बहाल हों-बहाल हों-संविदा कर्मी,
मेरठ/महकमें से निकाले गए संविदा कर्मियों की बहाली की मांग को लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और यूपी पावर कारपोरेशन आमने सामने हैं। मेरठ समेत प्रदेश भर में इसको लेकर विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। संघर्ष समिति ने पावर कारपोरेशन प्रबंध तंत्र पर औद्योगिक अशांति का माहौल बनाने का आरोप लगाया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उप्र के आह्वान पर गुरूवार को बिजली कर्मियों ने जनपद भर में परियोजना मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने ऊर्जा निगमों में औद्योगिक अशान्ति का वातावरण बनाने का आरोप लगाते हुए मांग की है कि हटाये गये समस्त संविदा कर्मियों को तत्काल नौकरी में वापस लिया जाये और हटाये जाने का आदेश निरस्त किया जाये।
संघर्ष समिति मेरठ के पदाधिकारियों इं सी पी सिंह (सेवानिवृत), इं निशान्त त्यागी, इं प्रगति राजपूत, कपिल देव गौतम, जितेन्द्र कुमार, दिलमणि, मांगेराम, दीपक कश्यप, प्रदीप दरोगा, भूपेंद्र, कासिफ आदि ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के पहले संविदा कर्मियों को हटाकर भय का वातावरण बनाया जा रहा है जो ऊर्जा निगमों की स्वस्थ्य कार्य प्रणाली पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है।
उन्होंने कहा कि निजीकरण के बाद दिल्ली में एक साल के अन्दर-अन्दर लगभग 50 प्रतिशत कर्मचारियों को वीआरएस लेने के लिए मजबूर कर दिया गया था। इसी प्रकार 01 फरवरी को चंडीगढ़ विद्युत विभाग का निजीकरण करने के पहले 200 से अधिक बिजली कर्मियों को वीआरएस लेने के लिए बाध्य किया गया। यह संख्या कुल बिजली कर्मियों की संख्या का लगभग आधा है। संघर्ष समिति ने कहा कि उप्र में भी इसी तर्ज पर निजीकरण के पहले संविदा कर्मियों को बड़े पैमाने पर हटाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नियमित कर्मचारियों को भली-भांति पता है कि निजीकरण के पहले बड़े पैमाने पर नियमित कर्मचारियों को भी हटाया जायेगा अथवा उन्हें वीआरएस लेने के लिए मजबूर किया जायेगा।
संघर्ष समिति ने कहा कि अकेले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 50 हजार संविदा कर्मियों और 26 हजार नियमित कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटकी हुई है। किसी भी कीमत पर निजीकरण स्वीकार नहीं। विरोध प्रदर्शन 7 फरवरी को भी जारी रहेगा। यहां विक्टोरिया पार्क स्थित ऊर्जा भवन पर विरोध सभा में सभी बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की।