पति की मौत से ज्यादा महकमे की कारगुजारी का दर्द, मेरठ / कार्यप्रणाली व लालफीता शाही के लिए अक्सर सीनियर के निशाने पर रहने वाले बीएसए आॅफिस में बैठने वाले अफसरों की मनमानी की कीमत मृतक आश्रित कोट में नौकरी के लिए भटक रही विधवा को चुकानी पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर मनमानी की यदि बात करें तो योगी सरकार के तमाम कायदे कानूनों पर बीएसए आफिस की लालफीता शाही भारी पड़ रही है। मामला खरखौदा के गोविंदपुरी में तैनात रहे अमित शर्मा की विधवा पत्नी से जुड़ा है। 18 दिसंबर 2021 में अमित शर्मा का निधन हो गया था। परिजनों को अमित शर्मा की ग्रेच्युटी व अन्य भुगतान करने में आॅफिस वालों ने तीन साल का वक्त लगा दिया। इससे यह तो साफ हो गया कि बीएसए आफिस में बैठने वाले अफसरों की कार्यप्रणाली कितनी लचर है। यह स्थिति तो तब है जब सीएम योगी खुद मृतक आश्रितों को लेकर बेहद संवेदनशील रहते हैं। जिलाधिकारी दीपक मीणा भी ऐसे मामलों में देरी को लेकर अनेक बार नाराजगी भी जता चुके हैं। सीएम की हिदायत और डीएम की नाराजगी उसके वावजूद मृतक अमित शर्मा की विधवा सोनिया शर्मा को मृतक आश्रित कोटे में नौकरी देने में देरी, इससे दो ही बात हैं पहली तो यह कि सीएम व डीएम के निर्देशों को लेकर आफिस में बैठने वाले गंभीर नहीं या फिर दूसरा यह जो आमतौर पर अक्सर देखने में आता है भ्रष्टाचार। आरोप है कि फाइल एक पटल से दूसरे पटल पर ही घूम रही है। गैर जरूरी आपत्तियां और कारण बताकर मृतक आश्रित कोट में नियुक्ति में देरी की जा रही है। कभी पहले से आठ लोगों के आवेदन तो कभी जो सीट खाली हैं उन पर ट्रांसफर होकर आने वालों की ज्वाइनिंग कराने के नाम पर टकरा दिया जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि ट्रांसफर होकर आने वालों विनय शाक्य व नरेन्द्र कुमार की बात है तो उनका मामला अन्य कारणों से लंबित है। दूसरी बरेली की रेनू आजाद उनका प्रकरण भी एडी बेसिक के संज्ञान में है, उसके भी फिलहाल आने के आसार नहीं। इसके इसके अलावा मृतक आश्रित कोटे में पहले आओ पहले पाओ की अवधारण स्वीकार्य है। एडी बेसिक कार्यालय स्तर से कोई अवरोध नहीं पीड़िता का कहना है कि फिर ऐसी क्या वजह है जो उसकी नियुक्ति में विलंब किया जा रहा है।