स्टाफ के मूड से चलते हैं बैंक

स्टाफ के मूड से चलते हैं बैंक
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स्टाफ के मूड से चलते हैं बैंक,

मेरठ / ग्राहकों की सुविधा के लिए तय किए गए नियम कायदों के बजाए बैंक अब स्टॉफ की मनमर्जी से चल रहे हैं। तमाम ऐसे बैंक हैं जहां स्टाफ की मनमर्जी के चलते तमाम ग्राहक हलकान है। स्टाफ के ना सीट पर बैठने का कोई समय निर्धारित है ना ही बैंक की मार्फत किए जाने वाले लेनदेनों को लेकर कायदे कानून का पालन स्टाफ कर रहा है। सरकारी बैंकों की यदि बात करें तो स्टॉफ की इसी प्रकार की हरकतों के चलते तमाम ग्राहकों ने प्राइवेट बैंकों की ओर रूख किया था। शुरूआत में तो सभी प्राइवेट बैंकों का रवैया ग्राहक सेवा को लेकर ठीकठाक रहा, लेकिन वक्त गुजरने के साथ ही अब प्राइवेट बैंक के स्टॉफ को भी सरकारी बैंकों के स्टाफ की काम ना करने की बीमारी लग गयी हैं। सरकारी बैंकों के स्टाफ की तर्ज पर सीट पर देर से आना और आने के बाद बजाए काम शुरू करने के पहले बराबर वाली सीट पर बैठे स्टाफ से बतियाना। उसके बाद अनमने मन से जब ग्राहकों की ओर मुखातिब होना। ग्राहक यदि कैश जमा करने आए हैं तो उसके द्वारा जो नोट एकाउंट में जमा करने के लिए दिए गए हैं उनमी मीनमेख निकालना। एक ही ट्रांजेक्शन को लेकर देर तक बैठे रहना। तब तक देरी करना जब तक कि कतार में बाकि खडेÞ ग्राहक खीज ना जाएं। यदि कोई डीडी बनवाने पहुंच जाए तो अनावश्यक चीजों के थोप देना। ये सभी चीजें भी ग्राहक भुगत लेते हैं, लेकिन मुसीबत तो तब आती है जब कोई जरूरी ट्रांजेक्शन कराना हो और सीट से बैंक स्टॉफ गायब मिले। और यदि सीट पर बैंक का स्टाफ मिल भी जाए तो कई बार टाइम पूरा हो गया कह कर ग्राहक को लौट दिया जाता है। सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना आॅन लाइन ट्रॉजेक्शनों को लेकर करना पड़ता है। पूर्व में तीन बजे के बाद भी तमाम बैंकों में ट्रांजेक्शन मसलन रकम जमा की जाती थी, लेकिन अब कई बार स्टाफ दो बजे के बाद तो लंच पर चला जात है। कुछ बैंकों में लंच का टाइम एक बजे से भी है,लेकिन जब लंच से वापस आते हैं तो ट्रांजेक्शन करने में आनाकानी की जाती है। स्टॉफ बैंक के ग्राहकों को अनावश्यक चीजें बताकर परेशान करता है।
सबसे ज्यादा परेशान कारोबारी
बैंक स्टाफ की इन हरकतों से सबसे ज्यादा परेशान कारोबारी हैं। कई बार बेहद जरूरी लेनदेन करना होता है, लेकिन समय रहते हुए भी स्टॉफ समय का रोना रोकर वापस लौटा देता है। कब तक ट्रांजेक्शन किया जाना है इसको लेकर स्टाफ ने अपने ही कायदे कानून बना लिए हैं। उनका मूुड है तो ट्रांजेक्शन हो जाएगा और यदि किसी बात को लेकर मूड खराब है तो किसी भी कीमत पर ट्रांजेक्शन नहीं करेंगे। भले ही कितना ही बड़ा कारोबारी नुकसान हो जाए, उनकी बला से।

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