शहर ही नही देहात में भी कुकुरमुक्तों की मानिंद जगह-जगह नजर आने वाले पैथॉलॉजी लैब की हकीकत बेहद स्याह है। तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर ये पैथॉलॉजी लैब स्वास्थ्य विभाग के अफसराें की बदौलत शहर में फलफूल रहे हैं। ज्यादा की हालत पैथॉलॉजी सैंटर के नाम पर केवल कलेक्शन सेंटर भर की है। वहां ना तो कोई फॉरमेसिस्ट रखा गया है और ना ही कोई डाक्टर है जो रिपोर्ट की जांच कर सके, लेकिन जो भी पैथॉलॉजी के नाम पर खोले गए सेंटरों पर पहुंचता है उनसे फाॅरमेसिस्ट और डाक्टर के नाम पर फीस वसली जातती है। ना डाक्टर ना फार्मेसिस्ट फिर भी फीस फिर भी वसूली जा रही है फीस- शहर की पैथोलॉजी लैबों को खुद जांच की जरूरत है।
मेरठ। शहर और देहात में कुकरमुक्तों की मानिंद जगह-जगह नजर आने वाले पैथॉलॉजी लैबों में से ज्यादार में ना तो एमबीबीएस डाक्टर होते हैं और ना ही उनमें विशेषज्ञ पैथॉलाजिस्ट हैं ज्यादातर पैथॉलॉजी लैब टैक्निशियन या फिर नॉन टैक्निशियन चला रहे हैं। इतना ही नहीं इस प्रकार की पैथॉलॉजी लैब में डाक्टर व पैथॉलॉजिस्ट ना होते हुए भी जो भी जांच कराने जाता है मसलन मरीज से इन दोनों के नाम की फीस वसूली जाती है। इसलिए इस प्रकार की पैथॉलॉजी लैब में जांच कराना खतरे से खाली नहीं। इस प्रकार के पैथॉलॉजी लैब की रिपोर्ट भी कभी भी भरोसे के काबिल नहीं हो सकती। जब रिपोर्ट भरोसे के काबिल नहीं होगी तो फिर इस प्रकार की रिपोर्ट के आधार पर कराया जाने वाले इलाज पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। जब इलाज पर ही भरोसा नहीं होगा तो फिर मरीज के ठीक होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।एक जरा सी लापरवाही यानि बगैर विशेषज्ञ पैथाॅलॉजिस्ट के चलायी जा रही पैथॉलॉजी लैब किसी के भी जीवन के लिए कितना बडा खतरा हैं इस बात का आसानी से समझा जा सकता है। शहर के तमाम इलाकों में इस प्रकार के पैथोलॉजी लैबों की भरमार है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को इतनी फुर्सत नहीं कि शहर में कथित अवैध रूप से संचालित हो रहे पैथोलॉजी लैबों पर कभी छापेमारी कर सकें। कौन उन्हें संचालित कर रहा है, इसकी जांच करा सके। जो ऐसा कर रहे हैं उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सके। दरअसल हो यह रहा है कि जितने भी अवैध पैथोलॉजी लैब चल रहे हैं सभी को स्वास्थ्य विभाग के कुछ अफसरों का संरक्षण हासिल है।
अब केवल विशेषज्ञ पैथॉलॉजिस्ट को ही लैब संचालन की अनुमित

अब एमबीबीएस डॉक्टर निजी पैथोलॉजी लैब नहीं चला सकेंगे। यह नियम भारतीय चिकित्सा परिषद और अन्य स्वास्थ्य नियामकों द्वारा लागू किया गया है, जिसका उद्देश्य पैथोलॉजी जांचों की गुणवत्ता और सटीकता को सुनिश्चित करना है। इसके तहत केवल योग्य और पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट ही निजी पैथोलॉजी लैब का संचालन कर सकते हैं। अब पैथोलॉजी लैब को केवल योग्य और पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट ही चला सकेंगे और तकनीशियन इसके संचालन का अधिकार नहीं रखेंगे। लेकिन हो यह रहा है कि विशेषज्ञ पैथोलॉजिस्ट तो दूर की बात कई पैथोलॉजी लैब में टैक्निशियन तक नहीं है। केवल सामान्य स्टाफ वहां खुद को कभी फारमेसिस्ट तो कभी पैथोलॉजिस्ट बताकर जांच कराने वालों को मौत बांटने का काम कर रहे हैं।
लोगों में जानकारी का नितांत अभाव

दरअसल लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि जहां वो जांच कराने को जा रहे हैं वहां उनको जांच कराने से क्या-क्या सावधानी बरनी चाहिए, किस-किस बात की जानकारी करनी चाहिए। नए नियम के तहत भारतीय चिकित्सा परिषद और अन्य स्वास्थ्य नियामकों द्वारा लागू किया गया है, जिसका उद्देश्य पैथोलॉजी जांचों की गुणवत्ता और सटीकता को सुनिश्चित करना है। इसके लिए यह भी तय किया गया है कि पैथोलॉजी लैब केवल विशेषज्ञ पैथोलॉजिस्ट ही चलाएंगे। इनके अलावा फॉरमेसिस्ट अब लैब नहीं चला सकेगे। लेकिन शहर में स्वास्थ्य विभाग की छत्रछाया में भारतीय चिकित्सा परिषद के जो नए कायदे कानून लागू किए गए हैं उनकी ही चीराफाड़ी की जा रही है भारतीय चिकित्सा परिषद का मानना है कि तकनीशियन द्वारा पैथोलॉजी लैब चलाने के मामले में जांच और परिणामों की गुणवत्ता पर सवाल उठते थे, क्योंकि बिना विशेषज्ञता के लैब चलाने से गलत रिपोर्ट मिलने की आशंका रहती है।
क्या कहता है नेशनल यूनाइटेड फ्रांट ऑफ डाक्टर्स

इस संबंध में देश के डाक्टरों कीे बड़ी संस्था नेशलन यूनाइटेड फ्रांट ऑफ डाक्टर्स के प्रेसीडेंट सीनियर पैथोलॉजिस्ट डाक्टर अनिल नौसरान से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि यह बात सही है कि पूरे शहर में जगह-जगह कुकरमुक्तों की तरह नकली पैथोलॉजी लैब उग आए हैं, लेकिन इन पर अंकुश लगाने का काम सीएमओ का है। वह लगातार स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए सचेत कर रहे हैं। लेकिन अवैध पैथोलॉजी लैब से होने वाली मोटी इंकम कार्रवाई में बाधक बनी है। उन्होंने खुलासा किया कि पैथोलॉजी लैबों को खुद जांच की जरूरत है
अफसरों से पूछा जाएगा क्यों किया ऐसा
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