देते हैं भगवान को धोखा-कलशों का व्यापार- क्रेडिट पर चलता सैकड़ों हजारों कलशों का व्यापार! समझ से परे है, इन सैकड़ों कलशों का वर्षायोग से क्या संबध? फिर इनके लिये ऊंची-ऊंची बोलियां बोलीं। कहां कितनी ऊंची बोली गई, इसमें भक्तों के साथ अब तो त्यागियों के एक वर्ग भी खूब नजर रखता है। कमेटी का वर्षायोग में अब बड़ा काम केवल बड़े, चौड़े पंडाल लगाना और मानसूनी कलशों की सेल में ही सिमट कर रह गया है। इस खरीद फरोख्त में खूब क्रेडिट चलता है। फिर उन प्रवचनों को सुना जाता है कि मंदिर में दान की घोषणा को जल्द भुगतान करना ही पुण्य अर्जन है। विश्वास कीजिये सांध्य महालक्ष्मी के पास एक बड़े संत के वर्षायोग स्थल से निष्ठापन के 6 माह बाद तक फोन आते रहे कि आपने वहां आकर कलश लेने की घोषणा की थी, पर आपकी राशि नहीं मिली, कृपया अपना कलश ले जाये, या राशि भेज दें। जब उस कार्यक्रम से चार माह क्या, 6 माह पहले या 6 माह बाद तक नहीं गये, पर फोन हर सप्ताह लगातार आते रहे। बहुत सारे लोग तो बोली के पैसे भी नहीं देते मगर उन्ही लोगों को बुला बुला कर आगे बिठाएंगे माला पहनाएंगे। छोटे आदमी की तो कोई इज्जत और कीमत ही नही। शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बताया कि 25 फीसदी कलश का श्रावकों के लिये इंतजार है। वर्षायोग का 50 साल पहले तक धन से कोई समीकरण नहीं था, फिर धर्म पर धन आज क्यों हावी हो गया? आज वर्षायोग को कलेक्शन योग के रूप में देखा जाने लगा है। कितने खोखे खर्च करने पर कितने खोखे का दर्शन होगा। अमुक संत का मुख्य कलश इतने कलश में गया। यह समझ से बाहर है कि संत को वर्षायोग स्थापना में सिद्ध भक्ति, योग भक्ति के साथ चैत्य भक्ति बोलते हुए चारों दिशाओं के जिन चैत्यालयों की वंदना, पंच गुरुभक्ति, शांतिभक्ति, समाधि, लौकिक व्यवहार में मंगल कार्य के लिये कलश स्थापना में एक की बजाय अनेक कलशों की स्थापना या डिस्पले शो, या मानसूनी कलश सेल की व्यवहारिकता क्या है?(यह लेखक का मत है-हमारा नहीं)