कर्नाटक जीते तो फिर सब जीते, कर्नाटक की चुनावी महाभारत में भाजपा और कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर यह भी तय है कि कर्नाटक जीते तो फिर सब जीते और कर्नाटक हारे तो फिर सब हारे. वहीं दूसरी ओर राज्य के चुनाव में जितनी तेजी से कांग्रेस और भाजपा पांव पसारते जा रहे हैं, उतना ही ज्यादा जेडीएस का दायरा भी सिमट रहा है. जेडीएस की बात करें तो जेडीएस के लिए यह चुनाव वजूद को कायम रखने का भी चुनाव है. चुनाव की बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा को बड़ा नुकसान होने जा रहा है, यह नुकसान केवल मत फीसदी कम होने के दायरे में रहेगा या फिर इस बार सीटों का भी नुकसान होने जा रहा है, यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन हां इतना तय है कि कांग्रेस भाजपा के मुकाबले बेहतर हालात में है, लेकिन इससे सीटें कितनी बढ़ेंगी यह कयास नहीं लगाया जा सकता. इससे भी इतर एक ओर बात वो यह है कि ज्यादा सीटें लाने के बाद भी क्या कांग्रेस राज्य में सरकार बना पाएगी या फिर पूर्व के चुनावों की तरह भाजपा एक बार फिर कांग्रेस के पंजे से जीत को छीनकर ले जाएगी.कर्नाटक में चुनाव प्रचार आखिरी चरण में है और आम धारणा यह बन रही है कि कांग्रेस इस विधानसभा चुनावों में भाजपा को मात देने वाली है. चुनाव प्रचार के आखिरी हफ्ते में जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को चुनाव प्रचार में पूरी तरह झोंक दिया है, ज्यादातर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कांग्रेस को भाजपा के पर साफ बढ़त की तस्वीर पेश कर रहे हैं. कांग्रेस के पक्ष में एक ज्वार दिख रहा है, जिसकी तसदीक भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी से होती है. वे सिर्फ 8 मई को चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले वो किसी कोई चमत्कार या फिर कांग्रेस खेमे की ओर से की जाने वाली राजनीतिक गलती की आस लगाए बैठे हैं. इसके अलावा कोई ऐसा दूसरा कारण नहीं अभी नजर आ रहा है, जिससे लगे की भाजपा ने चुनाव में बढ़त हासिल कर ली है.ज्यादातर भाजपा नेताओं को इस बात का भली-भांति एहसास है कि पार्टी भीषण सरकार विरोधी लहर का सामना कर रही है, जिसे पिछले काफी वर्षों में सबसे ज्याद भ्रष्ट सरकार होने की धारणा ने और मजबूत करने का काम किया है. ‘40 परसेंट वाली सरकार’ का मुहावरा जंगल की आग की तरह जनता में फैला गया है. भाजपा कितना भी चाह ले, इस पर पर्दा नहीं डाल सकती है. लेकिन यहां बात कर्नाटक के चुनाव परिणामों को महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के प्रस्तावित चुनावों के परिपेक्ष्य में देखा जाना जरूरी है.