सरकारी तालाबों पर इंस्टीट्यूट- होटल व अवैध कालोनियां,
कभी पांच हजार से ज्यादा थे- अब चार सौ ही हैं बचे, मेरठ में कभी पांच हजार से ज्यादा तालाब हुआ करते थे, सरकारी फाइलों की यदि बात करें तो महज करीब चार सौ ही तालाब बचे है। बाकियों पर अवैध बिल्डिंग, होटल, स्कूल कालेज व इंस्टीट्यूट खोल दिए गए। कुछ पर भूमाफियाओं ने अवैध कब्जे कर कालौनियां काट दी हैं। तालाबों को बचाने के लिए सरकार ने अमृत सरोबर योजना का एलान किया था, लेकिन जब मेरठ के तालाब ही खो गए हैं तो फिर तालाबों के नाम पर शुरू की गयी अमृत सरोबार योजना क्या केवल फाइलों में चल रही है। जमीनी हकीकत की बात करें को दावे भले ही कोई कुछ भी करे, लेकिन हकीकत यह है कि अमृत सरोबर योजना फाइलों में खूब फलीभूत हो रही है। जो तालाब कभी पानी से लबालब हुआ करते थे। उनमें से 90 फीसदी से ज्यादा में अवैध बिल्डिंग, होटल, स्कूल कालेज व इंस्टीट्यूट या फिर अवैध कालोनियां काट दी गयी हैं। लगभग सात साल पहले इसका खुलासा तत्कालीन कमिश्नर प्रभात कुमार द्वारा शुरू कराए गए सर्च अभियान में हुआ था। सरकारी रिकार्ड की यदि बात करें तो फाइलाें में 5114 तालाब दर्ज हैं। साल 2022 में एक सरकारी रिपोर्ट तालाबों को लेकर जब रिपोर्ट तलब की गयी तो पता चला कि मेरठ में महज 3062 बाकि बचे हैं। इनमें से भी 1530 पर अवैध कब्जा पाया गया। 1 हजार से ज्यादा तालाब खो गए मसलन उनका अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया। मेरठ जिले में कुल 400 तालाब ही ऐसे बचें है जिनमें पानी भरा पाया गया।
एक ओर जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तालाबों का सौंदर्यीकरण करने के दावे कर रही हैं, वहीं भूमाफिया और दबंग न सिर्फ तालाबों पर कब्जा किए हुए हैं बल्कि सरकार के दावों की भी पोल खोल रहे हैं। 80 फीसदी से ज्यादा तालाबों पर ग्रामीणों और दबंगों ने कब्जा किया हुआ है। जिले में 3062 तालाबों में से, जहां 1530 तालाबों पर अस्थाई कब्जा किया गया है। वहीं 1000 से ज्यादा तालाब धरातल से गायब हो गए हैं। इसके बाद मेरठ जिले में कुल 400 तालाब ही ऐसे बचें है, जिनमें पानी भरा हुआ है. दावे कोई कुछ भी करे लेकिन सच यही है कि नगर निगम क्षेत्र में 45 से ज्यादा तालाब पूरी तरह से आबादी के नीचे दबकर गुम हो गए हैं। 20 से अधिक तालाबों का अस्तित्व आंशिक कब्जे के चलते खतरे में हैं। लेकिन नगर निगम के अधिकारी अभिलेखों में 212 तालाब दर्ज होने का दावा कर रहे हैं।
शासन की तालाब पुनर्जीवन योजना
शासन से तालाबों के पुनर्जीवन के लिए योजना है। नगर निगम को तालाबों की खोदाई, सफाई करानी है। करीब चार साल पहले तत्कालीन नगर आयुक्त डा. अरविंद कुमार चौरसिया ने गोलाबड़ और जिटौली तालाब के जीर्णोद्वार की कार्ययोजना बनाई थी। तब केवल गोलाबड़ तालाब का ही निगम पुनर्जीवन कर सका है। जबकि जिटौली तालाब का जीर्णोद्वार किया जाना था। इन दो तालाबों को छोड़कर अन्य तालाबों के जीर्णोद्वार की कोई कार्ययोजना नहीं बनाई जा सकी। अब्दुल्लापुर तालाब को छोड़कर अन्य किसी तालाब से कब्जे हटाने की कार्रवाई नहीं की। जानकारी मिली है कि नगर निगम ने जो तालाबों की सूची तैयार की है। उसमें 20 से ज्यादा तालाबों पर आंशिक कब्जे हैं। यही नहीं, तालाबों तक वर्षा जल संचयन की संरचना भी बनवानी है। लेकिन नगर निगम ने यह काम भी नहीं किया है। वहीं दूसरी ओर केंद्र और राज्य सरकार जलस्रोतों के संरक्षण को लेकर चिंतित है। यही वजह है कि शासन ने कुछ दिन पूर्व ही नगर निगम से तालाबों की सूची मांगी है। नगर निगम ने केवल 94 तालाबों की सूची ही शासन को भेजी है। जिन्हें रिक्त दर्शाया गया है। अर्थात ये कब्जा मुक्त हैं। इनमें से केवल 25 तालाबों में पानी भरे होने का दावा किया गया है। बाकी सूखे हैं या सिल्ट, कचरे से अटे हैं। तहसील स्तर पर तालाबों की स्थिति पर नजर डालें तो सदर तहसील क्षेत्र के 126, मवाना के 112 और सरधना के 85 तालाबों पर कब्जे हैं। इनमें कई तो ऐसे हैं जिनका अस्तित्व खत्म ही हो चुका है।
हालात बद से बत्तर
तालाबों के कब्जों की यदि जमीनी हकीकत की बातें तालाबों के हालात बद से बदत्तर हैं। शहर में कई इंस्टीट्यूट तालाब पर अवैध कब्जा कर बना दिए गए।इसी तरह से जागृति विहार, श्रद्धापुरी, गंगानगर, और पल्लवपुरम आदि ऐसी बड़ी योजनाएं हैं, जहां तालाबों का भी अधिग्रहण हो गया। बिल्डरों ने इन तालाबों पर आलीशान कालोनियां विकसित कर दी हैं। कई मामलों में तो कालोनी काटने वाले बिल्डर भी गायब हो गए हैं। सरकारी अभिलेखों में तालाब तो दर्ज है, लेकिन उस तालाब पर अवैध कालोनी किसने काट दी इसका कोई ब्यौरा नहीं है।