अफसरों को बचाने के जांच का खेल,
जिन मशीनों से घोटाला जांच अधिकारी उन्हें सील करना ही भूले
-प्रमुख सचिव ने हाईकोर्ट में माना डीलर नहीं कर सकते छेड़छाड, एआरओ व इंस्पेक्टर के पास थे आईडी पासवर्ड
मेरठ/ गरीबों के निवाले पर डाका डालने वालों अफसरों को बचाने के लिए जांच पर जांच का खेल। साल 2018 में अंजाम दिए गए राशन घोटाले में पांच साल बाद भी अभी जांच-जांच का खेल जारी है। इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात है कि यह हाईकोर्ट में प्रमुख सचिव खाद्यान यह मान चुके हैं कि जिस रहत से ईपॉस मशीनों से राशन घोटाले को अंजाम दिया, वह एआरओ व इंस्पेक्टर सरीखे अफसरों की मदद के बगैर संभव नहीं था। क्योंकि ईपॉस मशीन का पासवर्ड एसआरओ व इंस्पेक्टर के पास होता है। और इसको अपडेट भी किया जाता है। ईपॉश मशीन से छेड़छाड़ अकेले राशन डीलरों के बूते की बात नहीं।
इस घोटाले के चलते मेरठ में 220 दुकानें सस्पेंड की गयी थीं। इनके राशन डीलरों पर मुकदमें दर्ज किए गए थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन स्तर से एसआईटी का गठन किया गया था। कुछ दिन तक एसआईटी की जांच चलती रही। लेकिन जांच के नाम पर जब वक्त गुजरता रहा तो जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गयी। क्राइम ब्रांच वाले आए दिन राशन डीलरों को अपने आॅफिस में बुलाते और फिर वापस भेज दिया जाता। मसलन किसी नतीजे पर जांच नहीं पहुंची। क्राइम ब्रांच भी जब आरोपों की जद में आ गयी तो शासन ने राशन घोटाले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी। फिलहाल सीबीसीआईडी मामले की जांच कर रही है।
एक दुकान बहाल
इस बीच सबसे चौंकाने वाली जो बात हुई है वो यह कि राशन घोटाले के आरोप में सस्पेंड की गयी एक दुकान को हाईकोर्ट ने बहाल करने के आदेश दिए हैं। दुकान को बहाल कर भी दिया गया है। यह दुकान मवाना सर्किल की बतायी गयी है।
सिफारिश के बाद भी अफसरों पर कार्रवाई नहीं
गरीबों का निवाला डकारने के इस मामले में जांच ऐजेन्सियों ने तत्कालीन अफसरों जिनमें डीएसओ, एआरओ व इंस्पेक्टर सरीखे शामिल हैं के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की थी, लेकिन किसी भी अफसर पर आज तक कार्रवाई नहीं की गयी। इतना जरूर हुआ कि जब क्राइम ब्रांच के पास मामले की जांच थी तो कभी कभार क्राइम ब्रांच वाले डीएसओ आॅफिस के कर्मचारियों से पूछताछ के लिए पहुंच जाया करते थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे कहा जा सके कि जिन अफसरों के खिलाफ राशन घोटले में जांच की संस्तुति जांच ऐजेन्सियों ने की थी उनके खिलाफ भी शिकंजा कसा गया हो।
यह था पूरा मामला
सूबे के 34 जिलों में 350 करोड़ रुपये का अनाज घोटाला सामने आया था। 34 जिलों में अफसरों की मिलीभगत और राशन की दुकानों पर मौजूद ई पॉश मशीन में टेंपरिंग कर करोड़ों का राशन किसी अन्य के नाम पर निकाल कर बेचा गया। शुरूआत में जांच एसटीएफ और फिर ईओडब्ल्यू को सौंप दी गई। दरअसल, जुलाई 2018 में मेरठ में 27 हजार राशन कार्ड में गड़बड़ी कर राशन निकालने के मामले में पूरे प्रदेश में हुए घोटाले में 33 अन्य जिले भी शामिल थे। जांच यूपी एसटीएफ को दी गई। एसटीएफ की जांच में सामने आया कि सप्लाई अधिकारी से लेकर फूड इंस्पेक्टर, राशन की दुकानों पर मौजूद आॅनलाइन ई पॉश मशीन का डाटा एंट्री आॅपरेटर और कोटेदार तक शामिल था।
गड़बड़ी रोकने के लगाई मशीनों से ही गड़बड़ी
जांच में सामने आया कि जो मशीनें गड़बड़ी रोकने को लगायी गयी थीं, उन्हीं से घोटाला किया गया। राशन कार्ड की गड़बड़ी को रोकने के लिए हर दुकान पर एक ई पॉश मशीन दी गई, जिस पर उस राशन की दुकान पर दर्ज सभी राशन कार्ड धारक उनके परिवार के हर व्यक्ति का नाम, उम्र और फिंगरप्रिंट था। मंशा थी कि जब भी कोई परिवार का सदस्य राशन लेने जाएगा तो अंगूठा लगाते ही पूरे परिवार को दिए गए राशन का ब्यौरा सामने होगा और सरकारी कोटे का राशन दे दिया जाएगा।
हर कोटेदार को दी गई इस मशीन में आॅनलाइन डाटा फीड करने के लिए फूड इंस्पेक्टर के अधीन संविदा पर डाटा एंट्री आॅपरेटर रखे गए। शिकायत में शक है कि अफसरों के इशारे पर डाटा एंट्री आॅपरेटरों ने ही इस पूरे घोटाले की शुरूआत की। जब भी किसी राशन की दुकान पर महीने का राशन पहुंचता तो सबसे पहले उन कार्ड धारकों की सूची अलग कर ली जाती जो महीने में हर बार राशन लेने नहीं आते। रजिस्टर्ड राशन कार्ड धारक की जगह पर अपने ही किसी आदमी का आधार नंबर डाल दिया जाता और जैसे ही सेंटर से डाटा अप्रूव होता उस आधार नंबर वाले का अंगूठा लगाकर राशन निकाला जा रहा था। राशन निकलते ही डाटा एंट्री आॅपरेटर असल कार्ड धारक के आधार कार्ड को ही एंटर कर देता। इससे राशन कार्ड धारक को पता भी नहीं चलता कि उसके हिस्से का राशन बंट गया है और सरकारी कोटे की दुकान से राशन निकल भी जाता।
27 हजार राशन कार्ड 220 दुकानें
एसटीएफ की जांच में पता चला कि सिर्फ मेरठ में ही 27 हजार राशन कार्ड की 220 दुकानों से गड़बड़ी की शिकायतें पकड़ी गई। मेरठ में 51 मुकदमे अलग-अलग थानों में दर्ज हुए। शुरूआत में यह जांच 14 जिलों तक ही सीमित थी, लेकिन बाद में घोटाले की जद में 20 और नए जिले भी आए। 350 करोड़ के राशन कार्ड घोटाले में लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, औरैया, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, नोएडा, मुरादाबाद, अमरोहा, बलरामपुर, प्रयागराज, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद और बरेली भी शामिल किए गए।