औरंगजेब ही नहीं मेरठ में मौजूद 337 साल पुरानी मंत्री की मजार पर भी खतरा

kabir Sharma
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मेरठ। बादशाह औरंगजेब कुछ के लिए आदर्श है तो कुछ उसको विलेन के तौर पर पेश कर रहे है और ऐसा करने वाले दोनों ही कट्टर सोच वाले हैं। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में औरंगजेब की कब्र ही खतरे में नहीं है सीएम योगी के सूबे मेरठ में औरंगजेब के राइट हैंड माने जाने वाले मंत्री व मेरठ के नवाब आबू की 337 पुरानी मजार कोतवाली इलाके में स्थित है। कुछ कट्टर सोच वालों की नजर में यह मजार खटकने लगी है।हालांकि इस मजार की बात करें तो यह निर्माण कला का एक शानदार नमूना है।इसकी छत नहीं है फिर भी इसकी तामीर कुछ ऐसे की गयी है कि मजार पर बारिश का पानी नहीं पहुंच पाता है। स्थापत्य कला का यह मजार सुंदर नमूना है और संरक्षित की श्रेणी में है, लेकिन अब इसको खतरा पैदा हो गया है। हालांकि खतरा किसी भाजपाई से पैदा नहीं हुआ है बल्कि खुद काे हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता बताने वाले कुछ युवकों से पैदा हुआ है। इन युवकों ने इस मजार को तोड़ने वाले को एक करोड़ के इनाम का एलान किया है। केवल आबू के मकबरे को ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित बादशाह औरंगजेब की मजार को तोड‍़कर देने वाले को एक करोड़ के इनाम का एलान किया गया है। यह इनाम सचिन सिरोही नाम के शख्स ने देने की बात कही है। वहीं दूसरी ओर आबू की मजार तोड़ने की बात करने वालों ने मेरठ शहर का दिल कहलाने वाले आबूलेन का नाम भी बदलने की मांग की है।

ऐसी है यह मजार

कट्टर संगठनों के आंखों में जो मकबरा खटक रहा है वह मेरठ शहर को पुराने समय से ही इसकी प्रगतिशील विचारधारा और विनिर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की के दम पर, पूरे देश में एक विशिष्ट पहचान हासिल है! लेकिन दुर्भाग्य से हमारे शानदार मेरठ शहर की कई शानदार धरोहरों को अतिक्रमणकरियों की बुरी नज़र लग चुकी है, और मुगल सल्तनत के नवाबों के लिए मशहूर यहां की जमीन पर ऐतिहासिक महत्व की इमारतेंअतिक्रमणकारियों से जूझ रही हैं। जिनमें से एक मेरठ में अबू का मकबरा भी है। अबू का मकबरा मेरठ के नवाब अबू मोहम्मद खान और औरंगजेब के दरबार में एक “वजीर” का मकबरा है। 1688 में निर्मित, अबू का मकबरा मेरठ के नवाब अबू मोहम्मद खान का 334 साल पुराना लाल बलुआ पत्थर का मकबरा है। अबू मोहम्मद खान एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्ति थे। अबू मोहम्मद खान कंबोह ने 1658 में मेरठ में काली नदी से ताजे पानी की आपूर्ति के लिए एक नहर शुरू की थी, जिसे आज अबू नाला के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अबु लेन नाम का एक बाजार भी बनाया जो आज मेरठ के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। मेरठ और उसके इतिहास में उनके महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अबू लेन और अबू का नाला जैसे कुछ सबसे प्रमुख शहर के स्थल उनके नाम पर रखे गये है। उनका मकबरा 1688 में बनाया गया था और यह उनका अंतिम विश्राम स्थल है, हालांकि, दुर्भाग्य से आज यह मकबरा एक दयनीय स्थिति में है। उनके समय में मेरठ, अवध से शाही राजधानी तक की यात्रा का केंद्र बिंदु बन गया था। मकबरे के अन्य चार गढ़ मकबरे से दूर थे, लेकिन अवैध निर्माण के कारण उनका अस्तित्व बहुत पहले ही समाप्त हो गया है। मकबरे में मैदान हुआ करता था, जो आज तबेला बन गया है। मकबरे में कई अन्य कब्रें भी हैं, जिनमें से एक नवाब अबू की, दूसरी उनके पिता की और तीसरी किसी अन्य सदस्य की है। 334 साल पुरानी लाल बलुआ पत्थर की यह शानदार संरचना आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक नहीं है, इसलिए 100 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक लगाने वाला कानून, इस शानदार इमारत पर लागू नहीं होता है।
यहां पर अतिक्रमण इतना बढ़ गया है कि अब मकबरे के ऊपर ही टिन की झोपड़ियां बना दी गई हैं। यहां के आम लोगों ने इस ऐतिहासिक स्मारक के आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, और बहुमंजिला घर बना दिए हैं। कच्चे घरों के अलावा यह मकबरा स्थानीय बकरियों के लिए खुले में शौच का मैदान भी बन गया है। यहां की दीवारों पर खतरनाक दरारें बन गई हैं और यह किसी भी दिन गिर सकती हैं। ऐतिहासिक महत्व की जिस इमारत को संरक्षण की जरूरत है उसको गिराने की बातें की जा रही है वो भी केवल मजहब के आधार पर।

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