रामसेतू: सरकार की ना से भाजपा बैकफुट पर, नई दिल्ली: भाजपाइयों के राजनीतिक ऐजेंडा का हिस्सा रहे रामसेतू के वजूद पर सरकार की ना से वो भाजपाई बैकफुट पर हैं जो टीबी डिबेट में रामसेतू को लेकर आसमान सिर पर उठा लेते थे। केंद्र सरकार ने संसद को बताया कि भारत और श्रीलंका के बीच के क्षेत्र की सैटेलाइट तस्वीर, जहां पौराणिक राम सेतु के अस्तित्व की बात कही जाती है, में द्वीप और चूना पत्थर (लाइमस्टोन) वाले उथले किनारे नजर आते हैं लेकिन उन्हें ‘निर्णायक तौर पर’ पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता है. अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह राज्यसभा में भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के एक मौखिक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने पूछा था कि क्या सरकार भारत के अतीत का वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के लिए कोई प्रयास कर रही है. यह पता लगाने की कुछ सीमाएं हैं क्योंकि इतिहास 18,000 साल से अधिक पुराना है और यदि आप इतिहास पर जाएं, तो वह पुल लगभग 56 किमी लंबा था.’ कथित राम सेतु को एडम्स ब्रिज के तौर पर भी जाना जाता है. यह तमिलनाडु के दक्षिणपूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की एक शृंखला है. मालूम हो कि इससे पहले यूपीए सरकार ने पर्यावरणविद आरके पचौरी की अगुवाई वाली एक समिति बनाते हुए सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक एलाइनमेंट की जांच करने का जिम्मा सौंपा था. इस परियोजना में 83 किलोमीटर लंबे गहरे जल मार्ग के निर्माण की परिकल्पना की गई थी, जो मन्नार को पाक जलडमरूमध्य से जोड़ता था, जो कथित राम सेतु का हिस्सा बनने वाले चूना पत्थर की शृंखला को हटाकर किया जाना था. भाजपा इस बात का हवाला देते हुए कि भगवान राम ने सीता को बचाने के लिए लंका पहुंचने के लिए यह मार्ग बनाया था और इसकी रक्षा की जानी चाहिए, परियोजना का विरोध कर रही है. सरकार की ओर से राज्यसभा में दिए गए जवाब के बाद भाजपा के वो नेता बैकफुट पर हैं जो इसको लेकर सबसे ज्यादा हो हल्ला करते थे।