फिर भी बेबस है एमडीए

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फिर भी बेबस है एमडीए, -कालोनी ही नहीं कांप्लैक्स भी अवैध फिर भी बेबसी- काली कमाई से अवैध कालाेनी काट रहे कुछ भूमाफियाओं की केवल अवैध कालोनी ही नहीं है, बल्कि उन्होंने अवैध कांप्लैक्स भी बना लिए हैं फिर भी मेरठ विकास प्राधिकारण ऐसे अवैध कांप्लैक्स व कालोनियों के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर बेबस नजर आता है। ऐसे एक दो नहीं कई भूमाफियां हैं जिन्हें एमडीए के लेकर यहां धारणा बन गयी है आम आदमी ही नहीं बल्कि कुछ हद तक मेरठ विकास प्राधिकरण के स्टाफ में भी कि उन्हें एमडीए की ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई का कोई खौफ नहीं है। वो भले ही अवैध कालोनी काटे या फिर अवैध कांप्लैक्स बनाएं। उनके खिलाफ एमडीए प्रशासन ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। इसका क्या कारण कुछ भी हो सकता है। मसलन ऐसे भूमाफियाओं के हाई लेबल के कनेक्शन। इन कनेक्शन में राजनीतिक पहुंच, सत्ताधारी दल के नेताओं का अवैध कांप्लैक्स या कालोनी में साझेदारी का लालीपॉप, अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को हमेशा ईदगिर्दग रखना और लॉस्ट में बाप बड़ा ना भैय्या सबसे बड़ा रुपया वाली कहावत को चरितार्थ करना देना। शायद यही करण है जो भूमाफिया अवैध कालोनी ही नहीं काट रहे बल्कि महानगर के कुछ खास या जहां तेजी से रेट में हाईक है वहां अवैध कांप्लैक्स भी बनवा रहे हैं। ऐसा ही एक अवैध कांप्लैक्स एमडीए के जोन डी-फोर में बनकर तैयार हो गया है। इस कांप्लैक्स को लेकर सबसे चौंकाने वाली बात यह पता चली है कि इसका बैनामा तो किसी अन्य के नाम है। मसलन मालिकाना हक किसी और का है और इसका नक्शा किसी अन्य के नाम पर एमडीए से पास कराया गया है। इसको बनाने वाले भूमाफिया यह तर्क दे सकते हैं कि नक्शा तो है और एमडीए से पास भी करा लिया गया है, लेकिन मालिकाना हक किसी अन्य का और नक्शा किसी अन्य के नाम तो आईपीसी की यदि बात की जाए तो मामला कानूनी नजरिये से चार सौबीसी का भी बनता है। हम कतई नहीं कर रहे है कि कांप्लैक्स मालिक या नक्शा पास कराने वाला शख्स चार सौबीसी है, लेकिन इस प्रकार के मामलों में विधि विशेषज्ञों की यदि बात की जाए तो उनका कुछ ऐसा ही मानना है। जोन डी-फोर के जब इस कांप्लैक्स की पड़तान की गयी तो पता चला कि यह कांप्लैक्स किसी सुभाष उपाध्यक्ष नाम के शख्स का है। कागजों में क्या है और नक्शा किस के नाम पास कराया गया है, यह बात अगल है, लेकिन मालिकाना हक की जानकारी जो लोग रखते हैं उनका तो यही कहना है कि इसका कांपलैक्स का मालिक सुभाष उपाध्याय है। यहां गौरतलब है कि सुभाष उपाध्याय का नाम केवल इस कांप्लैक्स में ही नहीं लिया जा रहा है, बल्कि एमडीए के जोन डी-फोर किला रोड पर बन रही एक अवैध कालोनी में भी उनका नाम लिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इनका नाम  जाेन डी-फोर में काट दी अवैध कालोनीसे भी जोड़ा जा रहा है। किला राेड की यदि बात की जाए तो  किला रोड इन दिनों अवैध कालोनियों से पूरी तरह आबाद है। या यूं कहें कि यहां अवैध कालोनी काटने वाले भूमाफियाओं ने जड़ से खत्म करने देने की ठान ली है। साम-दाम-दंड़-भेद के हथकंड़े अपनाकर हरियाली को उजाड़े पर तुले हुए हैं। किलो रोड पर जहां दूर तक हरियाली नजर आती थी अब वहां भूमाफियाओं का कंकरीट का जंगल नजर आता है। आसपास के किसानों ने बताया कि इस बार हरियाली का चीरहरण करने लिए भी इसी भूमाफिया का नाम लिया जा रहा है।  गांव वालों ने बताया कि यह कालोनी पूरी तरह से अवैध है। एक खेत के एक रकबे में अवैध कालोनी काटी गयी है। ऐसा नहीं कि दो चार दिन या दो चार सप्ताह से यहां काम चल रहा है। गांव वालों ने बताया कि यहां तो अरसे से काल चल रहा है। एमडीए के जोन डी-फोर जहां  अवैध कालोनी काटी गयी है, गांव वाले बताते हैं कि उसकी शुरूआत किसान के खेत को लेकर की गयी। खेत लेकर वहां फसल पर ट्रेक्टर चलवा कर उसको बर्बाद कर दिया गया। खेत को बर्बाद करने के बाद भूमाफिया ने यहां अवैध खनन करा कर खेत की भराई का काम शुरू कराया। गांव वालों ने यह भी बताया कि इस अवैध कालोनी के अलावा इस इलाके में जितनी भी अवैध कालोनियां हैं उन सभी में  मिट्टी अवैध खनन से ही लायी गयी है। भराई के लिए मिट्टी की ढुलाई का काम कई दिन तक चलता रहा।  जोन डी-फोर की इस अवैध कालोनी में मिट्टी की भराई कराने में ही कई दिन लगा दिए गए, लेकिन हैरानी तो इस बात की है कि मेरठ विकास प्राधिकरण से किसी ने यहां आकर काम रूकवाने की जरूरत तक नहीं समझी। लंबे अरसे तक खेत की भराई का काम चलने के बाद अवैध कालोनी में अलग-अलग माप के भूखंड काटने का काम शुरू कराया गया। भूखंडों की नाप तोल के साथ ही अवैध कालोनी में भूमाफिया ने रास्ता बनवाया। उसमें भी कई दिन तक काम चलता रहा। काेल तार की सड़क बनाने वाली मशीन कई दिन यहां चलती रही, लेकिन फिर भी एमडीए के इस जोन के न तो जोनल अधिकारी अर्पित यादव न ही अवर अभियंता मनोज सिसौदिया ने यहां पहुंचकर काम रूकवाया या कभी सील लगायी हो। फिर ध्वस्तीकरण की बात तो बहुत दूर की है। इसके पीछे वजह क्या हो सकती है, यह तो एमडीए के अफसर ही जाने। लेकिन अब इस अवैध कालोनी में भूखंडों की बिक्र की जा रही है। बड़ी संख्या में भूखंड बेच भी दिए गए हैं। इनमें से कुछ ने जिन्हाेंने वहां भूखंड क्रय किए हैं निर्माण भी शुरू करा दिया है। । वहीं दूसरी ओर इस संबंध में जब एमडीए के जोनल अधिकारी व अवर अभियंता से संपर्क किया तो उन्होंने काल ही रिसीव नहीं की।

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