रंजीत-याचना सरीखा ना हो जाए हश्र

रंजीत-याचना सरीखा ना हो जाए हश्र
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रंजीत-याचना सरीखा ना हो जाए हश्र,

मेरठ। सदर दुर्गाबाड़ी स्थित श्री 1008 दिगंबर जैन पंचायती मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है हालांकि कुछ का कहना है कि तीन सौ साल से भी ज्यादा पुरान यह मंदिर है। इससे ज्यादा पुराना होने की बात भी कही जाती है। इस मंदिर के पास अकूत धनसंपदा वह अचल संपत्ति सोना व चांदी के अलावा हीरे जवाहरात थे। एक अनुमान के तहत करीब एक हजार किलो सोना इस मंदिर की संपत्ति हुआ करता था। सदर जैन समाज के वृद्ध व सम्मानित जो लोग ऐसी जानकारी देते हैं यदि वो वाकई सही है तो फिर बड़ा सवाल कि वो सारी अकूत धन संपदा कहां है। किन-किन से मंदिर के सोने से अपने कारोबार चमकाए। वो कौन लोग थे जो मंदिर पर काविज रहे। जो काविज थे क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि इस मंदिर को जो दान दिया गया उसका हिसाब किताब रखते। क्योकि वो समाज ने दिया था और मंदिर भी समाज का है इसलिए समाज का यह हक है कि जो अब तक काविज रहे हैं या जो हाथ पांव मार रहे हैं उनसे सवाल किया जाए कि जब से यह मंदिर बना है तब जितना भी सोना व संपत्ति हीरे जवाहरात इसको दान में मिले हैं उनका हिसाब किताब अब समाज का देकर खुद को पास साफ साबित करें।

वादा तो यही था कि दो दिन में दे देंगे हिसाब भी किताब भी

अनंत चतुदर्शी की पूर्व संध्या पर जब राष्ट्रकवि सौरभ जैन सुमन ने समाज को हिसाब देने की पुरजोर वकालत की थी और उसके लिए प्राण तक उत्सर्ग करने को तैयार हो गए थे तब आनन-फानन में पंच बना दिए गए। हालांकि यह बात अलग है कि ये पंज किसने और किस अधिकार से बनाए थे। कायदे कानून की यदि बात करें तो जब किसी संस्था की कमेटी कालातीत हो जाती है और वहां ऐसे हालात बना जाए कि काम चलाने को कुछ लोगों को जिम्मेदारी दे दी जाती है तो उन लोगों का यह अनिवार्य दायित्व है कि उन्हें जो दायित्व समाज ने दिया है उसकी जानकारी डिप्टी रजिस्ट्रार को दें। साथ ही यह भी आग्रह किया जाए कि यह वैकल्पिक व्यवस्था है और चुनाव होने तक यह व्यवस्था रहेगी। इतना ही जो पंच हैं उनका यह भी कानूनी दायित्व है कि डिप्टी रजिस्ट्रार से लिखित में मंदिर के चुनाव कराने का आग्रह करें। लेकिन ऐसा कुछ हुआ हो इसकी जानकारी नहीं मिली है। उल्टे जिन्हें पंच बनाने की बात सदर जैन समाज के बीच वायरल है, जानकारों का कहना है कि उसको रंजीत जैन व यायना भारद्वाज सरीखे हालात का सामान करना पड़ सकता है। ऐसा हुआ तो नौबत जेल जाने की भी आ सकती है। यह भी समझा देते हैं कि यह सब कैसे हुआ था।

यह था पूरा घटनाक्रम

सदर जैन समाज में जिन्हें सम्मानित माना जाता है उन लोगों ने जानकारी दी कि साल 2003 में एक चुनाव के बाद दिनेश जैन एवं अन्य मंदिर की जिम्मेदारी संभालने लगे। लेकिन जिम्मेदारी संभालने के बाद जो जिम्मेदारी हर तीन साल बाद चुनाव कराने की प्रशासन ने दी थी वो भी पूरी की गयी। नॉन स्टॉप साल 2014 तकसदर दुर्गाबाड़ी स्थित श्री 1008 दिगंबर जैन पंचायती मंदिर पर काविज रहे। इसके बाद 2014  में एक ओर चुनाव होता है। हालांकि उस चुनाव  पर भी तमाम सवाल खडे़ किए गए। दरअसल सोसाइटी एक्ट में जो प्रावधान हैं उनका पालन नहीं किया गया, ऐसा समाज के लोग बताते हैं। लेकिन समाज ने फिर भी मान लिए कि भाई चलो चुनाव हो गया। चुनाव के बाद मृदुल एंड अन्य की मंदिर में एंट्री हो जाती है। एक लंबा घटनाक्रम चला जिसके बाद रंजीत जैन ने खुद को ऋषभ एकाडेमी का सचिव व याचना भारद्वाज ने खुद को प्रिंसिपल घोषित कर दिया। ऋषभ एकाडेमी मंदिर की ही है। समाज के लोगों ने समाज के बच्चों के लिए ही ऋषभ एकाडेमी शुरू की थी। यह बात अलग है कि 2014 के बाद चीजे काफी शर्मसार करने वाली होती चलीं गई। जो खुद को सचिव व प्रधानाचार्या कहते थे वो कोई ऐसा कानूनी सबूत नहीं पेश कर सकते जिससे कहा जा सके कि हां डिप्टी रिजस्ट्रार कार्यालय ने इन्हें मान्यता दी है। ये कानूनी सचिव व प्रधानाचार्या हैं जब सबूत नहीं पेश कर सकते तो अवैध काविज मानते हुए एफआईआर दर्ज हो गई जब एफआईआर दर्ज होती है तो उसके बाद आमतौर पर देश में आरोपी का सरकारी मेहमान बनना तय मना जाता है। इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि समाज के बीच जिस प्रकार से प्रेम मामा, विनोद बुरा, अनिल बंटी, जिनेन्द्र प्रकाशन व पवन विधानाचार्या को पंच बताया जा रहा है क्या उनके पास ऐसा कोई कागज है जिसको डिप्टी रजिस्ट्रार की स्वीकार्यकता मिली हो अन्यथा यह तो आशंका बनी रहेगी कि जो रंजीत जैन व याचना भारद्वाज के साथ हुआ क्या वैसा इनके साथ हो सकता है। जानकारों की मानें तो भीतर ही भीतर काफी कुछ सदर जैन समाज में घटित हो रहा है। यह भी संभव है कि एकाएक विस्फोटक हो जाए। दरअसल कानूनी जामा किसी भी दावे को पहनाना जरूरी होता है जिसमें पंच तय करने वाले काफी पीछे नजर आ रहे हैं।

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