मुसलमान औरतों के हक में लंबी छंलाग, यह फैसला मुसलमान महिलाओं के हक में एक लंबी छलांग के मानिंद है. साथ ही इस फैसले से मुसलमान कम्युनिटी ने न दिखाई देने वाली सामाजिक बढ़त भी हासिल की है. आने वाले वक्त में इसके बहुत ज्यादा मायने होंगे. यह सब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्ससनल लॉ बोर्ड के एक फैसले की बदौलत मुमकिन हो सका। दअरसल बीते नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि महिलाओं को मस्जिद केhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%88_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80 अंदर प्रवेश कर नमाज़ अदा करने की इजाज़त है. बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम महिला नमाज़ अदा करने के वास्ते मस्जिद में दाखिल होने के लिए स्वतंत्र हैं और यह उन पर निर्भर करता है कि वह मस्जिद में नमाज़ अदा करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हैं या नहीं.एआईएमपीएलबी ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर कर यह जानकारी दी है. यह हलफनामा मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में जाकर नमाज़ अदा करने से संबंधित एक याचिका को लेकर दाखिल किया गया है. एक न्यूज ऐजेन्सी के मुताबिक वकील एमआर शमशाद के जरिये दायर हलफनामे में कहा गया है कि इबादतगाहें (जो वर्तमान मामले में मस्जिदें हैं) पूरी तरह से निजी संस्थाएं हैं और इन्हें मस्जिदों के ‘मुत्तवली’ (प्रबंधकों) द्वारा नियंत्रित किया जाता है. फरहा अनवर हुसैन शेख ने 2020 में शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर भारत में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश पर लगी कथित रोक के चलन को लेकर निर्देश देने का आग्रह किया था और इसे अवैध और असंवैधानिक बताया था. याचिका पर मार्च में सुनवाई हो सकती है. हफलनामे में कहा गया है कि एआईएमपीएलबी विशेषज्ञों की संस्था है और इसके पास कोई शक्ति नहीं है और यह सिर्फ इस्लाम के सिद्धांतों पर अपनी सलाह जारी कर सकती है. हलफनामे में कहा गया है कि धार्मिक ग्रंथों, सिद्धांतों, इस्लाम के मानने वालों के धार्मिक विश्वासों पर विचार करते हुए यह दलील दी जाती है कि महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश कर नमाज़ अदा करने की इजाज़त है. एआईएमपीएलबी इस बाबत किसी विपरीत धार्मिक मत पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. हलफनामे में कहा गया है कि इस्लाम ने महिलाओं के लिए यह जरूरी नहीं किया है कि वे दिन में पांच वक्त की नमाज़ जमात (सामूहिक) के साथ पढ़ें या जुमे (शुक्रवार) की नमाज़ जमात के साथ अदा करें. हालांकि यह मुस्लिम पुरुषों के लिए जरूरी है. इसमें कहा गया है कि इस्लाम के सिद्धांत के मुताबिक, मुस्लिम महिलाएं चाहे घर पर नमाज़ पढ़ें या मस्जिद में नमाज़ अदा करें, उन्हें एक जैसा ही ‘सवाब’ (पुण्य) मिलेगा.
मुसलमान औरतों के हक में लंबी छंलाग, यह फैसला मुसलमान महिलाओं के हक में एक लंबी छलांग के मानिंद है. साथ ही इस फैसले से मुसलमान कम्युनिटी ने न दिखाई देने वाली सामाजिक बढ़त भी हासिल की है. आने वाले वक्त में इसके बहुत ज्यादा मायने होंगे. यह सब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्ससनल लॉ बोर्ड के एक फैसले की बदौलत मुमकिन हो सका। दअरसल बीते नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि महिलाओं को मस्जिद केhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%88_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80 अंदर प्रवेश कर नमाज़ अदा करने की इजाज़त है. बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम महिला नमाज़ अदा करने के वास्ते मस्जिद में दाखिल होने के लिए स्वतंत्र हैं और यह उन पर निर्भर करता है कि वह मस्जिद में नमाज़ अदा करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हैं या नहीं.एआईएमपीएलबी ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर कर यह जानकारी दी है. यह हलफनामा मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में जाकर नमाज़ अदा करने से संबंधित एक याचिका को लेकर दाखिल किया गया है. एक न्यूज ऐजेन्सी के मुताबिक वकील एमआर शमशाद के जरिये दायर हलफनामे में कहा गया है कि इबादतगाहें (जो वर्तमान मामले में मस्जिदें हैं) पूरी तरह से निजी संस्थाएं हैं और इन्हें मस्जिदों के ‘मुत्तवली’ (प्रबंधकों) द्वारा नियंत्रित किया जाता है. फरहा अनवर हुसैन शेख ने 2020 में शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर भारत में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश पर लगी कथित रोक के चलन को लेकर निर्देश देने का आग्रह किया था और इसे अवैध और असंवैधानिक बताया था. याचिका पर मार्च में सुनवाई हो सकती है. हफलनामे में कहा गया है कि एआईएमपीएलबी विशेषज्ञों की संस्था है और इसके पास कोई शक्ति नहीं है और यह सिर्फ इस्लाम के सिद्धांतों पर अपनी सलाह जारी कर सकती है. हलफनामे में कहा गया है कि धार्मिक ग्रंथों, सिद्धांतों, इस्लाम के मानने वालों के धार्मिक विश्वासों पर विचार करते हुए यह दलील दी जाती है कि महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश कर नमाज़ अदा करने की इजाज़त है. एआईएमपीएलबी इस बाबत किसी विपरीत धार्मिक मत पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. हलफनामे में कहा गया है कि इस्लाम ने महिलाओं के लिए यह जरूरी नहीं किया है कि वे दिन में पांच वक्त की नमाज़ जमात (सामूहिक) के साथ पढ़ें या जुमे (शुक्रवार) की नमाज़ जमात के साथ अदा करें. हालांकि यह मुस्लिम पुरुषों के लिए जरूरी है. इसमें कहा गया है कि इस्लाम के सिद्धांत के मुताबिक, मुस्लिम महिलाएं चाहे घर पर नमाज़ पढ़ें या मस्जिद में नमाज़ अदा करें, उन्हें एक जैसा ही ‘सवाब’ (पुण्य) मिलेगा.
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