मेडा बनकर क्या लगेगी लगाम, मेरठ विकास प्राधिकरण प्रशासन के उच्च पदस्थ अफसरों ने तय किया है कि अब नाम बदला जाए। मसलन एमडीए का नया नामकरण मेडा कर दिया जाए, इसके लिए तमाम तर्क दिए जा रहे हैं। तर्क ही नहीं दिए जा रहे हैं एमडीए का नाम मेडा करने के लिए काम भी शुरू दिया गया है। एमडीए का नाम बदलकर मेडा किए जाने की प्रेरणा किस से मिली है य तो स्पष्ट नहीं लेकिन इतना जरूर स्पष्ट कि नामकरण की इस प्रक्रिया में सरकारी खजाने से ठीकठाक खर्च हो जाएगा। महानगर में जितने भी होर्डिग्स या अन्य प्रचार सामग्री और वाल पेटिंग करायी गयी है उसमें खर्च किया गया पैसा अब बेकार चला जाएगा। पहले खर्च किया गया पैसा बेकार ही नहीं जाएगा बल्कि नए सिरे से तमाम प्रचार कराने में दोबार से पैसा खर्च करना होगा। कार्यालय की स्टेशनरी में भी नए सिरे से जो नया लोगो एमडीए को हटाकर मेडा के नाम से बनेगा उसमें भी खर्च करना होगा, ऐसा करना जरूरी भी है क्योंकि जो भी पत्राचार या अन्य सरकारी लिखा पढ़ी की जाएगी उसके लिए भी नयी स्टेशनी चाहिए। खैर मुद्दा यहां नाम बदलने से बड़ा नाम बदले जाने से क्या कार्यप्रणाली में भी बदलाव आ जाएगा। कार्य प्रणाली में बदलाव की बात इसलिए की जा रही है, क्योंकि जिस प्रकार से मेरठ महानगर में एमडीए के सभी जोनों में अवैध निर्माण जारी है और अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं क्या उस पर अंकुश लगाया जाना संभव हो सकेगा। नाम बदलने की पैरवी करने वाले अफसरों का तर्क है कि मेडा किए जाने से नोएडा सरीखा हो जाएगा। चलिए मान लिया कि एमडीए मेडा कर दिया जाएगा क्या नाम मेडा कर दिए जाने के बाद एमडीए के अफसर नोएडा अथारिटी की तर्ज पर अवैध निर्माण व अवैध कालोनियों पर सख्ती कर सकेंगे। अवैध कालोनियों या निर्माण की बात करें तो कम से कम नोएडा इतना बदनाम नहीं जितना की मेरठ विकास प्राधिकरण खासतौर से जिस प्रकार से प्राधिकरण के तमाम जोन का स्टाफ है। अवैध कालोनियों व अवैध कांप्लैक्स का यदि जिक्र करें तो उसकी एक लंबी फेरिस्त है। जितनी लंबी फेरिस्त अवैध कालोनियों व अवैध निर्माणों की है उतनी ही लंबी फेरिस्त कार्रवाई के नाम पर बरती जाने वाली लापरवाहियों और कुछ अफसरों की भूमाफियाओं से मिली भगत की है। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर एमडीए के रूडकी रोड जोन में हिन्दू शमशान घाट के समीप खेतों में अवैध मार्केट नहीं बनता। मार्केट बनाने वाले भूमाफिया ने लावड रोड पर शहर के दूसरे भूमाफियाओं को अवैध कालोनियों का जाल बिछाने का न्यौता ना दिया होता। रूडकी रोड और मेन रोड पर एक और अवैध कांप्लैक्स ना बन रहा होता। कमोवेश ऐसी ही स्थित किलारोड, बागपत रोड, भोला रोड, दिल्ली व गढ रोड और सबसे बदत्तर मवाना रोड की न होती। ये तमाम वो इलाके हैं जहां केवल अवैध कालोनियां ही नहीं काटी जा रही है बल्कि ये सभी अवैध कालोनियां खेतों में काटी गयी हैं। अवैध कालोनियों के खिलाफ दावों के विपरीत कार्रवाई कितनी लचर की जा रही है इसको बताने की जरूरत नहीं। अवैध कालोनी हो या अवैध निर्माण मेरठ विकास प्राधिकरण के प्रशासन की कागजी खानापूर्ति का कोई सानी नहीं है। लेकिन जमीनी हकीकत की यदि बात की जाए तो अवैध कांप्लैक्स हो या कालोनियां ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाइयों के इंतजार करते-करते वहां दुकानें और भूखंड बिकने की नौबत आ जाती है। रामा कुंज अवैध मार्केट, शिव कुंज अवैध कालोनी, कृष्णा कुंज अवैध कालोनी इसके जीते जागते सबूत हैं। अवैध कालोनियाें में केवल भूखंड बिकते ही नहीं उनमें अवैध रूप से निर्माण करने के बाद मकान बनाकर लोग रहना भी शुरू कर देते हैं। लेकिन एमडीए की ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू नहीं हो पाती।