विरोध! काली पट्टी व काले कपड़ों में नमाज

kabir Sharma
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मेरठ/ ईद उल फितर की नमाज पढ़ने अनेक मुसलमान ईदगाह पर आस्तीन पर काली पट्टी बांधाकर पहुंचे। इससे पहले जुम्मा अलविदा की नमाज के लिए जाम मस्जिद पर भी बड़ी संख्या में मुसलमान काली पट्टी बांधकर नमाज के लिए पहुंचे थे। केवल काली पट्टी ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में ऐसे भी थे जो काले कपड़ पहनकर ईदगाह पहुंचे थे। काले कपड़ों पर धार्मिक आयोजनों में आमतौर पर विरोध का प्रतीक माना जाता है। जो भी लोग काले पकडे पहनकर पहुंचे थे उन्होंने स्वीकार किया कि वो सभी विरोध स्वरूप काले कपडे पहनकर पहुंचे हैं। उनका कहना था कि केंद्र सरकार का वक्फ संपत्तियों को लेकर लाया गया कानून उन्हें मंजूर नहीं है। एडवोकेट नदीम अंसारी जो काली पट्टी बांधकर पहुंचे थे उन्होंने बाकायदा अपना बयान दर्ज कराते हुए कहा कि केंद्र सरकार यह सब साल 2027 के यूपी विधानसभा के मद्देनजर कर रही है। सरकार के पास चुनाव में उतरने के लिए अपना कोई काम नहीं है, इसी वजह मस्जिदें भर जाने के बाद महज दस मिनट के लिए सड़क पर नमाजियों को आने से रोका जा रहा है। वक्फ संपत्तियों को लेकर कानून लाया जा रहा है। चुनाव जीतने के लिए भाजपा की ओर से के इशारे पर की जा रही सरकार की इन तरकीबों को मुसलमान खूब समझ रहे हैं, लेकिन बेहतर होगा कि हिन्दू भी सरकार की मंशा को समझें। जो सलूक आज मुसलमानों के साथ है कल हिन्दुओं के साथ भी होगा। पहले केवल मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलता था अब हिन्दुओं के घरों पर भी बुलडोजर चलता है। पहले केवल मस्जिदें गिरायी जाती थी अब मंदिरों को भी नहीं बख्शा जात, बनारस और अयोध्या इसका सबूत है।


सीनियर एडवोकेट अनिल बक्शी का कहना है कि विरोध का तरीका सबका अलग-अलग है। उन्होंने सुप्रीमकोर्ट की एक रूलिंग का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी देश के समर्थन में नारेबाजी करना तब तक अपराध नहीं है जब तक देश के खिलाफ वह शख्स नारेबाजी ना करे। विरोध करने के लिए यदि कोई काली पट्टी बांधता है तो वह कानून या देश का विरोध नहीं है।

सड़क पर नमाज के सवाल पर बवाल

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