प्रेमानंद महाराज को मानते राधा रानी का स्वरूप

kabir Sharma
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वृंदावन। श्रीधाम वृंदावन में संत प्रेमानंद जी महाराज को मानने वाले उनके अनुयायी प्रेमानंद जी महाराज को ही साक्षात राधा रानी का स्वरूप मानते हैं। देश और दुनिया से प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन के लिए छटीकरा मार्ग स्थित श्रीकृष्ण शरण् आश्रम के आसपास डेरा डाले तथा जिस मार्ग से होकर संत प्रेमानंद जी महाराज परिक्रमा करते हैं कई घंटे वहां रात भर प्रेमानंद जी महाराज की प्रतीक्षा करने वाले देश और विदेशों से आने वाले अनुयाइयाें का कहना है कि जब से प्रेमानंद जी महाराज के संपर्क में आए हैं तब से उनका जीवन बदल गया है। कुछ का तो यहां तक दावा है कि प्रेमानंद जी महाराज ने ही उनका राधा रानी से साक्षात्कार कराया है। संत प्रेमानंद जी महाराज जब रात्री करीब दो या तीन बजे पदयात्रा पर निकलते है वो नजारा अद्भुत होता है। उसको शब्दों में पिरोने की क्षमता किसी में नहीं।

इस मौके पर अनेक म्युजिकल ग्रुप मुबई महाराष्ट्र से पहुंचे हैं। हालांकि कुछ दिन तक संत प्रेमानंद जी महाराज की पदयात्रा पर विराम था। देखभाल करने वाले आश्रम के शिष्यों व चिकित्सकों ने प्रेमानंद जी महाराज को पदयात्रा की अनुमति नहीं दी थी। इससे उनके अनुयायी काफी विचलित भी थे। राधारानी के अनन्य भक्त और वृंदावन रसिक संत प्रेमानंद महाराज पांच दिनों बाद शनिवार की रात पदयात्रा पर निकले तो भक्तजन उनके दर्शन कर आनंदित हो गए। कदम-कदम पर उनका भावपूर्ण स्वागत करते हुए राधे-राधे की जयकार करते रहे।

यहां बता दें कि संत प्रेमानंद महाराज छटीकरा मार्ग स्थित अपने आवास श्रीकृष्ण शरणम् से रात करीब दो बजे पदयात्रा करते हुए रमणरेती स्थित श्रीराधा केलिकुंज आश्रम पहुंचते हैं। करीब डेढ़ किमी लंबे इस मार्ग पर उनके दर्शन के लिए भक्तजन रात ग्यारह-बारह बजे से ही मार्ग के दोनों ओर कतारबद्ध हो जाते हैं। संत के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। संत प्रेमानंद जी महाराज का स्वास्थ्य अगर कभी खराब हो जाता है तो आश्रम के परिकर रात करीब दो-ढाई बजे पदयात्रा स्थगित होने की सूचना प्रसारित कर देते हैं। पिछले दिनों में भी भक्तगण पदयात्रा मार्ग पर रात में ही आ गए थे। रविवार सुबह सवा चार बजे संत प्रेमानंद महाराज जैसे ही अपने आवास श्रीकृष्ण शरणम् से पदयात्रा के लिए निकले, भक्त राधानाम की जयकार करने लगे। श्रद्धावनत होकर संत के दर्शन किए। प्रेमानंद महाराज भी भक्तों को आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ते रहे। पदयात्रा करते हुए वे परिक्रमा मार्ग स्थित अपने आश्रम श्री राधा केलिकुंज पहुंचे। जहां नियमित दिनचर्या की शुरुआत हुई। 

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