सांसद, मंत्री विधायक मिलकर भी नहीं शुरू करा पा रहे मेरठ हवाई उड़ान, मौजूदा हवाई पट्टी हवाई पट्टी 80 मीटर चौड़ी व 1800 मीटर लंबी है। इसकी चौड़ाई लंबाई बढ़ाकर 210 मीटर चौड़ी व 2280 मीटर लंबी करने के लिए भूमि उपलब्ध है प्रस्तावित चार हेक्टेयर भूमि के लिए छह लोगों को 23 करोड़ का भुगतान करना है। इस तेइस करोड़ का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं मेरठी नेता, हजूर हवाई उड़ान! इंतेहा हो गयी इंतजार की

मेरठ/ परतापुर स्थित डा. आंबेडकर हवाई पट्टी से उड़कर जाने की हरसत फिलहाल पूरी होती नजर नहीं आ रही है। मेरठ एतिहासिक नगरी होने के बाद भी हवाई उड़ान के लिए तरस रहा है, जबकि इसके काफी बाद जो नए जिले आबाद हुए या यूं कहें जहां हवाई उड़ान की प्रक्रिया मेरठ से काफी सालों बाद शुरू की गई वहां हवाई उड़ानें शुरू भी कर दी गयी हैं। इसके लिए या तो मेरठी नेता जिन्हें जनता ने अपना नुमाइंदा चुना है उनकी बातों में दमखम नहीं या फिर सरकार की मंशा नहीं कि मेरठ से हवाई उड़ान शुरू कराई जाए इसी के चलते तारीख पर तारीख दी जाती हैं। नेताओं की बात करें तो जब भी यह मुद्दा उठता है तो उन्हें लगता है कि किसी ने कमजोर नस पर हाथ रख दिया है और अगले ही दिन एक लेटर भेज दिया जाता है। हवाई उड़ान के लिए महज 23 करोड़ की रकम चाहिए। मेरठ के विकास के नाम पर लाखों लाख करोड़ खर्च करने की बात की करने वाले अफसर भी इसके लिए कम कसूरवार नहीं। अफसर यदि चाहें तो सरकार में पैरवी कर क्या 23 करोड़ क इंतजाम नहीं कर सकते। यहां बता दें कि जो 23 करोड़ा मांगा जा रहा है वो किसी निजी व्यक्ति के हाथ में नहीं जाने वाला। वो रकम सरकारी कोषागार में जमा रहेगी। जो मामला कोर्ट में चल रहा है उसमें यदि किसान जीते तो रकम किसानों को दी जाएगी और फैसला सरकार के पक्ष में आया तो रकम तो 23 करोड़ की रकम तो सरकार के कोषागार में रखे जाने का मतलब रकम सरकार के पास ही है। इतना सब कुछ होते हुए भी मेरठ 23 करोड़ के लिए एडियां रगड रहा है।
हवाबाजी कहें या फिर मान लिया जाए आवाज में दम नहीं
जनता नुमाइंदे लगातार हवाई उड़ान शुरू कराने का दावा करते आ रहे हैं, लेकिन उसके बाद भी हवाई उड़ान के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। जिन्हें चुना है या तो वो हवाबाजी कर रहे हैं या फिर उनकी आवाज में वो दम नहीं जिससे हवाई उड़ान शुरू करायी जा सके।
बहुत जल्द उड़ान का तोहफा: डा. वाजपेयी

भाजपा के राज्यसभा सदस्य डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने बताया कि मेरठ वालों के बहुत जल्दी हवाई उड़ान का तोहफा मिलने जा रहा है। विलंब जरूर हुआ है, लेकिन वह इसके लिए लगातार प्रयास में लगे हैं। कई स्तर पर बात हो चुकी हैं। जिन छह किसानों की जमीन है उनको केवल पेमेंट भर दिया जाना है। उसके बाद जमीन एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया को सौंप दी जाएगी। बस इतना सा काम बाकि भर रह गया है। वह इस कार्य में निरंतर लगे हैं।
राज्यसभा सांसद ने डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने पिछले दिनों एक पत्र मंडलायुक्त को भेजा जिसमें उन्होंने एयरपोर्ट की जमीन की जरूरत को पूरा करने का तरीका सुझाया है। फिलहाल मेरठ से छोटे 72 सीटर जहाज उड़ान भर सकें, इसको लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद लगातार प्रयासरत हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। उस पत्र में कहा गया है कि मेरठ एयरपोर्ट के संबंध में 2014 में एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया के साथ एक समझौता हुआ था, कि जमीन राज्य सरकार निशुल्क उपलब्ध कराएगी और फिर उसे विकसित करने का काम एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया करेगी। दुर्भाग्य है कि हम आज तक एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया को निशुल्क जमीन उपलब्ध कराकर उनके नाम नहीं चढ़ा पाए। फिलहाल की स्थिति में जो जमीन उपलब्ध है उसमें 2280 मीटर लंबी 210 मीटर चौड़ी हवाई पट्टी बना सकते हैं और उस पर एटीआर-72 उड़ सकता है, लेकिन हवाई पट्टी हेतु उपलब्ध जमीन में छह लोगों की छोटी-छोटी जमीनों के टुकड़े हैं जो केवल जमीन की कीमत के लिए ही न्यायालय में गए हुए हैं. उन्होंने जो कीमत मांगी है उस हिसाब से कुल जमीन की कीमत लगभग 23 करोड़ रुपये आती है।
राज्य सरकार से बराबर इस बात का प्रयास हो रहा है कि 23 करोड़ रुपया यदि मिल जाए तो उस धनराशि को न्यायालय में जमा कर दिया जाए और वहां से फिर भी जो जीतेगा वह उस धनराशि को प्राप्त कर लेगा और धनराशि जमा करने के बाद कागज पर जमीन उड़ान विभाग के नाम दर्ज करके और इस पर आगे एयरपोर्ट अथॉरिटी को काम करने की स्थिति निर्माण की जाए।
दुर्भाग्य यह है कि अभी तक भी राज्य सरकार से वह धनराशि उपलब्ध नहीं हो पाई है। शुरू से हवाई पट्टी के लिए जमीन उपलब्ध कराने, अधिग्रहण करने में मेरठ विकास प्राधिकरण ने काम किया है। उन्होंने यह भी हवाला दिया था कि अभी पिछले माह जो लखनऊ में बैठक हुई थी, उसमें मेरठ विकास प्राधिकरण को जो वन विभाग की जमीन को अधिग्रहण करने में पैसा लगा था उसकी वापसी भी हुई कर दी गयी। प्राधिकरण के अफसरों की यदि बात करें तो मेरठ के जाम की समस्या से निपटने के नाम पर वो 350 करोड़ की पेशकश कर सकते हैं, लेकिन महज 23 करोड़ जिससे उड़ान शुरू करायी जा सके, उस मामले में मेडा अफसरों को भी सांप सूंध जाता है।
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