किस मुंह से मनाएंगे जश्न-नहीं लड़ा सके पंजा

किस मुंह से मनाएंगे जश्न-नहीं लड़ा सके पंजा
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किस मुंह से मनाएंगे जश्न-नहीं लड़ा सके पंजा, कर्नाटक जीत का जश्न फीका: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में कांग्रेस पंजा नहीं लड़ा सकी, बल्कि यूं कहें की उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में मिली करारी हार ने कांग्रेसियों के लिए कर्नाटक जीत का जश्न फीका कर दिया. यूपी निकाय चुनाव में बुरी भद्द पिट जाने के बाद कांग्रेसी मुंह छिपाए घूम रहे हैं. चाह कर भी कर्नाटक विधानसभा जीत का जश्न नहीं मना सकते. भाजपाइयों के लिए यूपी जीत कसैली: वहीं दूसरी ओर कर्नाटक पर कोई नाटक न चलने की वजह से भाजपाइयों के लिए यूपी स्थानीय निकाय के चुनाव में शानदार जीत का स्वाद फीका पड़ गया है. भाजपा के बड़े नेताओं की यदि बात की जाए तो कर्नाटक में मिली करारी हार ने यूपी निकाय चुनाव की जीत का स्वाद कसैला कर दिया है. जिसकी सरकार उसी की जीत: वैसे भी यदि निकाय चुनाव की बात की जाए तो जिस दल की सत्ता होती है, दस्तूर रहा है कि निकाय चुनाव में उसी दल की जीत होती है. इसका परिणाम दिल्ली निकाय चुनाव हैं जहां आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते किया, दूसरा उदाहरण हिमाचल प्रदेश का है, जहां से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर आते हैं, इसके बावजूद हिमाचल में भाजपा का सूपड़ा सापु हो गया, हिमाचल स्थानीय निकाय चुनाव की बात की जाए तो सबसे बुरी हालत तो शिमला में हुई है, जो भाजपा का गढ़ माना जाता है, तीसरा उदाहरण पंजाब राज्य का है, इसलिए जहां तक यूपी स्थानीय निकाय चुनाव परिणामों की बात है तो ज्यादा फुदकने की जरूरत नहीं, राजनीतिक दस्तूर के मुताबिक यहां भाजपा को जीतना ही था. नहीं कह सकते क्लीन स्वीप:, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेता भले ही कुछ भी दावे क्यों न करें लेकिन उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में भाजपा को क्लीन स्वीप का दर्जा देना जल्दबाजी होगी. यूपी के 17 नगर निगम के महापौर के चुनाव में सभी 17 सीटें जीतने के इतर, जिसमें कोई शक नहीं कि तमाम चुनौतियों के बावजूद भाजपा ने जीत दर्ज करायी है, लेकिन नगर निगमों की यदि बात की जाए तो सत्ताधारी दल क्लीन करता नजर नहीं आ रहा है, जो रूझान अब तक आए हैं उनमें प्रदेश भर के नगर निगमों की यदि बात की जाए तो 403 पर भाजप, 128 पर सपा, 37 पर बसपा व 173 पर अन्य आगे चल रहे हैं. इसी तरह से प्रदेश भर की नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव को लेकर जो रूझान आ रहे हैं उनमें से 93 पर भाजपा, 33 पर सपा व 23 पर बसपा और 50 पर अन्य आगे चल रहे है. वहीं दूसरी ओर यदि नगर पालिका परिषदों के सदस्यों की बात की जाए तो सूबे भर की नगर पालिका परिषद के सदस्य के चुनाव को लेकर जो रूझान आए हैं उनके मुताबिक भाजपा 608, सपा 456, बसपा 167 व निर्दलीय की संख्या 662 है. प्रदेश की नगर पंचायतों के अध्यक्ष के चुनाव के रूझान में भाजपा 198, सपा 87, बसपा 39 व निर्दलीय 206 आगे चल रहे हैं. इसी तर्ज पर नगर पंचायत सदस्यों के चुनाव को लेकर जो मतगणना में 752 पर भाजपा आगे चल रही है जबकि 451 पर सपा आगे चल रही है, वहीं दूसरी ओर 144 सदस्य बसपा के भी जीत सकते हैं, सदस्य के चुनाव में निर्दलीय भी पूरा दमखम लगा रहे हैं 668 निर्दलीय मतगणना में आगे चल रहे है. वहीं दूसरी ओर यदि सूबे के 17 नगर निगमों की बात की जाए तो सहारनपुर में बसपा से तो कानपुर व मुरादाबाद में कांग्रेस से कड़ी चुनौती भी मिली है. भाजपा के लिए साबित हुई संकट मोचन:  मेरठ की यदि बात करें तो एक बार फिर साबित हो गया कि एआईएमआईए भाजपा के लिए संकट मोचन साबित हुई है. गठबंधन प्रत्याशी के लिए एआईएमआईएम को अंडर एस्टीमेंट करना भारी पड‍़ गया, रही सही कसर सपा के विधायकों व शहर संगठन के प्रत्याशी से दूरी बना लेने ने पूरी कर दी. यह भी कहा जा सकता है कि मेरठ में आखिलेश यादव साइकिल चलाने के बाद ही सपा विधायक, पूवर् कैबिनेट मंत्री व शहर संगठन की नाराजगी दूर नहीं कर सके. उनकी नाराजगी ने भाजपा की जीत में तड़का लगाने और अनस की पतंग को आसमान में पहुंचाने का काम किया है. नतीजा भाजपा के हरिकांत अहलूवालिया ने शानदार जीत दर्ज करायी, लेकिन इतना जरूर है कि कांग्रेस लड़े बगैर ही हार गयी:.  वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का बड़ा जाट चेहरा माने जाने वाले पीसीसी के पूर्व सचिव चौ. यशपाल सिंह कर्नाटक चुनाव के चुनाव परिणाम को साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का आइना मान रहे हैं. चौ. यशपाल सिंह का कहना है कि महराष्ट्र, छत्तीसगढ., मध्य प्रदेश, राजस्थान में भाजपा की स्थिति कर्नाटक से भी ज्यादा बुरी होने वाली है. जहां तक बात महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की है तो दोनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार थी, भाजपा ने वहां चोरी कर सरकार बना ली वो बात अलग है. कांग्रेस के जाट नेता ने जोर देकर कहा कि मोदी मैजिक नाम की कोई चीज नहीं है. तमाम ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा ने जिनके खिलाफ चुनाव लड़ा बाद में सत्ता की खातिर उनसे ही हाथ मिला लिया. कांग्रेस का कोई भी नेता यूपी स्थानीय निकाय चुनावों पर टिप्पणी को तलाशने पर भी नहीं नजर आ रहा है. मुंह दिखाएंगे भी कैसे क्यों कि महापौर प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गयी, ऐसा ही बुरा हाल आपकी ऋचा का भी हुआ.

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