मेरठ/ इन दिनों सर्किल रेट को लेकर प्रशासन की माथा पच्ची जारी है। सर्किल रेट बढ़ने से उतना रेवेन्यू आता नहीं है जितना सरकारी खजाने पर इसका बोझ पड़ जाता है। यह भी सही है कि सर्किल रेट का अरसे से इंतजार किया जा रहा था। सर्किल रेट बढ़ने का सीधा कनेक्शन रियल एस्टेट कारोबार से है। आमतौर पर जो संपत्ति का सौदा करते हैं। वो किसान जिन्हें अपनी जमीने खासतौर से प्राधिकरण या फिर आवास विकास सरीखी सरकारी संस्थाओं को अपनी जमीनों बेचनी होती हैं उन्हें सर्किल रेट रिवाइज मसलन बढ़ने का बेसब्री से इंतजार है और हो भी क्यों ना क्योंकि जब किसी बड़ी योजना के लिए सरकारी संस्थाएं किसानों की जमीन अधिग्रहण करते हैं तो जो मुआवजा दिया जाता है वह सर्किल रेट से कई गुना होता है। कुछ मामलों में बताया गया है कि छह गुना तक मुआवजा सेटल होता है। हालांकि कुछ अपवाद ऐसे भी हैं कि मेरठ विकास प्राधिकरण सरीखी सरकारी ऐजेंसी ने किसी योजना के लिए जमीन का अधिग्रहण किया। तय सर्किल रेट पर मुआवजा भी दे दिया, लेकिन जब दोबारा सर्किल रेट बढ़े तो जिनकी जमीन अधिग्रहण की गई थी उन्होंने फिर आंदोलन का डंडा उठा लिया। इतना ही अधिग्रहण की गयी जमीन का कब्जा भी नहीं लेने दिया। इसकी मिसाल शताब्दीनगर सरीखी कुछ आवासीय योजनाएं हैं। हालांकि यहां उन पर बात नहीं की जा रही है जिस सर्किल रेट को बढ़ाए जाने को लेकर इन दिनों चर्चा गरम है उस पर बात की जा रही है। प्रशासन जितना भी सर्किल रेट बढ़ता है उससे जो आमदनी सरकार को होती है वो ऊंट के मुंह में जीरा सरीखी होती है, इसके उलट सर्किल रेटों के बढ़ाए जाने से सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ता है।

खजाने पर बड़ा बोझ
सर्किल रेट बढ़ाए जाने की बात करें तो तो सरकारी खजाने पर सर्किल रेट के बढ़ने के साथ ही बड़ा बोझ बढ़ जाना तय माना जा रहा है। दरअसल बीते सोमपार को लखनऊ में सीएम योगी के साथ हुई अफसरों की बैठक जिसमें कमिश्नर ऋषिकेश यशोद भी मौजूद थे उसमें मेरठ के विकास को लेकर तमाम योजनाएं पटल पर रखी गई और 15 हजार करोड़ की स्वीकृति सीएम ने उसको लेकर दी भी है। जिन योजनाओं पर सहमति बनी है उनमें से कुछ ऐसी भी है जिनके लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण की जाएगी। जमीन के अधिग्रहण से पहले या बाद में जब भी सर्किल रेट बढ़ाया जाएगा सरकारी खजाने पर वो बोझ की तरह होगा। सर्किल रेट बढ़ने से शासन को कुछ लाख मिलते हैं लेकिन इसे यदि मुआवजे के संदर्भ देखा जाए तो कई तो बोझ हजारों करोड़ का पड़ जाता है।
तलवार की धार सरीखा
सर्किल रेटों पर मंथन आसान नहीं होता। पूर्व में इसको लगातार टाला जाता रहा है, लेकिन यह मामला एक बार फिर से बोतल से बाहर है। सर्किल रेट को लेकर जो प्रक्रिया अपनायी जाती है वो लंबी तो होती ही है साथ ही उस पर निर्णय का लिया जाना बेहद दुश्वारी भरा है। किस इलाके का कितना सर्किल रेट बढाना है यह आमतौर पर सब कुछ जिलाधिकारी के विवेकाधीन होता है, लेकिन इस पर निर्णय लिया जाना आसान नहीं होता। भले ही यह निर्णय आपत्तियों पर मंथन के बाद ही क्यों ना लिया जाए।
कहीं ना लंबा ना हो जाए हवाई उड़ान का इंतजार….
अभी तो है तेइस करोड़ की दरकार, सर्किल रेट बढ़ने के बाद ज्यादा की होगी जरूरत नहीं फिर होगी ज्यादा की जरूरत
मेरठ। परतापुर स्थित हवाई पट्टी से छोटे हवाई जहाजों यानि सत्तर सीटर हवाई जहाजों की उड़ान के लिए जितनी जगह की जरूरत है उसके लिए अभी जब सर्किल रेट रिवाजइज नहीं हुए हैं तब तेइस करोड़ की दरकार है, सरकार से जिसका इंतजाम मेरठ में भाजपा नेताओं की फौज नहीं कर सकी है। लेकिन यदि सर्किल रेट बढा दिया जाता है तो हवाई पट्टी के बिस्तार के लिए जिन किसानों की जगह ली गयी है कयास लगाए जा रहे हैं कि वो किसान निश्चित रूप से नए सर्किल रेट की डिमांड करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो हवाई उड़ान का इंतजार और भी लंबा हो जाएगा। प्रशासन नए सर्किल रेट से संभवत: इंकार करे और किसान नए सर्किल रेट पर अड़ जाएं। बीच का कोई रास्ता फिर निकाला जाए। यदि सहमति बन भी गयी तो नए सिरे से सारी प्रक्रिया शुरू करायी जाएगी। जब अभी तेइस करोड़ का इंतजाम नहीं कराया जा सका है तो इस बात की क्या गारंटी है कि सर्किल रेट रिवाइज होने के बाद जो रकम बनेगी उसका इंतजाम आसानी से करा लिया जाएगा। इसी के चलते आशंका व्यक्त की गयी है कि कहीं सर्किल रेट हवाई उड़ान का इंतजार लंबा ना कर दें।
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