नरेश-नरेन्द्र या फिर हरिकांत, नगर निगम मेरठ के महापौर के चुनाव में नरेश गुर्जर, नरेन्द्र उपाध्याय या एक बार फिर हरिकांत अहलूवालिया को लड़ाया जाएगा, यह सवाल कोई और नहीं बल्कि भाजपाई पूछ रहे हैं। यूं कहने को पचास के करीब दावेदार थे। लेकिन सुनने में आया है कि तीन नाम आलाकमान को भेजे गए हैं जिनमें नरेश गुर्जर, नरेन्द्र उपाध्याय व हरिकांत अहलूवालिया शामिल हैं। यह भी सुनने में आया है कि हरिकांत अहलूवालिया की टिकट की राह आसान करने के लिए ही नरेश गुर्जर व नरेन्द्र उपाध्याय के कमजोर माने जा रहे नाम सूची में शामिल किए गए हैं। हालांकि अभी अधिकृत रूप से नाम का एलान किया जाना बाकि है। जब तक अधिकृत रूप से नाम का एलान नहीं हो जाता तब तक किसी नतीजे पर पहुंचा मुनासिब नहीं, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा-रालोद गठबंधन की प्रत्याशी सीमा प्रधान के मुकाबले भाजपा के स्तर से कोई भी एक छोटी सी चूक सिर्फ और सिर्फ सीमा प्रधान की राहें आसान करने का काम करेगी। इसको लेकर भाजपाई खेमों में भी खासी चर्चा ही नहीं बल्कि हैरानी है कि जो चूक पूर्व के एक चुनाव में कांता कर्दम को उतारकर की थी, क्या उसी को दोहराने का प्रयास किया जा रहा है। चुनावी जानकाराें का साफ मानना है कि सपा-रालोद गठबंधन के मीम-भीम व जाट-गुर्जर समीकरण से निपटने के लिए जो उम्मीद की जा रही थी, फिलहाल वैसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। इस बीच यह भी जानकारी मिली है कि भाजपा से हरिकांत के नाम पर सहमति की खबर से इतने ज्यादा खुश हरिकांत समर्थक नहीं है जितने ज्यादा खुश सपाई नजर आ रहे हैं। सपाइयों का यहां तक कहना है कि उन्हें अब कम मेहनत करनी पड़ेगी। राजनीतिक जानकार भी कह रहे हैं कि नाम तय करने में जो कुछ सुनने में आ रहा है उसके बाद तो यही कहा जा सकता है कि केवल सीमा प्रधान की राहें आसान करने का काम किया जा रहा है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। इसको लेकर जो तर्क दिए जा रहे हैं उनकी आसानी से अनदेखी भी संभव नहीं नजर आती। चुनावी पंड़ितों का मानना है कि सपा की वजह से मुस्लिम, रालोद की वजह से जाट और प्रत्याशी का खुद गुर्जर होने की वजह से गुर्जरों का फायदा मिलना तय है। मुस्लिमों के नाम पर सपा में चुनाव प्रभावित करने वाले चेहरों की कोई कमी नहीं। इसके अलावा स्वामी प्रसाद मोर्या और स्थानीय स्तर पर पूर्व विधायक योगेश वर्मा सरीखे चेहरे हैं।