बनवास पर निकले श्री राम-दशरथ मरण

बनवास पर निकले श्री राम-दशरथ मरण
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बनवास पर निकले श्री राम-दशरथ मरण,

श्री सनातन धर्म रक्षिणी सभा पंजीकृत मेरठ शहर के तत्वधान में श्री रामलीला कमेटी पंजीकृत मेरठ शहर द्वारा बुढ़ाना गेट स्थित जिमखाना मैदान में रामलीला का मंचन किया गया। प्रभु श्री राम, माता सीता, व भाई लक्ष्मण के साथ बनवास पर यात्रा को निकले। प्रभु श्री राम ,माता सीता और भाई लक्ष्मण वनवास पर यात्रा को निकले तो अयोध्या वासियों के नेत्रों से आंसू छलक उठे हर दिल गम से भर गया ।
यह यात्रा सनातन धर्म मंदिर बुढ़ाना गेट से प्रारंभ होकर कोतवाली, गुदड़ी बाजार ,बजाजा सर्राफा, वैली बाजार, लाला का बाजार, शीश महल, सुभाष बाजार के चौराहे से भटवाड़ा, नौगजा, शहपीर गेट, सरस्वती मंदिर होते हुए सूरजकुंड पर रुकी। यहां चरण प्रखार लीला का आयोजन हुआ। इसके पश्चात जिमखाना मैदान में लीला मंचन हुआ।  केवट लीला, श्रवण कुमार, दशरथ मरण, चित्रकूट लीला, भरत शरणागति लीला का मंचन किया गया । लीला मंचन के मुख्य उद्घाटन कर्ता डॉक्टर विवेक बंसल वरिष्ठ सर्जन रहे मुख्य तिलक कर्ता आलोक कंसल ,अरविंद गुप्ता, रजत गोयल व राजेश कुमार अग्रवाल रहे तथा प्रसाद सेवा इन्द्र गर्ग भट्टे वालों की ओर से की गई ।

श्रवण दृश्य
श्रवण अपने माता-पिता की कावड़ लेकर चलते हैं।
श्रवण: माताजी पिताजी हम अयोध्या आ गए हैं यहां कुछ देर विश्राम कीजिए
श्रवण की माता: मुझे बहुत प्यास सता रही है। यदि हो सके तो जल का प्रबंध करो ।
श्रवण: अवश्य करूंगा माता जी। आपको वृक्ष के नीचे बिठाकर जल लेने जाता हूं ।
श्रवण जल लेने निकल पड़ते हैं।
श्रवण: दूर-दूर तक कोई जल नजर नहीं आता है। मुझे उस दिशा की ओर जाना चाहिए जहां जल की आवाज है। लगता है आसपास ही कोई नदी बह रही है। मुझे उसी दिशा में जाकर माता पिता जी के लिए जल भर लेना चाहिए।
तभी दशरथ वहां से गुजर रहे होते हैं
दशरथ: लगता है उस दिशा की ओर नदी के पास कोई भयंकर जीव पानी पी रहा है । परंतु मेरी दृष्टि से दिख नहीं रहा है। मैं शब्दभेदी बाण चलाकर उसका शिकार करता हूं।
दशरथ बाण छोड़ते हैं जो नदी किनारे पानी भर रहे श्रवण को जा लगता है और श्रवण की चीखने की आवाज आने लगती है।
दशरथ: हैं यह क्या, कौन बोला, किसने पुकारा, लगता है मेरा बाण किसी मनुष्य को लग गया है। मुझे इसे जाकर देखना चाहिए।

घायल अवस्था में श्रवण: आ हा ,बाण बड़ा तीक्ष्ण लगा। हाय माता, हाय पिता, मेरा प्राण निकला। हाय माता, हाय पिता

हो गया कैसे समय काल ग्राहक जान का
घाष्कारी है लगा सीने में मेरे बाण का
हो चुका जीवन मेरा अब सांस पूरे हो चुके
अब भरोसा एक पल को भी नहीं है प्राण का
देख लो माता-पिता अंतिम समय आकर मुझे
देखना तुमको मिलेगा फिर ना मुख संतान का
प्यास व्याकुल कर रही होगी कुशल निश्चय वहां
हो सकेगा अब ना प्रबंध कुछ जलपान का
माता पिता मेरे प्राण निकले , अब तुम किसके सहारे जिओगे। अब तुम्हारे हाथों की अंतिम लाठी भी टूट गई।
देख कर किसको करोगे गर्व अपने भाग्य पर
कौन जल डालेगा ममता की भड़कती आग पर

तभी दशरथ वहां पहुंचते हैं और कहते हैं : हैं कौन बोला, किसने पुकारा, किस को बाण लगा। हो गया क्या ज़ुल्म धोखे में किसी की जान पर
चल गया क्या बाण उस किसी इंसान पर
तभी उनकी नजर श्रवण की ओर पड़ती है और श्रवण को देख कर बोलते हैं : कौन श्रवण कुमार, अंधे और अंधी के प्राणधार, निर्बल और दीन का सहारा, बूढ़े मां बाप का प्यारा।
हाय अभागे दशरथ तूने किसको बाण मारा ।
क्यों बला टूटी ना मुझ पर, और धनुष पर, बाण पर
तोड़ डाला जुल्म पापी दे कसौटी जान पर
उस सितम उन बेसहारों का सहारा यह ही था
हाय उन अंधों की आंखों का तारा यह ही था।
दशरथ श्रवण से लिपट कर : बेटा श्रवण कुमार। आंखें खोलो अंतिम बार प्राणघातक से बोलो। देखो तुम्हारे पास तुम्हारा दोषी खड़ा है।

