मेयर: फंसा हुआ है चुनाव, मेरठ नगर निगम महापौर का चुनाव अभी तक तो फंसा हुआ नजर आ रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुख्य मुकाबला भाजपा के हरिकांत व सपा-रालोद गठबंधन की सीमा के बीच है। जहां तक नसीम कुरैशी का प्रश्न है तो कांग्रेसी बजाए चुनाव लड़ने लड़ाने के अभी आपस में ही एक दूसरे को निपटाने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर बसपा प्रत्याशी को लेकर कहा जा रहा है कि वह केवल वोट कटवा साबित होंगे। अब यदि हरिकांत व सीमा प्रधान के चुनावी नफा नुकसान की यदि बात की जाए तो कांग्रेस और बसपा के महापौर प्रत्याशी का चुनाव जितना ज्यादा खड़ा होगा मसलन मजबूत होगा, उतना ही ज्यादा नुकसान सीमा प्रधान को होना तय है। भाजपा की राहें आसान तभी हो सकेंगी जब मुस्लिम मतों का कांग्रेस-बसपा व रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी में बंटवारा हो जाए। मसलन वोट कटवा साबित हो जाएं। महापौर चुनाव का यह एक पक्ष है। अब भाजपा के यदि नुकसान की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में सत्रह नगर निगम हैं। एक भी नगर निगम में किसी भी जाट को बतौर महापौर प्रत्याशी चुनाव में नहीं उतारा गया है। अब मेरठ की बात कर ली जाए तो मेरठ में भी महापौर का टिकट मांगने वालों में जाट भी शामिल थे, लेकिन उन्हें कंसीडर नहीं किया गया, पंजाबी के नाम पर हरिकांत अहलूवालिया को टिकट थमा दिया गया, जबकि पंजाबियों का एक बड़ा तबका भाजपा की इस पसंद को पंजाबी मानने को तैयार नहीं। यह तो हुई जाटों व पंजाबियों की बात। मेरठ नगर निगम क्षेत्र में करीब डेढ लाख जाट और लगभग चालिस हजार पंजाबी हैं। करीब चालिस हजार ही गुर्जर हैं। अब यदि बात करें सीमा प्रधान की तो यह उनकी काबलियत प निर्भर करता है कि भाजपा से जाटों की नाराजगी वह कहां तक कैश कर पाती हैं। यहां यह भी गौरतलब है कि रालोद से गठबंधन होने की वजह से जाटों का परंपरागत वोट आसानी से हासिल किया जा सकता है। जाट इन दिनों वैसे भी भाजपा के नाम पर आंखें तरेर कर बात करते दिखाई देते हैं। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठी जाट महिला पहलवानों का प्रकरण इस नाराजगी की वजह बतायी जाती है। हालांकि अब सुप्रीमकोर्ट ने इन जाट महिला पहलवानों के पक्ष में फैसला देते हुए कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह पर एफआईआर के आदेश दे दिए हैं, लेकिन उक्त जाटों की नाराजगी की मजबूत वजह हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी ऐसा नहीं कि भाजपा के हरिकांत को कमजोर मान कर चला जा सकता है। भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद व प्लस पाइंट मुसलमानों को कांग्रेस-बसपा व रालोद-सपा गठबंधन में बंट जाना है। इसनके अलावा जो निर्दलीय खड़े हैं वो कितना फीसदी नुकसान पहुंचाएंगे, यह आंकलन करना अभी जल्दबाजी होगा। इस सबके बीच आप की ऋचा सिंह का चुनाव भले ही साइलेंट माना जा रहा हो, लेकिन वो भी अंतोगत्वा नुकसान भाजपा का ही पहुंचाएंगी। सपा-रालोद गठबंधन का पूरा प्रयास आप का चुनाव खड़ा करने का रहेगा। हरिकांत के तरकश में जहां कैंट विधायक अमित अग्रवाल, राज्यसभा सांसद डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, लोकसभा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, कांता कर्दम, एमएलसी धर्मेन्द्र तोमर, राज्य मंत्री साेमेन्द्र तोमर व दिनेश खटीक सरीखे तीर हैं वहीं दूसरी ओर सीमा प्रधान की बात की जाए तो दलित, मुस्लिम, जाटों में सेंध लगाने के नाम पर पूर्व विधायक योगेश वर्मा व उनकी पत्नी सुनीता वर्मा, शहर विधायक रफीक अंसारी, दक्षिण से रालोद विधायक गुलाम मोहम्मद और सरधना विधायक अतुल प्रधान जैसे निशाने पर सटीक लगने वाले तीर तरकश में हैं। इनके अलावा मुस्लिमों में पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर सरीखे नाम हैं। भाजपा के हरिकांत अहलूवालिया व सपा-रालोद की सीमा प्रधान को उनके तरकश के तीन कहां तक फतह दिला पाएंगे, यह कहना अभी जल्दबाजी होगा। लेकिन जहां तक नगर निगम के महापौर की बात है तो विपक्ष के अरूण जैन, अय्यूब अंसारी, शाहिद मंजूर, सुनीता वर्मा जबकि भाजपा के हरिकांत अहलूवालिया व मधु गुर्जर को ही मौका मिल सका।