अफगानिस्तान का स्वर्ण काल था बौद्ध धर्म, अफगानिस्तान का नाम आते ही दुनिया वालों के दिल ओ दिमाग में एक ऐसे मुल्क की तस्वीर उभरती है जहां गरीबी-भुखमरी-धार्मिक कट्टरता खासतौर से महिलाओं पर जुर्म उन्हें छोटी-छोटी बातों पर सरेआम पीटना-मौत की सजा देना। जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने वालाें का एक जगह जमा कर कर सरेआम गोली से भून देना। यह सब बहुत पुरानी बातें भी नहीं हैं। आईएसआई और तालिबानियों ने ऐसा किया भी है यह भी कटू सच्चाई है और इनको अफगानिस्तान से खदेडने के लिए रूस और अमेरिका को फौजी कार्रवाई करनी पडी थी। यह बात अलग है कि बाद में खुद को दुनिया का खलिफा मानने वाले रूस व अमेरिका को अफगानिस्तान से पीठ दिखाकर भागना पड़ा था। लेकिन अफगानिस्तान हमेशा ही ऐसा नहीं था। एक ऐसा भी दौर था जब अफगानिस्तान में बौद्ध धर्म तेजी से फलफूल रहा था। बौद्धों का वर्चस्व था और अफगानिस्तान एक खुशहाल मुल्क था। बौद्धों से पूर्व वहां हिन्दू धर्म पल्लवित था। हिन्दू धर्म को मानने वालों का शासन हुआ करता था। वहां कट्टरता नाम मात्र की भी नहीं थी, यहाँ कई बौद्ध विहार थे और इस कारण ये धर्म, दर्शन और कला के लिए संपन्न केंद्र के रूप में विकसीत हुआ। बौद्ध भिक्षु पास के गुफाओं में रहते थे और इन गुफाओं को शानदार और चमकीले रंग के चित्रों के साथ सजाया गया है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये चित्र मूर्तियोंके बाद के कालखन्ड में बने है।[3] यह दुसरी शताब्दी से एक बौद्ध धार्मिक स्थल था जब तक सातवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस्लामी आक्रमण हुआ। जब तक ९वीं शताब्दी में मुस्लिम सफ़्फ़ारी राजवंश द्वारा पूरी तरह से कब्जा नहीं हुआ, तब तक बामयान ने गांधार की संस्कृति साझा की। याद रहे कि गांधार और हस्तिनापुर के बीच बेटी और रोटी का रिश्ता था। महाभारत की गांधारी अफगानिस्तान के राजा की बेटी थी। उस काल में हिन्दू धर्म अफगानिस्तान में बहुत फल फूल रहा था चारों ओर खुशहाली थी। यह इलाका कारोबारी लिहाज से दुनिया के लिए अहम था। वहां के लोग बेहद खुशहाल व शिक्षित हुआ करते थे। आज के जैसी कट्टरता तब अफगानिस्तान में नहीं हुआ करती थी। अब बात करें यदि अफगानिस्तान की बुद्ध प्रतिमाओं की तो
बामियान के बुद्धों का उल्लेख कई चीनी, फ्रेंच, अफगान और ब्रिटिश खोजकर्ता, भूगोलिक, व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के कहानीयों में हुआ है।उमय्यदों द्वारा अफगानिस्तान पर इस्लामी विजय और अब्बासिद खलीफा के शासन के बाद भी बौद्ध धर्म जीवित रहा। 13वीं शताब्दी में मंगोल विजय के दौरान मंगोल सेनाओं द्वारा अफगानिस्तान में बौद्ध धर्म को प्रभावी ढंग से नष्ट कर दिया गया था।7वीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन से पहले, आधुनिक अफगानिस्तान में कई धर्म प्रचलित थे, जिनमें पारसी धर्म, प्राचीन ईरानी धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म शामिल थे। हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में स्थित काफिरिस्तान जिसे अब वर्तमान नूरिस्तान कहा जाता है, उस क्षेत्र को 19वीं शताब्दी तक परिवर्तित नहीं किया गया था।
मुगल शासक औरंगज़ेब और फ़ारसी शासक नादिर शाह ने इन मूर्तियों पर हमला करके उन्हें क्षतिग्रस्त किया।[4] ख्यााबामयान के हिन्दु कुश पर्वत श्रृंखलाओं में बनी ये मुर्तियां कच्चे लाल रेत, मिट्टी, कंकड़, क्वार्ट्ज, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर जैसे समूह से बने थे। निर्माण के बाद बदलते शासककों के कारण इन का कभी रखरखाव नहीं हुआ। इस क्षेत्र में सालाना वर्षा कम होती है। लेकिन पिघलते बर्फ से बने पानी की वजह से मूर्तियों का नुकसान अधिक हुआ हैं। इस क्षेत्र में भूकंप की संभावना ज्यादा है और ये कई झटके सहता रहा। करता है। मार्च २००१ में अफ़ग़ानिस्तान के जिहादी संगठन तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के कहने पर बामियान के बौद्धों को डाइनेमाइट से उडा दिया गया।