बेगुनाहों को सलाखों के पीछे धकेलने का कसूर

बेगुनाहों को सलाखों के पीछे धकेलने का कसूर
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बेगुनाहों को सलाखों के पीछे धकेलने का कसूर, मुंबई: बेगुनाह होते हुए भी उन्हें सलाखों के पीछे धकेलने वाले कसूरवारों को सजा कौन देगा. यह सवाल सिस्टम को चलाने वालों से महाराष्ट्र के मुसलमान ही नहीं बल्कि आमजन भी पूछ रहे है. क्या उनके कपड़े देखकर उन्हें गुनाहगार मान लिया गया. महाराष्ट्र GRP क्या बेगुनाहों को कसूरवार मानकर उन्हें सीखचों के पीछे भेजने के कसूर पर राज्य की जनता से माफी मांगेगी. ये तमाम सवाल हैं जो पूछे जा रहे हैं। दरअसल हुआ यह किपिछले साल 59 छात्रों के साथ ट्रेन में अररिया (बिहार) से पुणे (महाराष्ट्र) जा रहे पांच मदरसा शिक्षकों को राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने बच्चों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया था. बाल मजदूरी कराने के इरादे से बच्चों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार पांचों शिक्षक करीब एक महीने जेल में रहे.

जो अपराध किया कभी किया ही नहीं उसे कैसे कोई समझ सकता है अपराध

सभी आरोपी शिक्षकों की उम्र 20 से 35 वर्ष के बीच थी. अब एक साल बाद जीआरपी ने अपनी जांच पूरी कर ली है और किसी शिक्षक के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है. उनका कहना है कि यह पूरा मामला ‘गलतफहमी’ के कारण खड़ा हुआ था.  30 मई 2023 को महाराष्ट्र के दो अलग-अलग रेलवे स्टेशनों से गिरफ्तार किए गए पांच शिक्षकों में से एक 24 वर्षीय मोहम्मद शाहनवाज हारून के अनुसार, जीआरपी द्वारा पहले उन्हें गिरफ्तार करना, फिर बाद में यह दावा करना कि मामला निराधार था, इसका कोई मतलब नहीं है. उन्होंने पूछा, ‘जो अपराध कभी किया ही नहीं गया, उसको अपराध कोई कैसे समझ सकता है?’ हारून को सद्दाम हुसैन सिद्दीकी (24), नोमान आलम सिद्दीकी (29) और इजाज जियाबुल सिद्दीकी (34) के साथ 30 मई 2023 को मनमाड स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था. एक अन्य शिक्षक मोहम्मद अंजुर आलम को भुसावल स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था. रेलवे स्टेशन से पांचों शिक्षकों और बच्चों को नासिक ले जाया गया था. मनमाड और भुसावल जीआरपी द्वारा दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई थीं. हालांकि, दोनों का सार एक जैसा ही था और क्लोजर रिपोर्ट भी एक ही आई है,

बता दिया बच्चा तस्कर

हारून ने आगे कहा, ‘यह पहली बार था जब मैं इतनी लंबी यात्रा पर निकला था. हम पांचों प्रशिक्षित शिक्षक थे जो अपने सुदूर जिले अररिया से बच्चों के साथ यात्रा कर रहे थे. लेकिन अचानक हमें बच्चों की तस्करी करने वाला घोषित कर दिया गया.’ हारून को यह भी स्पष्ट नहीं था कि उनकी गिरफ्तारी क्यों की गई. उन्होंने कहा कि बाद में (जमानत पर रिहा होने के बाद) सुना कि किसी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी का झूठा दावा किया था. हारून कहते हैं, ‘किसी ने ट्वीट किया और पुलिस ने बिना सोचे केस लगा दिया.’ गिरफ्तार किए गए एक अन्य शिक्षक सद्दाम ने कहा, ‘हमसे हमारी पृष्ठभूमि के बारे में पूछताछ की गई और दस्तावेज़ मांगे गए. पुलिस द्वारा मांगे गए सभी दस्तावेज़ हमारे पास थे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘प्रत्येक बच्चे और मदरसे का आवश्यक विवरण प्रस्तुत करने के बाद भी पुलिस ने हमें अगली सुबह मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया.’ गिरफ्तार किए गए सभी पांच व्यक्तियों को 12 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था, उन्होंने दो सप्ताह से अधिक समय नासिक केंद्रीय जेल में बिताया. बच्चों को बाल गृह भेज दिया गया. सभी बच्चों की उम्र 12 से 17 साल के बीच थी. गिरफ्तारी के बाद मामले में सक्रिय हुई बिहार पुलिस ने बच्चों के माता-पिता के बयान एकत्र किए, अभिभावकों ने मामले में फंसे शिक्षकों के पक्ष में गवाही दी. इस घटना ने उन सभी पांच शिक्षकों के लिए सब कुछ बदल दिया था. सद्दाम कहते हैं, ‘बिहार एक गरीब राज्य है और हमारा जिला अररिया, जो नेपाल सीमा पर है, सबसे गरीब जिलों में से एक है. यहां कोई नौकरी नहीं हैं. हम पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों की यात्रा किए बिना अपना परिवार नहीं चला सकते.’ उस घटना के बाद से पांचों शिक्षक मुश्किल से ही अपने गांव से बाहर निकले हैं. हारून ने कहा कि जब पांचों लोगों को गिरफ्तार किया गया, तो गांव में उनके परिवार वाले घबरा गए थे.

दिल दहलाने वाले वाक्यात

उन्होंने कहा, ‘यूट्यूब ट्रेनों में मुसलमानों पर हमले और उन्हें निशाना बनाए जाने के वीडियो से भरा पड़ा है, हमारी घटना ने हमारे परिवारों और उन बच्चों के परिवारों को भी झकझोर कर रख दिया जो मदरसों में पढ़ने के लिए शहरों की यात्रा करते हैं.’ इस संबंध में हारून 2017 में हुई मॉब लिंचिंग की एक घटना का जिक्र करते हैं, जहां मथुरा जाने वाली ट्रेन में एक नाबालिग लड़के की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने की मदद

बहरहाल, मामले में पुलिस ने इस साल मार्च में ‘सी समरी’ रिपोर्ट दाखिल की थी. ‘सी समरी’ रिपोर्ट तब दायर की जाती है जब जांच एजेंसी को यह लगता है कि तथ्यों को दर्ज करने में हुई गड़बड़ियों के कारण किसी व्यक्ति को गलत तरीके से फंसाया गया है. इन पांच लोगों को कानूनी सहायता मुंबई के एक सामाजिक-कानूनी संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्रदान की. अदालत में उनकी पैरवी अधिवक्ता नियाज अहमद लोधी ने की. लोधी ने द वायर को बताया, ‘शुरुआत में ही पुलिस को पता था कि उनके पास इन लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, फिर भी उन्हें हिरासत में ले लिया गया.’ कुछ महीने पहले लोधी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर कर मांग की थी कि शिक्षकों के खिलाफ मामला रद्द कर दिया जाए. लोधी ने कहा कि यह पहली बार था जब जीआरपी ने यह संकेत दिया कि उन्हें उन शिक्षकों के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला है. कुछ महीनों में उन्होंने एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की.

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