कैंट बोर्ड- रैकिंग धड़ाम-खेल बेपर्दा

कैंट बोर्ड: रोड निर्माण की जांच
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कैंट बोर्ड- रैकिंग धड़ाम-खेल बेपर्दा, देश भर की सभी 62 छावनियों के स्वच्छता सर्वेक्षण में कैंट बोर्ड मेरठ की रैकिंग अर्श से फर्श पर आ पड़ी यानि रैकिंग धड़ाम हो गई। इस साल की स्वच्छता सर्वेक्षण की रैकिंग ने मेरठ कैंट बोर्ड को सैकेंड पायदान से उठाकर 27वें पायदान पर फैंक दिया है। 27 वें पायदान पर आने के साथ ही स्वच्छता सर्वेक्षण के नाम पर अब तक जो खेल चलता रहा है, वो भी लगे हाथों वेपर्दा हो गया है। स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर    खास जानकारी रखने वालों की मानें तो कैंट बोर्ड जिस सैकेंड रैकिंग के नाम पर अब तक इतराता रहा है, दरअसल उसको हासिल करने में काम से ज्यादा दाम काम आता था। पूर्व के सालों की यदि बात करें तो सुना जाता है कि कैंट बोर्ड में  ए टू जेड का ठेका चलाने वाली कंपनी इस खेल में बोर्ड अफसरों की खासी मददगार साबित होती थी। लेकिन ए टू जेड कंपनी को पेमेंट को लेकर जो फजीहत या खुलासे पिछले दिनों सामने आए थे, उन सब का लबोलुआव देखा जाए तो कहीं न कहीं उसके तार रैकिंग के खेल से जुड़ते नजर आ रहे हैं। पता चला है कि पेमेंट की जांच में फंसी कंपनी ने इस बार रैकिंग मामले में बोर्ड अफसरों से हाथ मिलाने के बजाए हाथ खड़े कर दिए। वो चाणक्य नीति भी धरी की धरी रह गई जिस पर इतराया करते थे। रैकिंंग अवार्ड के इस पूरे खेल में सिटीजन फीड बैक सबसे ज्यादा मददगार साबित होता था। उसको लेकर भी तमाम सेटिंग गेटिंग की बात सामने आ रही हैं। जो बातें सुनने में आ रही हैं यदि वो सहीं है तो फिर यह मान लिया जाए कि सेटिंग गेटिंग न होने की वजह से बोर्ड अफसर इस बार सिटीजन फीडबैक लेने की हिम्मत नहीं जुटा सके। जानकारों का कहना है कि सिटीजन फीडबैक तभी लिया जाता है, जब खुद के काम पर भरोसा हो। काम कि जहां तक बात है तो मेरठ छावनी में आबादी के बीच बने खत्ते पोल खोलने को काफी हैं। खत्तों का जो नरक है,  उसके चलते तो यही कहा जाएगा कि 27वां पायदान भी किसी अवार्ड से कम नहीं।

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