==अवैध कांप्लेक्स बनवाने वाले मेडा अफसर दे रहे कंपाउंडिंग की सफाई, मगर पार्किंग पर सूंघा सांप
==न मानचित्र न ही कंपाउंड, बनने पर मूंद ली थी आंखें अब बिकने पर भी खामोश===
==पीएल शर्मा रोड किंग बेकरी का अवैध कांप्लेक्स बना बाजार की मुसीबत
मेरठ/ शहर का दिल आबूलेन व बेगमपुल से सटे पीएल शर्मा रोड बेहद भीड़ वाले तंग इलाके में पुराने मकान को तोड़कर बनाए गए अवैध कांप्लेक्स पर प्राधिकरण के अफसर जब यह बना रहा था, तब भी चुप रहे और अब जब इसका कामर्शियल यूज यानि एक बड़ी सप्लाई कंपनी ने वहां कारोबारी गतिविधियां शुरू कर दी हैं वो तब भी चुप हैं। अवैध निर्माण चल रहा था तो प्राधिकरण का कोई अफसर जांच को झांकने तक नहीं पहुंचा और अब जब यहां कामर्शियल गतिविधियां शुरू हो गई हैं। तब भी प्राधिकरण अफसर हाथ-हाथ पर धरे सिर्फ अपनी जेबों का वजन कितना बढ़ा है। बस उसको तोलने में लगे हैं। कार्रवाई के नाम पर केवल इतना किया गया जब यह बन रहा था तब सील गला दी गयी। प्राधिकरण ने सील भले ही लगवा दी हो, लेकिन अफसरों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अवैध रूप से बनायी गयी इस इमारत का काम रुकवा सकें। नतीजा सबके सामने है। कार्रवाई के नाम पर सील लगाने का दम भरने वाले प्राधिकरण के अफसरों की आंखों में आंखें डालकर किंग बेकरी का अवैध कांप्लेक्स बन कर खड़ा भी हो और अब यहां खरीद-फरोख्त भी शुरू हो गयी है। एक सप्लाई चैन ने यहां कई दुकानों का हाल बनाकर काम शुरू कर दिया है।
लंबी है अफसरों की कारगुजारी की लिस्ट
किंग बेकरी के अवैध कांप्लेक्स के मामले में प्राधिकरण के अफसरों की कारगुजारी की लिस्ट काफी लंबी है। पूरी जानकारी से इसकी जानकारी दे रहे हैं। पीएल शर्मा रोड की एक तंग गली में मौजूद पुराने घर को तोड़कर जब यहां अवैध कांप्लेक्स की बुनियाद रखी जा रही थी, तब भी प्राधिकरण के अफसर चुप रहे हैं। ऐसा नहीं कि उन्हें इसका शुरू होने की जानकारी नहीं थी। उन्हें जानकारी भी थी और काम भी उन्हीं की सहमति से किया जा रहा था। इतना ही नहीं किंग बेकरी की इस अवैध इमारत के लिए सबसे बड़े कसूरवार प्राधिकरण के टाउन प्लानर जिनका काम ही अब बजाय टाउन को प्लान करने के केवल और केवल शहर की घनी आबादी के बीच एक-एक मीटर की गलियों में पुराने मकानों में बना दिए गए 100-100 दुकानों के अवैध कांप्लेक्सों को कंपाउंडिंग के नाम पर वैधता का कानूनी जामा पहनाने भर का रह गया है। जिन तमाम अवैध कांप्लेक्सों को कंपाउंडिंग के नाम पर वैध किए जाने के लिए टाउन प्लानर बुरी तरह से छटपाते प्रतीत होते हैं। उन अवैध कांप्लेक्सों की वजह से शहर में जो मुसीबत आएगी उसको लेकर उनकी पेशानी पर एक लकीर तक नजर नहीं आती है।
शहर पर टूटेगी मुसीबत
परेशानी ऐसे आएगी कि किंग बेकरी के अवैध कांप्लेक्स समेत शीश महल, लाला का बाजार, जत्तीबाड़ा, ठठेरवाड़ा, शहर सराफा, नील की गली और ऐसे ही दूसरे गलियों में बना दिए गए अवैध कांप्लेक्सों में से एक के पास भी पार्किंग की व्यवस्था नहीं हैं। एक-एक करोड़ की जिन कांप्लेक्सों में दुकानें लोग खरीदेंगे स्वभाविक है वो ई-रिक्शा से या पैदल तो आएंगे नहीं। प्रतिष्ठान पर आएंगे तो कार से ही और उनके यहां जो ग्राहक आएंगे वो भी अनुमन गाड़ियों से ही आएंगे, जब पार्किंग ही नहीं है तो फिर जो गाड़ियां आएंगी वो खड़ी कहां होंगी।
पैदल निकलना भी होगा दुश्वार
जिन इलाकों का यहां जिक्र किया गया है वहां तो कई बार पैदल निकलना मुश्किल होता है। जब इन कांप्लेक्सों की ये तमाम दुकानें बेच दी जाएंगी और कारोबारी गतिविधियां शुरू हो जाएंगी तो वहां उस हाल में बाजार व टैÑफिक का क्या हश्र होगा जिसकी चिंता मेरठ में सिस्टम संभाल रहे अफसरों को शायद अभी नहीं है, लेकिन जब हालात बेहद बेकाबू हो चुकेंगे और अपनी कारगुजारियों से पूरे शहर को जहन्नुम बनाने के बाद प्राधिकरण के टाउन प्लानर सरीखे अफसर यहां से तबादला लेकर निकल जाएंगे, तब तक काफी देर हो चुकी होगी। उस वक्त जो अफसर यहां होंगे उनकी हालात सांस व छछूंदर सरीखी होगी, न निगला जाएगा और न ही उगला जाएगा, क्योंकि कंपाउंडिंग के नाम पर अवैध इमारतों वैध बना दिया जाएगा और इनके वैध बनाने से जो आफत आएगी वो प्राधिकरण को चलाने वाले अफसरों को अभी नजर नहीं आ रही है। अभी तो उनकी नजर केवल ब्रीफकेस का वजन कितना बढ़ाता है, बस उस तरफ ही है।
आधार क्या कंपाउंडिंग का?
