बेगमपुल समेत शहर के सभी दस चौराहे जिनको गोद लिया गया है उनके आसपास सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों पर बात तक नहीं कर रहे अफसर, अवैध कब्जे हटाए बगैर कैसे होगा चौराहा जाम मुक्त
मेरठ। साहब! चौराहा तो ठीक है उसके दांए बाएं भी देख लो- महानगर के लिए फिलहाल लाइज बीमारी की मानिंद नजर आने वाले जाम से निजात के लिए सिस्टम मसलन पुलिस की ओर से लगातार इलाज या कहें प्रयोगों का सिलसिला जारी है। जाम को लेकर चिंतित हैं इसमें कोई दो राय भी नहीं है। चिंता का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूबे के सीएम योगी से लेकर डीजीपी प्रशांत कुमार, एडीजी डीके ठाकुर, डीआईजी कलानिधि नैथानी और खुद एसएसपी डा. विपिन ताडा की चिंता किसी से छीपी नहीं हैं। एसपी ट्रैफिक राघवेन्द्र कुमार मिश्रा की चिंता और कोशिशों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो चौराहे बेगमपुल व हापुड़ स्टैंड चौराहे को जाम मुक्त किया गया। जाम के लिए बदनाम रहे इन दोनाें चौराहों पर राहत है इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन चौराहों के आसपास के जो हालात है यदि उनको लेकर भी सतह पर कार्रवाई करा दी जाए तो चीजें काफी हद तक ठीक हो जाएंगी।
संयुक्त अभियान की है जरूरत

अभी बात केवल चौराहों की कर लेते हैं। पूरे मेरठ महानगर की बात करना मुनासिब नहीं होगा, क्योंकि यदि जो दस चौराहे चिन्हित किए गए हैं वहां की स्थिति को पुरसाहाल कर दिया जाएगा तो उसका असर पूरे शहर पर नजर आएगा। लेकिन यह भी सही है कि जब तक केवल चौराहों ही नहीं अपितु चौराहों के आसपास के इलाके को सुध नहीं ली जाएगी। मसलन आसपास के इलाकें को अवैध कब्जों से नहीं मुक्त करा लिया जाता तभी कोई भी अभियान शहर को जाम से निजात दिलाने की कोशिशें कारगर साबित नहीं होने वाली हैं। इसलिए जरूरी है कि बेगमपुल और हापुड़ स्टैंड समेत शहर के सभी दस चौराहे जो एसएसपी डा ताडा ने चिन्हित किए हैं, उनके आसपास सरकारी जमीन पर जो भी अवैध कब्जे हैं उनको मुक्त करा लिए जाए।
ये है चौराहाें का हाल

शहर का दिल कहे जाने वाले बेगमपुल चौराहा जिससे पूरा बेगमपुल मार्केट, पीएम शर्मा रोड, आबूलेन मार्केट कनेक्ट होते हैं बेहतर होगा कि उसके आसपास जितने भी अवैध कब्जे हैं उनको हटवा दिया जाए। बेगमपुल चौराहे पर ही जहां पुलिस चौकी बनी हैं उससे सटी जगह सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक कब्जे में रहती है। चंद कदम और वीरबाला पथ पर सड़क के दोनों और सरकारी जगह पर अवैध कब्जे हैं। हापुड स्टैंड चौराहे की बात करें तो वहां भी पुरास हाल नहीं। सुबह छह बजे से रात दस बजे तक वहां कब्जा रहता है। शहर के बाकि जितने भी चौराहे हैं उनके आसपास सटी हुई तमाम सरकारी जगह अवैध कब्जों से आबाद हैं। जब तक ये अवैध कब्जे नहीं हटेंगे तब तक चौराहों को जाम मुक्त करने की कितनी ही कवायदें क्यों नहीं कर ली जाए शहर के चौराहे जाम मुक्त नहीं रहेगे।
इतना आसान नहीं हटाना

चौराहे हो या फिस सड़के हों जाम से निजात तभी मिलेगी जब इनसे कब्जे हटवा दिए जाएंगे। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि जो भी सुबह से शाम तक ठेला, खोमचा या खोखा लगाकर खड़ा होता है वो पुलिस वालाें को बाजार के व्यापार संघ को और इलाके के दबंग को हफ्ता देता है। यह हफ्ता वसूली रूकने की कूबत जो अफसर रखता होगा वही जाम के लिए बदनाम मेरठ को जाम से मुक्त करा सकता है अन्यथा दो चार दिन कवायत चलती है वो पहले भी चलती थी आगे भी चलती रहेगी और अभी भी वही चल रही है, लेकिन ससे कुछ होने वाला नहीं है सिवाय सूर्खियां बटोरने के।
