लीड के बाद सीज फायर के फैसले से इत्तेफाक नहीं

kabir Sharma
7 Min Read
WhatsApp Channel Join Now
WhatsApp Group Join Now

मेरठ। देश की दस टॉप टेन फौजी छावनी में शुमार मेरठ छावनी में रहने वाले पूर्व फौजी अफसरों जिनमें कुछ ने साल 1965 और 1971 हुई दो बड़ी जंगों को करीब से देखा या उनका हिस्सा रहे, वो जिस तरह से सीज फायर हुआ है उससे कतई इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि युद्ध कोई देश नहीं चाहता। इसमें कोई दो राय नहीं कि युद्ध में ना कोई हारता है ना कोई जीतता है। जिसे हार जीत कहा जाता है फौजी भाषा में वो नुकसान कहलाता है। यह नुकसान हारने वाले और जीतने वाले दोनों मुल्कों को उठाना पड़ता है।इसलिए जंग कभी भी अच्छी नहीं होती। बात को मनवाने के अब बहुत से तरीके इजाद कर लिए गए हैं। लेकिन यदि कोई जंग थोपने पर अमादा हो जाए और उसके बाद यदि सीज फायर की बात हो तो वो सीज फायर अपनी शर्तों पर होना चाहिए। चंद घंटे पहले जो सीज फायर किया व जिस तहर से किया गया उसको कम से कम एक फौजी कभी स्वीकार्य नहीं करेगा। जब आप लड़ाई में लीड ले रहे हो तो फिर सीज फायर के कोई मायने नहीं रह जाते और यदि इन सब बातों के बाद भी सीज फायर करना पड़े तो वाे सीज फायर अपनी शर्तों पर किया जाना चाहिए। ये शर्ते भी ऐसी होनी चाहिए जो किसी फतह से कम ना कहलाएं।

तर्क का नहीं था कोई जवाब

माल रोड स्थित व्हिलर क्बल में सेना के कुछ रिटायर्ड फौजी अफसराें से रविवार को बातचीत का मौका मिला। बातचीत शुरू की गयी तो सब्जेक्ट पाकिस्तान से जंग की शुरूआत और सीज फायर ही रहा। हालांकि पहले तो यहां आज कोई इस विषय पर बात को ही राजी नहीं था। काफकहने सुनने के बाद नाम नहीं कोड किए जाने की शर्त पर बातचीत शुरू की गयी। बातचीत की शुरूआत साल 19्71 की जंग का हिस्सा रहे एक रिटायर्ड सिख अफसर ने की। उन्होंने शुरूआत में ही यह कह कर चौंका दिया कि पाकिस्तान की यदि बात करोगे तो तब हालात अब से बेहतर थे। उनका कहना था कि केवल फौजी मोर्चे पर नहीं बल्कि वह अपनी बात संपूर्ण संदर्भ में कह रहे हैं। उनकी बात किसी पहेली सरीखी थी। उनकी बातों का लबुलुआब यह था कि 1971 की जंग में भारत की सैन्य दशा और अंतराष्ट्रीय माहौल बहुत अनुकूल न होते हुए भी जंग भी लड़ी। जीते भी और बंगलादेश ही नहीं बनाया उसको एक अलग राष्ट्र के रूप में अंतराष्ट्रीय मान्यता भी दिलायी। एक अन्य फौजी अफसर ने कहा कि जब काफी चीजें आपके हाथ में हों तो किसी प्रेशर में आने का सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए। इस मौके पर जिस अजहर मसूद को कभी तत्कालीन विदेश मंत्री अजहर मसूद कंधार छोड़कर आए थे, सीज फार की एवज में उसे मांग लेना था। इसी तरह की बात नेवी से रिटायर्ड तीसरे फौजी अफसर ने भी कही। उन्होंने चीजे और बेहतर तरीक से बतायीं। उनका कहना था कि एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान आर्मी की प्रतिक्रिया थी वो हाेनी ही थी। यह भी तय था कि एयर स्ट्राइक के बाद जंग थो दी जाएगी। हुआ भी वैसा ही। लेकिन जंग थोपने वाली पाकिस्तान आर्मी यह नहीं जानती थी कि हिन्दुस्तान का डिफेंस सिस्टम काफी स्ट्रांग हो चुका है। उनके तमाम हमले नाकाम हो रहे थे। बाजी तेजी से इंडियन आर्मी के हाथों में थीं। इंटरनेशनल स्टेज पर भी इंडिया अपनी बात समझा पा रहा था, उसके बाद भी सीज फायर बगैर किसी शर्त के स्वीकार कर लिया गया है वो इंडियन आर्मी के नजरिये से मुनासिबत नहीं मा जा सकता। यह वक्त था दुनिया के सामने अपनी बातें मनवाने का। पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने का। इंडिन गर्वनमेट इंटरनल और एक्सटर्नल दोनों ही मोर्चां पर सीज फायर को लेकर सवालों के दायरे में है। तीनों ही इन रिटायर्ड आफिसर का कहना था कि यह एक बड़ा हासिल करने का मौका इंडियन आर्मी ने दिया था जिसको ठोकर मार दी गई। कोई भी कंट्री सिवाय पाकिस्तान के मित्र देशों के इसको सही नहीं बताएगा।

इस बातबात चीत का हिस्सा नहीं लेकिन चलते-चलते लास्ट में बातचीत का हिस्सा बने एक आर्मी अफसर का कहना था कि सीज फायर के एलाने के बाद पाकिस्तानी आर्मी की बड़ी बमबारी के पीछे चीन की नाराजगी है। पाकिस्तानी आर्मी और चीन की मित्रता किसी से छिपी नहीं है। चीन कभी नहीं चाहता था कि पाकिस्तान और भारत का सीज फायर हो और सीज फायर हो भी गया तो उसका तमगा ट्रक के सीने पर सजे। चीन ने इसके लिए नाराजगी का भी इजहार किया। चीन का पाकिस्तान में अरबों खरबो डॉलरका इन्वेस्टमेंट दुनिया से छिपा नहीं है। चीन का साफ कहना है कि पाकिस्तान मे अरबो खरबों का इन्वेस्ट वो करे और वहां बात अमेरिका की मानी जाए वह ऐसा होने नहीं देगा। यह बात कितनी सही है यह तो कहना जल्दबाजी होगी लेकिन जो तर्क दिया है उसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती।

सोशल मीडिया पर होने लगा ट्रेंड

- Advertisement -

सीज फायर साेशल मीडिया पर तेजी से ट्रेंड होने लगा। सीज फायर के फैसले को लेकर बड़ी संख्या आलोचना करने वालों की थी। ज्यादातर पोस्ट में श्रीमती इंदिरा गांधी का दौर याद किया जाने लगा। अमेरिका के सातवें बेडे की धमकी से डरे बगैर पाकिस्तान के दो टुकडे़ का बंगलादेश बनवा देना। वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर सीज फायर के खिलाफ जो सवाल उठाए गए उनका जवाब भाजपा समर्थकों के लिए भारी पड़ रहे थे।

WhatsApp Channel Join Now
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Would you like to receive notifications on latest updates? No Yes