अफसरों का सारा दमखम गरीबों पर-भू-माफियाओं को पूरी छूट, कायदे कानून की जब बात आती है तो छावनी परिषद मेरठ के अफसर सारा दमखम गरीबों पर ही दिखाते हैं। भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर अफसरों का रवैया हमेशा फाइलों में गुम या फिर छिप जाने वाला होता है। भू-माफियाओं पर कार्रवाई के सवाल पर कैंट के अफसर केवल खुद को फाइलों में गुम ही नहीं करते बल्कि जिन भू-माफियाओं के अवैध निर्माणों व कब्जों को बुलडोज किया जाना चाहिए उन्हें यह भी बताते हैं कि जो अवैध निर्माणों और कब्जों उन्होंने किए हैं उनकों सरकारी कार्रवाई से कैसे बचाया जाएगा। कई मामलों में तो यहां तक सुनने में आया है कि इस काम के लिए कौन सा वकील मुफीद साबित होगा, यह भी मदद कर देते हैं। इसके इतर यदि कोई गरीब मौसम की मार से क्षतिग्रस्त हो गए मकान की यदि मरम्मत कराने लग जाए तो वहां छावनी परिषद मेरठ का हथोड़ा दस्ता पहुंच जाता है। या तो इस दस्ते की डिमांड पूरी करो वर्ना पूरा अमला तैयार है ध्वस्त करने के लिए जैसा कि दो दिन पहले सदर क्षेत्र के रजबन इलाके में देखने में आया। यहां एक मकान का कुछ हिस्सा बारिश में ढह गया था। उसकी मरम्मत करायी जा रही थी, इसको अवैध निर्माण साबित कर पूरा अमला ढहाने पहुंच गया। आरोप है कि यह कार्रवाई सेटिंग से की गयी थी, इसलिए पुलिस का इंतजाम साथ लेकर तब गए थे।
कुछ ही मामलों में पुलिस साथ क्यों:
ऐसा क्या है जो छावनी परिषद मेरठ के अफसर कुछ मामलों में जब ध्वस्तीकरण या सील की कार्रवाई को जात हैं तो पहले पुलिस बंदोबस्त करते हैं। इसके इतर जब किसी भू-माफिया के अवैध निर्माण को सील करने की बारी आती है तब पुलिस बंदोबस्त करना क्यों भूला दिया जाता है। इसका कोई उत्तर यदि सीईओ कैंट या फिर कैंट बोर्ड अध्यक्ष/कमांडर के पास हो तो जरूर जानकारी दे दें ताकि उसकी भी मेरठ छावनी के लोगों को प्रमुखता से जानकारी दी जा सके। लगता है कि छावनी परिषद मेरठ के अफसर आम आदमी और एक भू-माफिया में अंतर करना अच्छी तरह से जानते हैं। वर्ना ऐसा क्या कारण है जो केवल सारे कायदे कानून केवल गरीबों के मामले में ही याद आते हैं। कैंट अफसर दमखम भी गरीबों पर ही दिखाते हैं। भू-माफियाओं के सवाल पर उन्हें सांप सूंघ जाता है।
कारगुजारियों की लंबी फेहरिस्त:
अवैध निर्माणों की बात की जाए तो 340-रंगसाज मोहल्ला-Lives-शोरूम, वेस्ट एंड रोड दीवान स्कूल के भीतर अवैध निर्माण, 215-जैन विवाह मंडप, 213-होटल कोनार्क के सामने पूरा मार्केट, 209-वेस्ट एंड रोड यहां रिहायशी संपत्ति व्यवसायिक में तब्दील, 210-ए वेस्ट एंड रोड-जय प्रकाश अग्रवाल का धन शाकुंतलम , 240-भूसा मंड़ी, 201-शांति फार्म, 7-आरए लाइन, 8-आरए लाइन, 291- आरए बाजार, 87-हिल स्ट्रीट, 284-चैपल स्ट्रीट (दुबई स्टोर), 48-बीआई लाइन, 44-बीआई लाइन, 161-बी-माल रोड, 46-धर्मपुरी, 276-सरकुलर रोड व्हाइट हाउस (कैंट बोर्ड अफसरों के अवैध निर्माण के भ्रष्टाचार को समझने के लिए इसकी फाइल बांचना काफी होगा)। 196-सदर रंगसाज मोहल्ला के अलावा 300-क्लेमेंट स्ट्रीट सरीखे अवैध निर्माण हैं। तमाम अवैध निर्माण कैंट बोर्ड के इंजीनियरिंग सेक्शन और सेनेट्री सेक्शन के अफसरों की कारगुजारी के पुख्ता सबूत हैं। ये सभी अवैध निर्माण रातों रात नहीं कर लिए गए। एक लंबा अरसा लगा इन अवैध निर्मणों को पूरा होने में, लेकिन जो हालात हैं उससे तो यही लगता है कि लोगों के छोटे-छोटे अवैध निर्माणों पर दनदनाने वाले कैंट बोर्ड प्रशासन के अफसर जब ये अवैध निर्माण कराए जा रहे थे और जो जिम्मेदारी सरकार ने उन्हें दी थी, उससे वह भागे हुए थे या जिम्मेदारी की जानबूझ कर अनदेखी कर रहे थे। यदि कैंट प्रशासन कहता है कि ऐसा नहीं था तो फिर खुद अधिकारी बताएं कि ये भारी भरकम अवैध निर्माण कैसे हो गए। अवैध निर्माण का सील किया जाना, निर्माण सामग्री जब्त किया जाना और ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई क्यों नहीं की गयी। यह सांठगांठ तो है ही और भारत सरकार को करोड़ों के राजस्व का चूना भी।
