कोर्ट के आदेश से मुसीबत में डा. सतीश,
कैंट बोर्ड के सदस्यों को 90 दिन मे करनी होगी कार्रवाई
बड़ा सवाल क्या बोर्ड के सदस्य के खिलाफ कार्रवाई करेंगे अफसर
कैंट अफसरों की स्वीकरोक्ति नोटिसों के बावजूद भेजा डीजी डिफैंस को नाम
मेरठ। दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश से कैंट बोर्ड के सदस्य डा. सतीश शर्मा की मुश्किलें बढ़ने जा रही हैं। मेरठ कैंट बोर्ड भंग होने के बाद उसमें मनोनीति सदस्य के रुप में डा. सतीश शर्मा के मनोनयन को चुनौती देने के लिए दायर की गई एक याचिका की सुनवाई के बाद बीती 24 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने बोर्ड के मनोनीत सदस्य को जिन मामलों में पूर्व में मसलन उनके कैंट बोर्ड का सदस्य बनने से पहले नोटिस दिए गए हैं उन नोटिसों के सापेक्ष्य 90 दिन के भीतर कार्रवाई का आदेश जारी किया गया है। इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोर्ट में कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अफसरों ने माना कि मेरठ कैंट बोर्ड के सदस्य नामित होने के लिए जिन नामों की सूची भेजी गयी उसमें नामित सदस्य के लिए जो नियम कायदे कैंट एक्ट में हैं मेरठ कैंट बोर्ड के तत्कालीन अफसरों ने उनका पालन गंभीरता से नहीं किया। अयोग्य होते हुए भी डा. सतीश शर्मा का नाम बोर्ड के सदस्य नामित होने के लिए भेजा गया। जानकारों का कहना है कि जिस शख्स पर अवैध निर्माण व कब्जे का आरोप हो इस आरोप के चलते जिस शख्स को कैंट बोर्ड से नोटिस भेजा गया हो, वह शख्स रक्षा मंत्रालय से कैंट बोर्ड का सदस्य होने की काबलियत नहीं रखता। ऐसे शख्स का नाम नहीं भेजा जाना चाहिए, लेकिन इसके बाद भी नाम भेजा गया इतना ही नहीं कैंट बोर्ड के सदस्य बनाए भी गए। इसी का विरोध करते हुए लालकुर्ती निवासी स. नरेन्द्र नागपाल ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर की थी जिसकी सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने कैंट बोर्ड के अफसरों डा. सतीश शर्मा के खिलाफ जिन मामलों को लेकर नोटिस दिए गए हैं, उनमें 90 दिन के भीतर कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
यह है पूरा मामला
कार्यकाल पूरा होने के उपरांत 11 जून 2021 को मेरठ कैंट बोर्ड को भंग कर दिया गया था। उसके बाद एक तय प्रक्रिया के तहत छह माह के उपरांत 12 जनवरी 2022 को डा. सतीश शर्मा को रक्षा मंत्रालय ने कैंट बोर्ड का मनोनीत सदस्य बनाए जाने का नोटिफिकेशन जारी किया था। बस यही से यह सारा विवाद शुरू हुआ। कैंट बोर्ड के मनोनीत सदस्य के लिए जिन्होंने आवेदन किया उनमें स. नरेन्द्र नागपाल का भी नाम शामिल था। उनके अलावा जो अन्य थे उनमें पूर्व सांसद प्रतिनिधि अमन गुप्ता, कैंट बोर्ड के पूर्व सदस्य अनिल जैन, धर्मवीर चंदेल, एडवोकेट राकेश कुमा शर्मा, अवनीश कुमार और डा. सतीश शर्मा का नाम शामिल था। लेकिन इनमें से केवल डा. सतीश शर्मा, अमन गुप्ता व राकेश शर्मा एडवोकेट के ही वाया पीडी तीनों नाम जीओसी और वहां से डीजी डिफैंस को भेज दिए गए। उल्लेखनीय है कि डा. सतीश शर्मा व राकेश शर्मा एडवोकेट सगे भाई हैं।
इससे पूर्व 19 अगस्त 2021 को तत्कालीन सीईओ कैंट नवेन्द्र नाथ ने उक्त सभी की पुलिस रिपोर्ट के लिए एसएसपी को एक पत्र लिखा था। तत्कालीन एसएसपी ने एसआई सदर सौराज सिंह को सीईओ का पत्र कार्रवाई को भेज दिया था। मामले को हाईकोर्ट में ले जाने वाले नरेन्द्र नागपाल ने बताया कि पुलिस की वैरिफिकेशन रिपोर्ट में वह स्वयं एक मात्र ऐसे थे जिन्हें क्लीनचिट दी गयी थी।
नोटिस पीडी के संज्ञान में
कैंट बोर्ड के तत्कालीन सीईओ नवेन्द्र नाथ ने 28 सितंबर 2021 को पीडी को पत्र भेजकर अवगत करा दिया था कि डा. सतीश शर्मा व अमन गुप्ता के खिलाफ अवैध निर्माण के मामलों को लेकर पूर्व में नोटिस की कार्रवाई की गयी है। राकेश शर्मा एडवोकेट के बारे में बताया गया कि वह अनेक मामलों में कैंट बोर्ड के खिलाफ चल रहे मुकदमों में पैरवी कर रहे हैं। मसलन कैंट के उच्च पदस्थ अफसरों को पता था कि जिनके नाम भेजे गए हैं वो कैंट एक्ट के कायदे कानूनों पर खरे नहीं उतरते।
यह है नियम
कैंट एक्ट में स्पष्ट किया गया है कि कोई भी ऐसा शख्स जिसने अवैध निर्माण या अवैध कब्जा किया हो। या ऐसे करने के लिए वह उकसाता हो वह शख्स कैंट बोर्ड का मनोनीत सदस्य बनने की काबलियत नहीं रखता है।
केवल एक बार बढ़ सकता है कार्यकाल
जानकारों की मानें तो कैंट एक्ट में स्पष्ट है कि कैंट बोर्ड के मनोनीत सदस्य का कार्यकाल केवल एक ही बार बढ़ाया जा सकता है। शपथ लेने के बाद कार्यकाल छह माह के लिए होता है। उसके बाद छह माह के लिए और बढ़ाया जा सकता है। लेकिन डा. सतीश शर्मा के मामले को रक्षा मंत्रालय के कुछ अफसरों की वजह से अपवाद बना दिया गया है।
अफसरों का एक्शन कब
दिल्ली हाईकोर्ट के अफसरों ने याचिका की सुनवाई के उपरांत डा. सतीश शर्मा को जारी किए गए नोटिसों के सापेक्ष कार्रवाई करने के लिए 90 दिन का वक्त दिया है। इस आदेश के साथ ही हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण कर दिया, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि इस संबंध में कैंट अफसर अपने ही द्वारा दिए गए नोटिसों पर कब कार्रवाई करेंगे। वहीं दूसरी ओर यह भी पूछा जाने लगा है कि बोर्ड बैठकों में अवैध निर्माणों के मामलों पर कैंट अफसरों के साथ कार्रवाई कराने वाले बोर्ड सदस्य क्या अपने मामले भी कार्रवाई की हिम्मत दिखाएंगे।