जेल भेजना बना गले की फांस

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जेल भेजना बना गले की फांस,

महिला डाक्टर को जेल भेजना बना गले की फांस
चीफ जस्टिस तक पहुंचा मामला, बढ़ सकती हैं अधिकारियों की मुश्किलें
मेरठ/गर्भ में लिंग निर्धारण के कथित मामले में ग्लोबल डायग्नॉस्टिक की संचालिक डा. छवि बंसल को जेल भेजना गले की फांस बन गया है। यह बात पुलिस व न्यायिक अधिकारी अब समझ चुके हैं। मामला हाईकोर्ट के प्रशासनिक जज के संज्ञान में है। मामला चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया व चीफ जस्टिस हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। पुलिस के आला अधिकारी भी अब मान रहे हैं कि गलती तो हो गई है, लेकिन उनके सामने यक्ष प्रश्न है कि महिला डाक्टर को जेल भेजे जाने से हुए डेमेज को कंट्रोल कैसे किया जाए। दरअसल इस पूरे मामले को लेकर कानूनी आधार पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शहर के सीनियर एडवोकेट ने कर ली है। इसी को लेकर सोमवार को छिपी टैंक स्थित निबंस बुक डिपो पर बुलायी गयी पीसी में एडवोकेट रामकुमार शर्मा, विनोद कुमार गुर्जर व राजीव गोयल ने पुलिस और कोर्ट की कार्रवाई को कठघरे में खड़ा कर दिया। इस मामले को लेकर विगत 13 फरवरी को मेरठ आए हाईकोर्ट के प्रशासनिक जज से मुलाकात की गयी। डा. छवि बंसल के प्रकरण की उन्हें जानकारी दी गयी। । उन्होंने इस मामले को लेकर शपथ पत्र के साथ लिखित शिकायत मांगी है। 17 फरवरी को इसी मामले को लेकर डीआईजी से मुलाकात की गई। बकौल रामकुमार शर्मा डीआईजी ने भी माना कि गलती तो हुई है और बड़ी गलती है। उन्होंने इस मामले में एसएसपी से मिलने की सलाह दी। आवाज उठाने वाले 18 फरवरी को एसएसपी से भी मिले, लेकिन एसएसपी ने कार्रवाई को सही साबित करने का प्रयास किया। जबकि उन्हें बताया गया कि पूरी कार्रवाई फैक है।
सब कुछ फेक
जेल भेजे जाने की कार्रवाई को गलत ठहराने वाले अधिवक्ताओं का कहना है कि जिस महिला मरीज को लाया गया वह हायर की गयी। उसका आधार कार्ड भी नकली तैयार कराया गया था। कोई ऐसा साक्ष्य नहीं पेश किया गया जिसमें कहा जा सके कि उन्हें भ्रण का लिंग निर्धारण किया।
नहीं बनती थी जेल की कार्रवाई
मीडिया को बताया गया कि इस मामले में किसी भी स्तर से जेल भेजे जाने की कार्रवाई कानूनी ग्राउंड पर नहीं बनती थी। उन्होंने जेल भेजे जाने के आदेश पर गंभीर सवाल उठाते हुए इसके कानूनी पहलुओं की जानकारी दी। यह मुकदमा ही गलत दर्ज किया गया है। पीसीपीएनडीटी एक्ट की धारा 28 के तहत डा. छवि के खिलाफ यह मामला दर्ज ही नहीं हो सकता था। इसमें केवल कंप्लेंड केस ही न्यायालय के 15 दिन के नोटिस के बाद संभव था। सबसे बड़ी बात मुकदमे में तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान है, इसलिए 35बीएनएस का नोटिस देकर थाने से भी छोड़ा जा सकता था, लेकिन बीएनपएस में दिए प्रावधानों को ड्रॉप कर दिया। 12 फरवरी को जब रिमांड के लिए महिला डाक्टर को कोर्ट लाया गया तो रिमांड पर बहस के दौरान कोर्ट को बताय गया था कि इस एक्ट में मुकदमा दर्ज का प्रावधान नहीं है, इसलिए रिमांड नहीं बनाया जाना चाहिए। अग्रिम कार्रवाई के बगैर ही कोर्ट से छोड़ दिया जाना चाहिए।
पुलिस ने कोर्ट में खडे-खडे बढ़ा दी धारा
एडवोकेट डा. रामकुमार ने सबसे चौंकाने वाला खुलासा किया कि उनकी बात पर जब सीजेएम ने आईओ से सवाल किया तो जांच अधिकारी एपीओ ने सीजेएम की सहमति से बिना किसी जांच और पुख्ता आधार के बीएनएस की धारा 61 (2) व 318 (4) (यानि अपराधिक साजिश व धोखाधड़ी) बढ़ा दीं। जबकि पुलिस के रिमांड प्रपत्र 202 पर भी बीएनएस की उक्त धारा का कोर्ट में अभियुक्ता को लाने से पहले कोई वर्णन नहीं था। सबसे बड़ी बात तो यह कि इस मामले में अपराधिक साजिश व धोखाधड़ी की धारा बनती ही नहीं है, लेकिन सीजेएम की सहमति से ऐसा किया गया। बल्कि होना तो यह चाहिए था कि इस मामले में दलाल, फैंक महिला मरीज और डिकॉय आपरेशन में लिप्त अधिकारियों पर अपराधिक साजिश व धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस से मिलेंगे
पीसी में मौजूद एडवोकेट रामकुमार शर्मा व विनोद कुमार गुर्जर ने बताया कि वह इस मामले की जांच व जिम्मेदार न्यायिक व पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया व चीफ जस्टिस हाईकोर्ट तथा प्रशासनिक जज हाईकोर्ट से साक्ष्यों के साथ मिलने जा रहे हैं।

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