जाट-गुर्जर कम पर मुसलमान में दम, मेरठ नगर निगम महापौर के चुनाव में जाट गुर्जर और पंजाबी भले ही कम हो, लेकिन उनमें दम न हो यह बात आसानी से गले नहीं उतरती। सपा-रालोद गठबंधन के नाम पर सीमा प्रधान और भगवा खेमे से हरिकांत अहलूवालिया चुनावी महासमर में है। सपा प्रधान के नाम का एलान काफी पहले हो चुका था, हरिकांत अहलूवालिया चंद घंटे पहले ही मैदान में उतरे हैं। उन्होंने सोमवार को अपना पर्चा दाखिल किया। कांग्रेस ने नसीम कुरैशी पर दांव खेला है, जबकि बसपा से हशमत मैदान में हैं। कांग्रेस और बसपा के प्रत्याशी की बात यदि की जाए तो दोनों को लेकर जानकार सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि जाट व गुर्जर मतदाताओं शायद ही इनसे कोई सरोकार रहे। वैसे जहां तक मुख्य मुकाबले की बात है तो वर्तमान में जो चुनावी समीकरण हैं उनके चलते एग्जिटपोल के माहिर कांग्रेस व बसपा के प्रत्याशी को साइड लाइन कर चल रहे हैं। मुख्य मुकाबला जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष व सरधना से सपा के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान तथा नगर निगम मेरठ के पूर्व मेयर हरिकांत अहलूवालिया के बीच मानकर चला जा रहा है। एग्जिट पोल के माहिर भाजपा से 90 फीसदी तक जाट गुर्जरों के छिट जाने का कयास लगा रहे हैं। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जाट गुर्जरों की जहां तक बात है तो मेरठ नगर निगम क्षेत्र में उनकी संख्या इतना नहीं है कि पूरा चुनाव प्रभावित कर सकें। जाट गुर्जरों के सीमा प्रधान के पक्ष में जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि सीमा खुद गुर्जर हैं और रालोद गठबंधन की प्रत्याशी होने की वजह से जाट भी ठीकठाक मिल जाएंगे। वैसे भी अतुल की जहां तक बात है तो चुनावी मैनेजमेंट में उनकी गिनती तेजतर्रार नेताओं में होती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में अतुल प्रधान का चुनावी मैनेजमेंट का कौशल भाजपाई अच्छी तरह से देख चुके हैं। ये अतुल प्रधान ही थे जिन्होंने भाजपा के फायर ब्रांड माने जाने वाले संगीत सोम का बिस्तर बांध दिया था। लेकिन महापौर के चुनाव में मुसलमान मतदाता हैं। मुसलमान मतदाताओं की यदि बात की जाए तो उनकी संख्या चुनाव परिणाम को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है लेकिन शर्त यह है कि मुसलमान मतों में कोई बंटवारा न हो। जिसको भी मुसलमान एक मुश्त पड़ेगा उसकी नइया काफी हद तक इस चुनाव में पार हो जाएगी। पिछले कुछ समय से यूपी ही नहीं बल्कि देश भर में जो हालात नजर आ रहे हैं उसको लेकर मुसलमानों में भगवा खेमे के प्रति नाराजगी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन इस नाराजगी को कौ प्रत्याशी कितना कैश करता है, यह भी चुनावी नतीजे पर असर डालेगा। सीमा प्रधान का चुनावी मैनेजमेंट मुसलमानों की भगवा खेमे के प्रति नाराजगी को कैश करता है या फिर कांग्रेस और बसपा के प्रत्याशी बोट कटवा साबित होकर भाजपा की चुनावी राहें आसान करते हैं, इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना अभी कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होगा। उसके लिए कम से छह दिन का इंतजार तो करना ही होगा।