गौरव तो अपने बूते पर निकालते रथयात्रा, सदर के बिल्लवेश्वर महादेव मंदिर से निकाली जाने वाली रथयात्रा को लेकर जाे कुछ चल रहा है उससे सदर ही नहीं पूरे मेरठ के श्रद्धालु खिन्न हैं। उनका कहना है कि यदि गौरव गोयल एडवोकेट जिम्मेदारी ले रहे हैं तो फिर पुलिस प्रशासन के अधिकारी क्यों पीछे हट रहे हैं। गौरव गाेयल को ही जिम्मेदारी दे दी जाए्। ना तो चंदे की लफ्डा होगा ना कोई अन्य मुसीबत होगी। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है यह दुखद है।मेरठ में 200 साल से सदर स्थित बिल्वेश्वर नाथ मंदिर से निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर कमेटियों की वर्चस्व की लड़ाई में बंदिश लगा दी गई है। जो यात्रा 1987 के दंगों में भी शहर में धूमधाम से निकाली गई थी, उसे अब मंदिर परिसर तक ही सीमित रखने का फैसला लिया गया है। इस बार शहर में यात्रा नहीं निकाली जाएगी। दरअसल में बुधवार को भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर से निकलने वाली रथ यात्रा के लिए अपर जिलाअधिकारी नगर मेरठ के यहां दोनों पक्षों की वार्ता हुई। वार्ता में यात्रा निकालने की योजना थी जिसका संचालन थाना सदर बाजार के इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना था। किंतु पंडित गणेश शर्मा व संजय बाजपेई ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए स्पष्ट कहा की यात्रा हम निकालेंगे वरना यात्रा नहीं निकलने देंगे। इस कारण से थाना सदर बाजार इंस्पेक्टर शशांक द्विवेदी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यदि यात्रा में कोई झगड़ा होता है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। इस कारण से अपर जिला अधिकारी नगर ने उनके प्रस्ताव पर यानी गणेश शर्मा के प्रस्ताव पर यात्रा को कैंसिल कर दिया और केवल विष्णु शर्मा ही रथ पर बैठेंगे ऐसा कहते हुए मंदिर प्रांगण में ही यात्रा का संचालन करने का निर्देश दिया। जिसे सभी पक्षों ने स्वीकार कर लिया क्योंकि ऐसी पुजारी की मंशा थी की यात्रा न निकले वहीं उन्होंने फिर आदेश कर दिए।
वहीं दूसरी विवाद के निपटारे के नाम पर की गयी इस व्यवस्था से सदर के लोग खिन्न हैं। उनका कहना था कि जो लोग पूर्व में यह यात्रा निकालते रहे हैं यदि विवाद को निपटाना ही था तो इस साल भी उन्हीं को जिम्मेदारी दे दी जाती। इससे दो काम होते एक तो चंदा जमा करने का लफ्ड़ा नहीं होता। एडवोकेट गौरव गोयल स्वयं सारी व्यवस्था कर लेते और दूसरी ओर पूर्व के सालों की भांति निर्विध्न आयोजन संपन्न हो जाता। यह मामला इसलिए भी तूल पकड़ गया बताया जाता है क्योंकि पर्दे के पीछे से मंत्री स्तर के प्रभावशालियों का इसमेंं दखल करा दिया गया। प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों तक को पत्र प्रेषित करा दिए गए। उसके बाद जो नहीं होना चाहिए थो वो सब हो गया। रथयात्रा अब मंदिर प्रांगण तक सीमित रह गयी।