ऋषभ: रोक फिर भी खर्च बे-रोकटोक, हाईकोर्ट की रोक के बाद भी श्रीपार्श्व जिनेन्द्र शिक्षा समिति द्वारा संचालित ऋषभ एकाडेमी में खर्चा बे-रोकटोक किया जा रहा है। इसका खुलासा मंडलायुक्त को ऋषभ के संस्थापक सदस्य शरद जैन द्वारा की गई शिकायत के बाद डिप्टी रजिस्ट्रार ने जो ब्योरा तलब किया है, उसके संबंध में ऋषभ के प्रधानाचार्य मुकेश कुमार व राजेश जैन (राजेन्द्र जैन जोधामल सराफ के दामाद) द्वारा भेजी गयी जानकारी में हुआ है। शरद जैन ने जानकारी दी कि हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि केवल छात्रों की फीस जमा करने तथा स्टाफ की सेलरी देने के अलावा कोई अन्य खर्च ना किया जाए। जो भी व्यय फीस व सेलरी आदि किया जाए वह केवल बैंक एकाउंट द्वारा किया जाए, लेकिन जो जानकारी डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां भेजी गयी है, बकौल शरद जैन उसमें कहीं भी बैंक से भुगतान की जानकारी नहीं दी गयी है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि आय-ब्यय का ब्योरा प्रतिमाह डिप्टी रजिस्ट्रार को भेजा जाना अनिवार्य होगा। यह जिम्मेदारी चुनाव होने तक कामकाज देखने के लिए नियुक्त किए गए सदस्य राजेश जैन व प्रधानाचार्य मुकेश कुमार को दी गयी, यह बात अलग है कि दोनों में से किसी भी एक ने हाईकोर्ट के आदेशों को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। जब मामले को लेकर मंडलायुक्त को अवगत कराया गया और मंडलायुक्त ने डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यालय को निर्देशित किया, उसके बाद कहीं जाकर नींद टूटी। ऋषभ के संस्थापक सदस्य का साफ कहना है कि यह पूरा मामला हाईकोर्ट की अवमानना के दायरे में आता है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में बाकायदा हिसाब मांगे जाने पर डिप्टी रजिस्ट्रार ने ऋषभ एकाडेमी के आय-ब्यय का ब्योरा उन्हें भेजा है। जो ब्योरा डिप्टी रजिस्ट्रार ने उपलब्ध कराया है उसमें मार्च 2022 माह से लेकर जून 22 तक चार माह का है। लेकिन इससे भी बड़ी बात उस ब्यौरे में जो व्यय दर्शाए गए हैं वो शाह खर्च सरीखे हैं, जबकि हाईकोर्ट ने केवल फीस जमा करने और सेलरी देने की अनुमति दी है। वो भी कैश या आन लाइन नहीं बल्कि बैंक एकाउंट द्वारा। शरद जैन ने जानकारी दी कि जो ब्योरा भेजा गया है उसमें चार माह मेंं विज्ञापन यानि प्रचार की मद में 802890 का व्यय, कंप्यूटर रखरखाव पर 107553 व्यय, स्कूल मेनटिनेंस 71629 रूपए, इलेक्ट्रक रिपेयर व मेन्टिनेंस 29385, लीगल खर्च-चार माह में 11 लाख से भी ज्यादा यानि 1114000 (शरद जैन ने सबसे ज्यादा इसी पर आपत्ति की है, उनका कहना है कि बच्चों की फीस की ये बर्बादी यूं उचित नहीं। यह रकम जैन समाज के स्कूल की है, किसी की निजी संपत्ति नहीं, उन्होंने समाज से भी पूछा है कि क्या मुकदमें बाजी पर चार माह में ग्यारह लाख के खर्च को लेकर स्कूल चलाने वालों से सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए), अन्य व्यय-14,8097, प्रिंटिंग स्टेशनरी-909033, स्टाफ वेलफेयर-713835 व रिपेयर मेंटिनेंस-4934025 दर्शाया गया है, जबकि कैंट में किसी भी प्रकार की रिपेयर के लिए कैंट बोर्ड की अनुमति अनिवार्य है। यह ब्योरा मार्च से जून माह का भेजा गया है। उन्होंने बताया कि छह माह का ब्योरा जून से लेकर दिसंबर का नहीं भेजा गया है। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा कोई बैंक लेनदेन नहीं भेजा गया है। इससे प्रतीत होता है कि प्रधानाचार्य मुकेश व राजेश जैन द्वारा जो खर्चे दिखाए गए हैं, वो केवल मनमाने हैं और चार माह में करीब एक करोड़ की लूट हो चुकी है। उन्होंने स्कूल संचालकों से सवाल किया कि ऐसा क्या कारण है जो छह माह का ब्योरा डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां भेजा नहीं गया है, ऐसा क्या है जिसकी पर्दादारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि सब बात स्वीकार की जा सकती है, लेकिन सबसे बड़ी आपत्ति हाईकोर्ट के फीस व सेलरी के अलावा अन्य सभी प्रकार के व्यय करने पर रोक के आदेशों की अवहेलना किया जाना है। कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि किसी प्रकार का नीतिगत फैसला लिए जाने की मनाही है। शरद जैन का कहना है कि इसके बावजूद भी कुछ नियुक्तियां की गयी हैं। यह मामला पूरी तरह से हाईकोर्ट की अवमानना का है। वहीं दूसरी ओर जब इस संबंध में ऋषभ के संचालक राजेश जैन व प्रधानाचार्य मुकेश से संपर्क का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका। जिसकी वजह से उनका पक्ष नहीं पता चला सका।