श्रवण करवट लेकर रोते हुए: कौन अयोध्या नरेश दशरथ, प्रणाम महाराज
दशरथ : नहीं पुत्र मुझे प्रणाम ना करो मैं ही तुम्हारा दोषी हूं
सुन रहे हैं कान इस निर्दोष के प्रणाम को
हाय दशरथ कर दिया बदनाम कुल के नाम को
श्रवण : मगर आज इसमें आपका कोई दोष नहीं।
आपने तो पशु समझकर मुझे तीर मारा है । महाराज बस उनकी चिंता है मन में । माता-पिता को तीर्थ न करा पाया और उनकी सेवा न कर पाया।
हे विधाता चाहता हूं अब दया बस आपकी
जन्म ले इस योनि में सेवा करूं मां बाप की
दशरथ: श्रवण बेटा मैं तुम्हारा दोषी हूं दोषी को दंड दो
श्रवण: महाराज ये कदापि नहीं हो सकता।
दशरथ: तो क्या तुम मुझे दंड नहीं दोगे
श्रवण: कभी नहीं दूंगा
दशरथ: मुझ अन्यायी से इस पाप का बदला नहीं लोगे
श्रवण :कदापि नहीं
दशरथ: मुझसे कोई अंतिम सेवा ही ले लो।
श्रवण: अच्छा यदि आपकी इच्छा है तो मेरा इतना काम कीजिए। इस लोटे में जल ले जाकर मेरे माता-पिता को पिला दीजिए और यह बाण जो मुझे अति पीड़ा दे रहा है मेरी छाती से निकाल दीजिए।
दशरथ रोते हुए बाण निकालते हैं और श्रवण अंतिम सांस ले रहे होते हैं
श्रवण : क्षमा माता क्षमा पिता
हो चुका जीवन मेरा अब होठों पर अंतिम सांस है
अब तो तुम्हारे नाम की मुझको केवल आस है
और इतना कहते ही श्रवण प्राण त्यागने लगते हैं और दशरथ जल लेकर उसके माता-पिता की ओर चल देते हैं।

दशरथ मरण

दशरथ: रोते हुए प्रिय मेरा समय निकट आ रहा है मेरे प्यारे राम का वियोग मुझे शोक के आंसू रुला रहा है।
कौशल्या: क्या कहने लगे प्राणनाथ। मुझे पाप का भागीदार ना बनाइए।
दशरथ: रानी पुत्र वियोग न भाए। पुत्र वियोग में बड़े-बड़े राजाओं ने अपने प्राण गवाएं
दशरथ रोते हुए कौशल्या तुम्हें याद है, तुम्हें श्रवण के माता-पिता याद है, याद है मुझे उनका मरना याद है। मुझे सब तरफ चारों ओर चीख-पुकार सुनाई देती है। मेरे शब्दभेदी बाण से उनकी हत्या हुई। वह देखो श्रवण कुमार अपने माता पिता को जल पिलाने जा रहा है।
दशरथ: आह श्रवण ! मुझे अंधों का श्राप खा जाएगा ।
तभी सुमंत जी रोते हुए आते हैं और कहते हैं हाय पापी किस तरह महाराज को समझाएगा
उस दुखी तन को भला संतोष कैसे आएगा।
दशरथ : सुमंत जी सुमंत जी ,आप आ गए।
कहां है राम लक्ष्मण, कहां है मेरी पुत्रवधू सीता ,कहां है मेरे हंसों का जोड़ा ।
सुमंत: महाराज सुख दुख लाभ हानि संयोग सब कर्मों के अनुसार होता है आप व्यर्थ चिंता ना करें।
दशरथ: सुमंत जी आप बताते क्यों नहीं
सुमंत: जी महाराज राम भी रघुकुल के वंशज हैं वचन निभाने गए हैं ।
दशरथ को राम दिखते हैं और कहते हैं मेरे राम चले आइए दशरथ अपने प्राण त्याग देते हैं।
श्री रामलीला कमेटी पंजीकृत मेरठ शहर द्वारा जिमखाना में चल रही संपूर्ण लीला का मंचन बड़ी एल ई डी स्क्रीन पर दिल्ली रोड स्थित रामलीला ग्राउंड में रोज दिखाया जा रहा है साथ ही यू ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया जा रहा है जिसके माध्यम से बड़ी संख्या में भक्त धर्म लाभ ले रहे हैं। इस कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष मनोज गुप्ता राधा गोविंद मंडप, महामंत्री मनोज अग्रवाल खद्दर वाले, कोषाध्यक्ष योगेंद्र अग्रवाल बबलू, राकेश गर्ग, आलोक गुप्ता (गुप्ता क्लासेज) अंबुज गुप्ता, रोहताश प्रजापति, राजन सिंघल, आनंद प्रजापति, राकेश शर्मा, अनिल गोल्डी दीपक शर्मा, विपुल सिंघल ,संदीप गोयल रेवड़ी, मयंक अग्रवाल, मयूर अग्रवाल, अपार मेहरा, विपिन अग्रवाल ,लोकेश शर्मा ,मनोज दवाई, अनिल वर्मा, मनोज वर्मा, पंकज गोयल पार्षद सहित हजारों की संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।

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