खाता है तो मंदिर में क्यों रखे है बीस लाख,
मेरठ के सदर दुर्गाबाड़ी स्थित श्री 1008 दिगंबर जैन पंचायती मंदिर का जिन्हें पंच बताया जा रहा है, समाज उनसे जानना चाह रहा है कि मृदुल जैन करीब बीस लाख की बतायी जा रही जो रकम दो किश्तों में दी है, उसको मंदिर में क्यों रखा हुआ है। जबकि मंदिर के नाम से बैंक में खाता है, उस खाते में इस रकम को ना रखे जाने की पीछे मंशा क्या। समाज के जो लोग मंदिर जी को दान देते हैं उनकी यह आशंका जायज भी है। उनका मानना है कि शहर के तमाम मंदिरों में चोरी की घटनाएं हो रही हैं। दान पात्र तोड़ दिए जाते हैं तो ऐसे में क्यों इस रकम को बजाए मंदिर के बैंक खाते में जमा करने के मंदिर में रखना उचित होगा। इस रकम को मंदिर में ही रखने की मंशा क्या है। इसके अलावा समाज के लोग पूछ रहे हैं कि यदि मंदिर जी का बैंक खाते में कुछ तकनीकि परेशानी है जिसके तो उसको जिन्हें पंच बताया जा रहा है वो पंजाब नेशनल बैंक जहां मंदिर जी का खाता है उनसे मिलकर उसको दूर क्यों नहीं करा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर समाज के कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह सब जितना आसान नजर आता है उतना है नहीं। इसकी एक बड़ी वजह साल 2014 के बाद जो काविज हुए थे उनकी कमेटी कालातीत हो गयी थी। जब कमेटी कालातीत हो गई तो फिर कैसे पदाधिकारी और मंदिर जी के खाते को संचालित करने का उनके पास कैसा अधिकार। सदर जैन समाज के कुछ लोग तो इससे भी आगे की बात बता रहे हैं। उनका कहना है कि बात चाहे मृदुल से हिसाब लेने की हो या फिर पंचों की नियुक्ति की। जब तक डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यालय से इस सब पर स्वीकृति नहीं ली जाती तब तक मंदिर जी को लेकर कानूनी वैधता नहीं मिलेगी वो चाहे पंच हो या कोई और। इसके अलावा पंच किस अधिकार से बैंक में खाता एक्टिवेट कराने जाएंगे। क्या उन्हें इसका कानूनी अधिकार है। उन्हें कानूनी अधिकार तब तक नहीं मिल सकता जब तक डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यालय से उन्हें काम करने की स्वीकृति नहीं मिल जाती। यह स्वीकृति तभी मिलेगी जब पंच वहां आवदेन करें। डिप्टी रजिस्ट्रार के सम्मुख प्रस्तुत होकर बताएं की उन्हें पंच बना दिया गया है। लेकिन यह भी इतना आसान नहीं। डिप्टी रजिस्ट्रार जब सवाल करेंगे कि किसने और किस हैसियत से पंच बनाया है तो क्या उत्तर देंगे। समाज के कौन-कौन लोग थे जिन्होंने पंच बनाया है। क्या उस बैठक या सभा की कोई प्रोसिंडिंग है। किसी के साइन हैं। डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यालय हो या फिर प्रशासन जो भी इस प्रकार की मंदिर सरीखी संस्थाओं के कामकाज देखते हैं उनका पहला सवाल यही होगा कि पंच तो ठीक है, लेकिन पंच बनने के लिए जो प्रोसिंडिंग होनी चाहिए वो कहा है या फिर सब कुछ साेमनाथ के मंदिर की तर्ज पर चलेगा जैसा की तीन सौ साल पुराने इस प्राचीन धार्मिक मंदिर में अब तक चलता आ रहा है।