साबित होंगे जी का जंजाल

तो क्या मौत के चैंबर को भी...
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साबित होंगे जी का जंजाल, मेरठ महानगर में अवैध कालोनियों का जाल और अवैध निर्माण मेरठ महायोजना के लिए जी का जंजाल साबित होंगे। यदि मेरठ महायोजना को ग्रहण लगता है तो उसके लिए वो अफसर जिम्मेदार होंगे जिनके कार्यकाल में अवैध कालाेनियां काट दी गयी और तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर बगैर मानकों को पूरा किए भूमाफियाओं ने बड़े-बड़े कांप्लैक्स बना डाले। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे कांप्लैक्स हैं जिनमें बिल्डर ने जो जगह वाहनों की पार्किंग के लिए तय की गयी थी, उसमें भी दुकानें बनाकर बेच दी हैं। हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई स्थानों पर तो पचास से ज्यादा दुकानों के कांप्लैक्स बना दिए गए हैं और इन कांप्लैक्स में आने वाले लोगों के वाहनों के इतना भी स्पेस नहीं छोड़ा गया है कि वहां एक भी कार पार्क की जा सके।

महायोजना के सुनहरे सपने को पलीता तय

मेरठ महायोजना 2031 की बात की जाए तो वह किसी सुनहरे सपने सरीखी है इसमें आर्बिट रेल कारिडोर, आर्बिट एक्सप्रेसवे कारिडोर का भविष्य का सपना है तो वहीं रैपिड रेल कारिडोर, दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे, गंगा एक्सप्रेस-वे और मेरठ के विभिन्न हाईवे का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए भूउपयोग की प्लानिंग की गई है। इन्हीं परियोजनाओं को ध्यान में रखकर मोहिउद्दीनपुर और दौराला में 400 हेक्टेयर के विशेष विकास क्षेत्र रखे गए हैं। काली नदी के किनारे और गंगा एक्सप्रेसवे किनारे औद्योगिक क्षेत्र रखे गए हैं। महायोजना 2031 में औद्योगिक क्षेत्र, पार्क, खुले स्थान, ट्रांसपोर्ट नगर, बस टर्मिनल या फिर कुछ और के लिए भू-उपयोग तय किया जाता है। महायोजना का खाका देखने व सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन महायोजना में पलीता लगाने का काम भूमाफिया, भ्रष्ट अफसरों, नेताओं व अपराधिक पृष्ठभूमि वाले माफियाओं का सिंडिकेट कर रहा है। क्योंकि महानगर में जितने बड़े स्तर पर अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं। मानकों के विपरीत बड़े-बड़े कांप्लेक्स घनी आबादी वाले लालकुर्ती व पीएल शर्मा रोड सरीखे इलाकों में बनाए जा रहे हैं, जहां पार्किंग के नाम पर साइकिल तक खड़ी करने की जगह भूमाफियाओं ने नहीं छोड़ी है। इन सबके चलते महायोजना 2031 को कैसे अमली जामा पहनाया जा सकेगा इस बात का उत्तर मिलना बाकि है।

अवैध कालोनियों की सेंचुरी का हेड ट्रिक: मेरठ विकास प्राधिकरण के सूत्रों की मानें तो महानगर में तीन सौ से ज्यादा अवैध कालोनी तो ऐसी हैं जिनको चिन्हित किया जा चुका है। हालांकि इनमें से ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई की बात की जाए तो इसकी जानकारी देने के नाम पर एमडीए प्रशासन की  बताने को ऊंट के मुंह में जीरा सरीखी स्थिति है। मसलन कार्रवाई के नाम पर बताने को कुछ नहीं है। वैसे भी जब-जब अवैध कालोनियों के खिलाफ ध्वस्तीकरण की बारी आती है तो एमडीए प्रशासन के अफसरों की पहली पसंद साफ्ट टारगेट होता है। मसलन बड़े और नामचीन भूमाफियाओं पर हाथ डालने से कन्नी काट ली जाती है। अवैध कालोनियों के काले धंधे में जिन्हें साफ्ट टारगेट माना जाता है, उनकी अवैध कालोनियों की दीवारें गिराकर और फर्श उखाड़ कर एमडीए के अफसर कार्रवाई के नाम पर जीत का जश्न मना लेते हैं। अखबारों में बड़ी-बड़ी खबरें और उनकी कटिंग शासन को भेज दी जाती है। इन दिनों मीडिया में ऐसे पत्रकारों की बहुत चहल-पहल है जो अफसरों की मन मुताबिक खबरों को प्लांट कर लेते हैं। ऐसे पहली पसंद बने हैं।

चारों ओर अवैध कालोनियों का जाल

अवैध कालोनियों की बात की जाए तो महानगर क्षेत्र में चारों ओर अवैध कालोनियों का जाल बिछा है। इन अवैध कालोनियों ने मेरठ के उन तमाम इलाकों को कंकरीट के जंगल में तब्दील कर दिया जहां कभी हरियाली हुआ करती थी। दिल्ली रोड की यदि बात की जाए तो ढूंढने से भी हरियाली नजर आने वाली नहीं। भूमाफियाओं ने खेती की सारी जगह को अवैध कालोनियों के लिए रौंद डाला है। अब यही हालात महानगर के दूसरे इलाकों में भी बनते जा रहे हैं। गढ रोड और हापुड़ रोड भी तेजी से दिल्ली रोड की मानिंद कंकरीट के जंगल में तब्दील किए जाने का काम चल रहा है। जब तक महायोजना का मुकर्रर वक्त आएगा तब तक गढ रोड और हापुड़ रोड पूरी तरह से कंकरीट के अवैध जंगल में तब्दील हो चुकी होगी। मेरठ के चारों ओर जो मुख्य हाइवें हैं बिल्डर बने भूमाफिया उनकी सूरत तेजी से बदसूरत करने पर तुले हैं। संगठित गिरोह की तर्ज पर काम करने वाला सिडिंकेट यह काम तेजी से अंजाम देने पर तुला हुआ है।

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