प्राधिकरण के टीपी विजय सिंह का दावा है कि इस इमारत की कंपाउंडिंग के लिए अर्जी दाखिल की गयी है। यहां याद दिला दें कि किसी भी कामर्शियल इमारत की कंपाउंडिंग के लिए वहां पार्किंग व फायर एनओसी का होना पहली शर्त है, लेकिन जो जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी ने दी है, वो यदि ठीक है तो अभी फायर एनओसी नहीं ली गयी है, उसके बगैर ही प्राधिकरण के अफसर कंपाउंडिंग का राग अलाप रहे हैं और पार्किंग का तो सवाल ही नहीं।
कैद होकर रह जाएंगे घरों में
पीएल शर्मा रोड के जिस इलाके में किंग बेकरी की यह अवैध इमारत बनायी गयी है। वहां इस वक्त भी दिन में कई बार जाम लगता है। जब इस कांप्लेक्स की दुकानें खुल जाएंगी तब वहां क्या हाल होगा इसका अंदाजा भर लगा लीजिए। सबसे बुरा हाल तो इस कांप्लेक्स की वजह से पंचमुखी हनुमान मंदिर के ठीक सामने वाली डेढ़ मीटर की गली में रहने वालों का होने जा रहा है। इस गली में भी दुकानों के शटर लगा दिए गए हैं। डेढ़ मीटर की गली में जब दुकान खरीदने वाला अपनी गाड़ी खड़ी करेगा तो जो यहां पहले से रह रहे हैं उनकी गाड़ियां कहां खड़ी होंगी और कैसे निकलेंगी।
एनओसी भी खतरे में
आरटीआई एक्टिविस्ट मनौज चौधरी द्वारा सीएफओ से किंग बेकरी के कांप्लेक्स को फायर एनओसी के मुतालिक सवाल पूछ लिए जाने के बाद फिलहाल फायर एनओसी का भी टोटा नजर आ रहा है। इतना ही नहीं इस मामले को लेकर जो भी कुछ खामियां हैं। उसकी जानकारी सीएम कार्यालय, मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, प्राधिकरण उपाध्यक्ष, नगरायुक्त व चीफ फायर आफिसर को भी दी गयी है। मनोज ने बताया कि उन्होंने चीफ फायर आफिसर को यह भी बता दिया है कि यदि कायदे कानून ताक पर रखकर फायर एनओसी जारी की गयी तो उसको हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
टीपी गायब, जोनल अफसर की गेंद जेई के पाल में और जेई की ना
किंग बेकरी के कांप्लेक्स को लेकर जो कुछ प्राधिकरण अफसरों के बीच चल रहा है उसको चलते कोई भी अफसर सीधे बात करने को तैयार नहीं। हालांकि जोनल अधिकारी, सचिव आनंद सिंह ने महानगर के जोनल का चार्ज धीरज यादव को दिया है, संवाददाता ने जब धीरज यादव से किंग के कांप्लेक्स की कंपाउंडिंग को लेकर सवाल किया तो उन्होंने अंजान बनते हुए गेंद को जोन डी-1 के अवर अभियंता जितेंद्र फर्स्ट के पाले में डाल दी। डी-1 के अवर अभियंता ने बताया कि वहां सील लगी है और सील खुवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जब उन्हें संवाददाता ने बताया कि आप सील की बात कह रहे हैं। जबकि मौके पर सप्लाई चैन कंपनी ने वहां कई दुकानें तो किराए पर ले ली हैं या खरीद ली हैं तो उन्होंने बताया कि इस संबंध में तो वह कुछ नहीं कह सकते हैं, लेकिन कंपाउंडिंग नहीं की गयी है। उन्होंने माना कि कंपाउंडिंग के लिए फायर एनओसी का होना जरूरी है। वहीं, दूसरी महानगर को खूबसूरत टाउन में बदलने का दायित्व जिन टीपी विजय सिंह के कंधों पर जब उनके कक्ष में पहुंचे तो वह वहां मिले नहीं। उनके मोबाइल पर संपर्क किया तो एक बार घंटी जाने के बाद वह रेंज से ही गायब हो गए। यहां याद रहे कि जो कुछ भी इस अवैध इमारत को लेकर चल रहा है। उसके पीछे टाउन प्लानर का ही नाम बार-बार लिया जा रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी का तो यहां तक कहना है कि केवल किंग बेकरी की इमारत नहीं है। जितनी भी इमारतों की कंपाउंडिंग की बात हो रही है उन सभी के पीछे विजय सिंह की ही कोशिशें मिलेंगी, लेकिन आरटीआई एक्टिविस्ट भी इन्हें हाईकोर्ट तक खींचने पर उतारू हैं।
काला धन हुआ व्हाइट मनी
सुनने में आया है कि शहर के एक बडेÞ नामचीन डॉक्टर की ब्लैकमनी इसमें इन्वेस्ट कर उसको व्हाइट मनी कर दिया गया है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि किंग बेकरी के इस अवैध निर्माण में ब्लैक मनी को व्हाइट मनी के खेल से अफसर भी अंजान नहीं है, लेकिन उन्हें इस पर कार्रवाई से ज्यादा अपनी जेबों के वजन की चिंता है।