बंगले रिज्यूम के बजाए सेल

सेना का बंगला भी नहीं बचा सके
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बंगले रिज्यूम के बजाए सेल, मेरठ छावनी के अफसरों ने कारोबारी से बिल्डर बने भूमाफियाओं से दोस्ती के चलते भारत सरकार की करीब सौ करोड़ की आंकी जाने वाली संपत्ति काे ठिकाने लगा दिया। बात हो रही है लालकुर्ती ब्रुक स्ट्रीट स्थित एसजीएम गार्डन बंगला नंबर 304—– की। साल 1937 में इस बंगले को बतौर एक गेस्ट हाउस एक क्रिश्चियन परिवार इकबाल मैंसी एंड ब्रदर्स के नाम पर लीज किया गया था। जानकारों की मानें तो डीईओ यानि रक्षा संपदा का यह बंगला आज भी जीएलआर में इन क्रिश्चियन ब्रदर्स के नाम दर्ज है। इस बंगले को लेकर साल 1995-96 में ठिकाने लगाने का सिलसिला शुरू हुआ था। और इसमें मुख्य भूमिका तब के डीईओ रहे एके श्रीवास्तव की बतायी जाती है। दरअसल हुआ यह था कि उस वक्त डीईओ एके श्रीवास्तव पर ही सीईओ कैंट का अतिरिक्त चार्ज था। यह वो दौर था जब मेरठ के सफेदपोश कुछ  भूमाफियाओं की नजर भारत सरकार या कहें सेना के बंगलों पर गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी थी। करोड़ों रुपए कीमत के ब्रिटिश शासन काल के इन बंगलों की आन बान शान इन भूमाफियाओं की नजर में चुभने लगी थी और इनको कब्जाने के लिए वो हर तरीका अपना रहे थे जिसको वाजिब नहीं कहा जा सकता। ऐसा ही कुछ एसजीएम गार्डन यानि जीएलआर में दर्ज गेस्ट हाउस बंगला नंबर 301—–के मामले में भी हुआ। साल 1995-96 में इस इस गेस्ट हाउस की पावर ऑफ अटारनी किसी सरदार अमरजीत सिंह नैय्यर ने अपने नाम करा ली। बस यही से भारत सरकार की इस भूमि को खुर्दबुर्द करने की शुरूआत तब के डीईओ/सीईओ कार्यालय की छत्रछाया में शुरू हो गई थी। जीएलआर में दर्ज गेस्ट हाउस को महारानी गेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया गया। इसके अलावा साइड में जैनरेटर का काम भी शुरू कर दिया गया। यही से रिहाशी बंगले या गेस्ट हाउस के व्यवसायिक प्रयाेग की शुरूआत हो गयी थी यानि सीधे चेज आफ परपज।  इस गेस्ट हाउस को लेकर भी तमाम आपत्ति जनक बातें तब पब्लिक डोमेन में थीं। लेकिन साल 2001 के बाद जब मेरठ में बतौर सीईओ केजेएस चौहान आए उसके बाद महारानी गेस्ट हाउस के मालिकों या कहें सरदार अमरजीत सिंह के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया। लेकिन अमरजीत के लिए मुश्किलें मुसीबतें तब बननी शुरू हुई जब अपनी ईमानदारी के लिए खास पहचान रखने वाले धनपत राम को डीईओ बनाकर मेरठ भेजा गया था। धनपत राम ने इसको लेकर एफआईआर दर्ज करा दी। कैंट का अमला लेकर वह मौके पर कार्रवाई को पहुंच गए थे तो उन पर तलवार लेकर हमला कर दिया गया था। उसको लेकर जमकर हंगामा भी हुआ था। तब इस मामले को धार्मिंग रंग देकर कार्रवाई से पीछा छुड़ाने का प्रयास किया गया। आर्मी से रिटायर्ड कुछ सिख अफसरों ने भी इसमें मंत्रालय से रिलीफ दिलाने में साम-दाम-दंड-भेद तमाम हथकंड़े धनपत राम के खिलाफ आजमाए थे। साल 2001 में महारानी गेस्ट हाउस को एक बार फिर से चेज आफ परपज करार देते हुए एसजीएम गार्डन में तब्दील कर दिया। हैरानी तो इस बात की है कि जो संपत्ति जीएलआर में बतौर रिहायशी दर्ज है, उसमें बार-बार अवैध निर्माण कर उसको कामर्शियल बनाया जाता रहा। करीब सौ करोड़ की आंकी जा रही इस संपत्ति से चंद कदम की दूरी पर डीईओ व सीईओ के कार्यालय हैं, लेकिन किसी भी सक्षम अधिकारी ने अवैध निर्माण व चेंज आफ परपज के इस मुजसमे के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर की बात एक नोटिस तक भेजने की जरूरत तक नहीं समझी। यह भी पता चला है कि डीएन यादव के कार्यकाल में इस बंगले को रिज्यूम किए जाने की एक संस्तुति मंत्रालय को भेजी गयी थी, हालांकि इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन यदि यह सच है तो क्या यह मान लिया जाए कि एसजीएसम गार्डन में चेज ऑफ परपज व अवैध निर्माण के इस स्ट्रांग मामले में अधिकारी जिनके आधीन इस बंगले का मैनेजमेंट है वो कार्रवाई से क्यों भाग रहे हैं। इस संबंध में कैंट प्रशासन के अधिकारियों से संपर्क का काफी प्रयास किया लेकिन मोबाइल आउट ऑफ रेंज जाते रहे।

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