जय प्लाजा:
गरीब आम आदमी और भूमाफिया मे छावनी परिषद के अफसर कैसे भेद करते हैं इसकी एक लंबी फेरिस्त है। सबसे चर्चित मामला मेरठ के आबूलेन स्थित जय प्लाजा का है। आबूलेन का रिहायशी बंगला जो जीएलआर में किसी सआदत नाम की महिला के नाम दर्ज है उसके रिश्तेदारों ने इस बंगले के अलग-अलग हिस्से भू-माफियाओं के हाथो में बेच डाले। उन भूमाफियाओं ने इस रिहायशी बंगल में अलग-अलग नाम से अवैध मार्केट बना डाला। फिलहाल यह बंगला जय प्लाजा के नाम से अपनी पहचान बना चुका है। इसमें समय समय पर अवैध निर्माण होते रहे, लेकिन इसको बुलडोज करने की हिम्मत आज तक अफसर नहीं जुटा सके। यह होता है आम आदमी और एक भू-माफिया में फर्क
व्हाइट हाउस:
मेरठ छावनी के सरकुलर रोड पर व्हाईट हाउस के नाम बना रेस्टोरेंट छावनी परिषद अफसरों के भ्रष्टाचार और भू-माफियाओ के आगे उनके सरेंडर की जीता जागती मिसाल है। यह बंगला भी जिनके नाम जीएलआर में चढा था उनकी मौत हो गयी। होना तो यह चाहिए था कि जिनके 276 सरकुलर रोड वाला बंगला था उनकी मौत के बाद कैंट अफसरों को इसको रिज्यूम कर लेना चाहिए था। लेकिन वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और बंगला पर अवैध लोग काविज हो गए। काविज ही नहीं हुए उन्होंने इस बंगले को भूमाफियाओ को बेच डाला। बाद मे वहां व्हाइट हाउस का अवैध निर्माण कर लिया गया। कार्रवाई के नाम पर कैंट के तत्कालीन सीईओ प्रसाद चव्हाण ने स्वयं वहां छापा मारकर अवैध निर्माण रूकवा दिया था, लेकिन बाद में वह अवैध निर्माण एक बार फिर शुरू हाे गया। और अब व्हाइट हाउस के नाम से वहां खोला गया रेस्टारेंट छावनी परिषद अफसरों की अवैध निर्माणों के खिलाफ उनकी निष्ठा की पोल खोल रहा है।
होटल 22-बी
मेरठ के बाउंड्री रोड जिस रिहायशी बंगले में 22 बी मे आज 22-बी के नाम से होटल चल रहा है यह कैंट प्रशासन के आला अफसरों की भूमाफियाओं से सांठगांठ का सबसे बड़ा सबूत है। इससे बड़ा सबूत शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने जिस बंगले को ध्वस्त किए जाने के आदेश छावनी परिषद मेरठ के अफसरों को दिए थे, बाद में लचर पैरवी के चलते यह होटल बनाने वाला होटल को ध्वस्त न किए जाने के आदेश हासिल करने में कामयाब हो गया। हाईकोर्ट के आदेश पर सील किए गए 22-बी में कैंट अफसरों की कारगुजारी के चलते भव्य होटल ही नहीं बना बल्कि उस होटल को ट्रेड लाइसेंस भी जारी कर दिया गया। बाउंड्री रोड का 22 बी छावनी परिषद मेरठ के अफसरों की सबसे बड़ी कारगुजारी और मिनिस्ट्री के उच्च पदस्थ के सामने सबसे बड़ी इनकी किरकिरी भी है।
बड़ा सवाल:
यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आम आदमी और भू-माफियाओं पर कार्रवाई के नाम पर कैंट प्रशासन के अफसरों की अलग-अलग थ्योरी क्यों हैं। जब रजबन में निर्माण गिराने का सवाल आता तो ध्वस्त करने में देरी नहीं लगायी जाती। लेकिन कैंट बाेर्ड अध्यक्ष/कमांडर के बोर्ड बैठक में दिए गए आदेश पर जब आबूलेन के 182 जय प्लाजा में अवैध निर्माण न करने देने के आदेश के अनुपाल की बात आती है तो वहां सील के बावजूद बजाए नजर रखने के अवैध निर्माण को पूरा करा दिया जाता है।
वर्जन
इस संबंध में जब सीईओ कैंट ज्याेति प्रसाद से जानकारी की गयी तो उन्होंने जय प्लाजा के निर्माण को अवैध बताते हुए उसमें विधिक कार्रवाई की जानकारी दी।