इंसाफ के लिए 11 साल का लंबा इंतजार, नई दिल्ली: एक पुरानी कहावत है कि देर से किया गया इंसाफ अन्याय से कम नहीं. यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि हाईप्रोफाइल केसों में भी देर से इंसाफ आ रहा है. खासतौर से ऐसे केस जो मानवता को पूरी दुनिया में शर्मसार करते हैं. तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में करीब 11 साल बाद फैसला आया है. 10 मई को पुणे की एक अदालत ने सनातन संस्था से जुड़े दो लोगों को दाभोलकर की हत्या का दोषी ठहराया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हत्यारोपी सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दोषी ठहराते हुए 5 लाख रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. शरद कलास्कर को दाभोलकर के आलावा सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पानसरे और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में भी मुख्य सूत्रधार माना जाता है. कोर्ट ने तीन लोगों को बरी भी किया है. सभी आरोपी उग्र हिंदुत्ववादी संगठन सनातन संस्था से जुड़े बताए जाते हैं.
इन्हें कर दिया बरी
अदालत ने सर्जन डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े, मुंबई के वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहयोगी विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शिवाजीनगर अदालत परिसर के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए दाभोलकर के बेटे डॉ हामिद ने कहा, ‘एक हद तक संसंतोष तो है कि दोनों हमलावरों को दोषी ठहराया गया है और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. लेकिन हत्या के पीछे के मास्टरमाइंड और पूरी साजिश का खुलासा अब भी नहीं हुआ है.’
नरेंद्र दाभोलकर पर भी एक नजर
पेशे से डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे. अपनी संस्था के माध्यम से वह अंधविश्वास के खिलाफ अभियान चलाते थे. तर्कवादी, अंधविश्वास-विरोधी दाभोलकर की हत्या 20 अगस्त, 2013 की सुबह पुणे में वीआर शिंदे पुल पर दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मारकर की थी. तब दाभोलकर की उम्र 67 वर्ष थी. हत्या से पहले उनके विरोधियों ने उन्हें ‘हिंदू विरोधी’ के रूप में प्रचारित किया था. उन्हें कई बार जान से मारने की धमकी भी मिली थी.