Meda: सब बिकने को तैयार है बस दाम लगाना सही

kabir Sharma
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पीएल शर्मा रोड का किंग कांप्लैक्स, शहर की घनी आबादी वाले कोतवाली व देहलीगेट थाना क्षेत्र के 16 कांप्लैक्स के नाम पर मौत के कुंए, सिविल लाइन के नेहरु पुश्तैनी मकान तो तोड़कर बनाया गया तीन मंजिला अवैध होटल, हाइवे पर ग्रीन बैल्ट में हरियाली का कत्ल कर बनवाया गया वन फेरर, हाइवे के खडौली की अवैध कालोनी वेदा सिटी सरीखे करीब एक हजार अवैध निर्माण ..

मेरठ। मेरठ विकास प्राधिकरण इस वक्त चार बड़े अफसरों और इनकी शाखाओं के रूप में काम कर रहे कुछ जेई का नेक्सस, कोई भी काम हो और दाम देने तो तैयार हो तो बगैर किसी के परवाह किए आप अवैध कांप्लैक्स बना सकते हैं। उसमें बगैर किसी महकमे की एनओसी के बेसमेंट बना सकते हैं। और तो और पार्किंग भी ना हो तो भी चलेगा। यही सब तो पीएम शर्मा रोड स्थित किंग के अवैध कांप्लैक्स में बिकने को हर वक्त उताबले मेडा के अफसरों ने किया। किंग के अवैध कांप्लैक्स को बगैर किसी मानचित्र के बिकने को हरदम उताबले नजर आने वाले अफसरों ने अपनी छत्रछाया में बनवा डाला। अवैध कांप्लैक्स बनाने वाले के हाथों अपने जमीर का सौदा करने वाले इन अफसरों के बलबूते ही कांप्लैक्स में बेसमेट बनाने के लिए भूगर्भ जल विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा फायर एनओसी तक नहीं ली। पीएल शर्मा रोड जैसे बेहद भीड़ वाले इलाके में करीब अस्सी दुकानों के इस अवैध कांप्लैक्स में पार्किंग तक नहीं। इस कांप्लैक्स की 11 दुकानें महज डेढ़ मीटर की गली में बना दी गयीं। हैरानी यह कि फाइलों में यह कांप्लैक्स सील व ध्वस्तीकरण के आदेश हैं। सील होने के बाद भी ना केवल बना बल्कि बनने के बाद इसकी दुकानों का अब सौदा किया जा रहा है। किंग के कांप्लैक्स को लेकर पूरे शहर में मेडा पर ऊंगली उठायी जा रही है कि लगता है कि जमीर बेचने वाले अफसरों को ना तो मेडा ना ही अपनी सर्विस बुक की चिंता है। दाम देने वाले के लिए कोई भी करने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले इन अफसरों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि पूर्व के वीसी भी इनका कुछ हीं बिगाड सके सिवाए डांट फटकार के। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि नवागत वीसी कहां तक और कब तक इस नेक्सस को तोड़ पाते। इनके भ्रष्टाचार के खिलाफ शासन और सरकार को जगाने का काम अकेले अपने दम पर आटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी कर रहे हैं। हालांकि उनके लिए भी यह काम आसान नहीं है।

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मेरठ में एनएच-58 स्थित दा फेरर का नाम पहले वन फेरर रखा गया। इसका नाम क्यों बदला गया, इसका रहस्य मेडा के एक बड़े अफसर के पेट में है, हालांकि इतना पता है कि इस अवैध होटल को ध्वस्तीकरण से बचाने के लिए इसका नाम बदला गया। एनजीटी भले ही ग्रीन वर्ज में अवैध निर्माण को लेकर सख्त है, लेकिन मेडा के अफसरों ने साबित कर दिया कि वो यदि अपनी सी पर आ जाए तो क्या एनजीटी और फिर क्या मेडा के उच्च पदस्थ अफसर होगा वो जो वो चाहेंगे और हुआ भी वही जो दाम मिलने पर खुद को जमीर बेचने को उतारू मेडा के इन अफसरों ने करने की ठान ली थी। हरियाली की हत्या कर खेतों के बीच सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर जिस तरह से अवैध होटल बनवा दिया वैसी मिसाल प्रदेश के किसी दूसरे प्राधिकरण में शायद ही मिले। केवल होटल ही नहीं बनवाया। अफसरों की शह पर होटल बनाने वाले ने करोड़ों कीमत की सरकारी जमीन पर भी कब्जा कर लिया।

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वेदा सिटी

हाइवे की खड़ौली सीमा से सटी अवैध कालोनी वेदा सिटी फाइलों में सील है, लेकिन इस कालोनी में अब प्लाट बेचे जाने की प्रक्रिया चल रही है। इस अवैध कालोनी पर जेसीबी चलवाने का साहस पूर्व वीसी अभिषक तिवारी ने दिखाया था। सील भी करा दी थी, लेकिन इसके बाद भी भ्रष्ट जोनल व जेई ने मिलकर सील लगे-लगे इस कालोनी का काम पूरा कराया। फाइलों में यह कालोनी आज भी सील है यह बात अलग है कि वेदा सिटी में इन दिनों प्लाट बेचे जा रहे हैं। कालोनी काटने वाले भूमाफिया ने MHAI की कई करोड़ की जमीन पर कब्जा भी कर लिया। इतना ही नहीं सिंचाई विभाग के सलावा रजवाहे की बेशकीमती जमीन पर कब्जा कर अवैध कालोनी में आने जाने का रास्ता तैयार कर लिया। मेडा के नवागत वीसी को यदि अपने मातहतों की एक ओर कारगुजारी देखनी है तो प्राधिकरण से चंद कदम की दूरी पर सिविल लाइन के नेहरू रोड पर तीन मंजिला सफेद होटल देख कसते हैं। सील गाए जाने के बावजूद यह होटल बनकर तैयार हो गया और अब इसके उद्घाटन की तैयारी है। हो सकता है कि इसके उदघाटन का न्यौता दाम लेकर इसके अवैध निर्माण में मदद के साथ साथ दुस्साहस दिखाते हुए ईमानदार छवि वाले मेडा वीसी को भी दे दिया जाए। जिन अफसरों ने भूमाफियाओं के हाथों इमान बेच दिया है उन पर कार्रवाई की उम्मीद नवागत वीसी से पूरा महानगर लगाए बैठा है।

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