गत बनी है उसको पचा नहीं पा रहे हैं लेकिन इसके बाद भी सच से भागने की लगातार नाकाम कोशिशों में लगे हैं। इंडिया गठबंधन खासतौर पर कांग्रेस को गलत प्रचार करने का कसूरवार ठहरा रहे हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि संविधान को लेकर कांग्रेस ने गलत प्रचार किया। लेकिन जो इस प्रकार की बातें कर रहे हैं उन्हें एक बार भाजपा नेताओं के चुनाव में दिए भाषणों का जरूर अध्ययन कर लेना चाहिए जिसमें कुछ ने प्रचार के दौरान बाकायदा मंच से कहा कि संविधान बदलने के लिए चार सौ सीटें चाहिए। संविधान पर कथित रूप से भाजपा की ओर से आसन्न खतरे का प्रचार करने की बात कुछ हद तक समझ में आ सकती है यह आरोप ठीक भी है, लेकिन उसका क्या जो चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं ने कहा मसलन यदि कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो
दलितों व पिछड़ों का आरक्षण मुसलमानों को दे दिए जाने, महिलाओं का मंगलसूत्र और जानें क्या-क्या छिन जाने, यहां तक कि भैंस खुल जाने और राम मंदिर में बाबरी ताला लटक जाने का डर दिखाकर कौन-सी साइकोसिस पैदा कर रहे थे और क्या सबसे पहले उनके लोगों ने ही यह कहना नहीं शुरू किया था कि उनकी सरकार तो 272 सीटों से भी बन जाएगी, चार सौ पार सीटें तो संविधान बदलने के लिए चाहिए। भाजपा के हित चिंतकों से लोकसभा चुनाव में जो गत बनी है पचायी नहीं जा रही है। सबसे ज्यादा टीस तो अमेठी के हाथों स्मृति इरानी की हार की है, जिन्हें गांधी परिवार के करीबी समझे जाने वाले किशोरी लाल शर्मा ने बुरी तरह से हरा दिया। किशोरी लाल शर्मा के हाथों ने स्मृति को हरवाकर कांग्रेस ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं उनका जिक्र यहां करना मुनासिब नहीं होगा। केवल स्मृति इरानी ही नहीं बल्कि वेस्ट यूपी की बात करें तो केंद्रीय मंत्री संजीव वालियान की करारी हार के साथ साथ इकरा हसन व रशीद मसूद की जीत ने केवल भाजपा ही नहीं रालोद प्रमुख के लिए भी कुंठा पराेसने का काम किया है। लेकिन यहां बात किसी प्रत्याशी विशेष की हार जीत की नहीं बल्कि चुनावी मुददों तक सीमित रखनी है। भगवान राम की नगरी अध्योध्या में मिली करारी हार को कैसे पचाएंगे। राम मंदिर के नाम पर तो पूरा चुनाव लड़ा गया। मंदिर बनवा दिया है इसको जितना प्रचारित कर सकते थे किया, यह बात अलग है कि अयाेध्यावासियों ने इसको नकार दिया। नकरा तो भाजपाई अयाेध्यावासियों पर पर खींज उतारने पर उतर आए हैं। अयोध्यावासियों को जली-कटी सुनाकर हार कह खीझ उतारी जा रही है, जिसका यहा उल्लेख भी नहीं किया जा सकता। क्यों कहा जा रहा है कि न वे भगवान राम के हुए, न उनकी पांच सौ साल की प्रतीक्षा खत्म कराने वालों के क्यों इसके लिए उनकी भगवान राम की प्रजा से तुलना की जा रही है क्या इसलिए उन्हें प्रजा ही बनाए रखने का ‘इरादा’ है- नागरिक नहीं बनने देना। लेकिन ऐसा करने वालों से सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि चुनाव प्रचार के दौरान जानबूझकर हिंदू-मुसलमान करते घूम रहे भाजपा के तमाम बड़े नेता ‘इंडिया’ के सत्ता में आने पर दलितों व पिछड़ों का आरक्षण मुसलमानों को दे दिए जाने, महिलाओं का मंगलसूत्र और जानें क्या-क्या छिन जाने, यहां तक कि भैंस खुल जाने और राम मंदिर में बाबरी ताला लटक जाने का डर दिखाकर कौन-सी साइकोसिस पैदा कर रहे थे और क्या सबसे पहले उनके लोगों ने ही यह कहना नहीं शुरू किया था कि उनकी सरकार तो 272 सीटों से भी बन जाएगी, चार सौ पार सीटें तो संविधान बदलने के लिए चाहिए। डर दिखाने काे प्रयास पर जिन्होंने पानी फेरा उनके लिए एक शेर तो बनता है। मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब आज दुनिया में नहीं है, लेकिन इस मौके पर उनका शेर जरूर उनकी मौजदूगी दर्ज करता है:-
अभी गनीमत है सब्र मेरा-अभी लबा लब भरा नहीं हूं, वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं। वो कह रहा है मिटा के रख दूंगा कुछ दिनों में नस्ल तेरी, है उसकी आदत डरा रहा है, है मेरी फिरत डरा नहीं हूं।।