सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने वाले वक्फ व ट्रस्टों की खंगाली जा रही कुंडली, साल 1946 से साल 1952 के बीच बेची सरकारी जमीनों के बैनामों की जांच शुरू, कान्टीनेंटल की अनुपयोगी जमीन पर कब्जा तय

मेरठ/ मेरठ समेत प्रदेश भर की हजारों अवैध कालोनियों, मार्केटों व कई अन्य ऐसे ही भवनों पर तलवार लटक रही है जो जमीदारी उन्मूलन कानून आने की आहट पर खुर्दबुर्द की गयी सरकारी जमीनों पर आबाद हैं। जमींदारी उन्मूलन कानून, जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए बनाया गया था, जिसमें सरकार और किसानों के बीच जमींदारों को हटा दिया गया था। इस कानून के तहत, जमींदारों से भूमि स्वामित्व का अधिकार वापस ले लिया गया और किसानों को भूमि स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो गया। सरकार ने जमींदारों को मुआवजे का भुगतान भी किया/ इंच-इंच जमीन का होगा हिसाब/ मेरठ के अब्दुलापुर, मवाना रोड, कंकरखेड़ा सरीखे तमाम इलाके ऐसे हैं जहां इस प्रकार की सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द कर अवैध कालोनियां आबाद कर दी गयीं। इन तमाम कालोनियों की सूबे की योगी सरकार कुंडलियां खंगाल रही है। जिनके द्वारा ये सरकारी जमीनों बेचकर वहां पर अवैध कालोनियां या बाजार अथवा ऐसे ही चीजें करायी गयी हैं योगी सरकार ने उनकी गर्दन तक हाथ पहुंचने के लिए आस्तीन चढ़ा ली हैं। केवल मेरठ ही नहीं प्रदेश भर में ऐसा होने जा रहा है।
सर्किल रेटों पर होगी रिकबरी

जो सरकारी जमीनें ट्रस्ट और वक्फ ने खुर्दबुर्द की हैं, उन्हें खुर्दबुर्द करने वालों से जो रिकबरी होगी वो वर्तमान सर्किल रेट पर किए जाने की योगी सरकार की तैयारी है। सूत्रों ने जानकारी दी है कि इसके लिए होमवर्क पुरा कर लिया है। यहां आज के सर्किल रेट की बात इसलिए की जा रही है कि क्योंकि ये जमीन जमीनों को लेकर सरकार ने तैयारी की है वो सभी जमीनें जमीदारी उन्मूलन कानून या कहें जमीदारी विनाश कानून आने से पहले या लागू किए जाने से पहले ही खुर्दबुर्द कर दी गयी थीं।
यह हुआ था संकल्प

8 अगस्त 1946 को संकल्प लिया गया कि जब तक जमीदारी उन्मूलन कानून नहीं बनकर लागू हो जाता, तब तक किसी भी जमीन का हस्तांतरण पूर्ण प्रतिबंधित रहेगा। किसी प्रकार का कोई दान, लीज, किरायानामा, ठेका, सेल डीड कुछ भी नहीं किया जाएगा, लेकिन मनाही के बाद भी बडे स्तर पर सरकारी जमीनें खुर्दबुर्द की गयीं। यह सारा काम साल 1946 से लेकर 1952 के बीच किया गया। खुलेंगे पुराने चिट्ठे मनाही के बाद भी सरकारी जमीनों को किसी ना किसी तरह से खुर्दबुर्द करने वाले वक्फ व ट्रस्ट सरीखी संस्थाओं की इन्हीं कारगुजारियों के पुराने चिट्ठे खोले जाने की पूरी तैयारी कर ली है। सूबे की सरकार का यह सारा कार्य नए कानून के चश्मे से देखा जा रहा है। सूत्रों ने जानकारी दी कि साल 1946 से लेकर 1952 के बीच जमीनों के इस प्रकार के जितने भी हस्तारण किए गए हैं उन सभी का ब्योरा राजस्व विभाग की अलामारियों में आज भी महफूज है। किसने जमीन बेची किस को बेची उसने आगे किसे बेची ये सारी कुंडी इन दिनों बांची जा रही है। किसी भी दिन इसके मुतालिक कार्रवाई का एलान सूबे की सरकार की ओर से किया जा सकता है।
कान्टीनेंटल की अनुपयोगी जमीन पर कब्जा तय

21 सितंबर 1972 को तत्कालीन राजस्व सेक्रेटरी गिरीश चंद चतुर्वेदी ने राय बहादुर गुजरमल मोदी को जिन शर्तो के आधीन मोदीपुरम में टायर कंपनी के लिए जमीन दी गयी और खुद जिसका बैनामे पत्र पर राय बहादुर गुजर मल मोदी के हस्ताक्षर हैं उसमें कहा गया था कि चेंज आॅफ परपेज नहीं होगा। एक अन्य शर्त यह भी थी कि यदि दस साल तक जमीन अनुपयोगी रहेगी तो सरकार उस पर कब्जा ले लेगी। वह जमीन सरकार के आधीन होगी। और मोदीपुरम कान्टीनेंटल कंपनी के मामले में ऐसा निश्चित रूप से होने भी जा रहा है। इसमें किसी को कोई शव सुबहा नहीं होना चाहिए।