ऊपर की कमाई है साहब कैसे करें कार्रवाई

ऊपर की कमाई है साहब कैसे करें कार्रवाई
Share

ऊपर की कमाई है साहब कैसे करें कार्रवाई, मेरठ/ आरटीओ सरीखे तमाम अफसर खामोश हैं और शासन स्तर से रोक के बावजूद मेरठ से दिल्ली व दूसरे ऐसे रूट जिन पर सरकारी बसें चलती हैं उन तमाम रूटों पर डग्गाबार बसें बेरोकटोक चल रही हैं। डग्गामार बसों के संचालन से सूबे की योगी सरकार को हर माह करोड़ों के राजस्व का फटका लग रहा है। मेरठ में ही नहीं पड़ौसी जिला बागपत में भी डग्गामार बसों का संचालक जिस प्रकार से अपराधी तत्व किसी गिरोह को संगठित होकर चलाते हैं, मसलन गिरोह में जब के दायित्व बंटे होते हैं, उसी तर्ज पर मेरठ व बागपत में बस माफिया संगठित गिरोह बनाकर डग्गामार बसों का संचालन करा रहे हैं। आरटीओ आॅफिस के अफसर यदि डग्गामार बसों के खिलाफ ईमानदारी से अभियान चलाए और इनके संचालन पर योगी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस नीति की तर्ज पर कार्रवाई करें तो ना केवल सरकारी रूटों से डग्गामार बसें गायब हो जाएंगे, बल्कि इससे सरकारी खजाने को भारी राजस्व की प्राप्ति होगी। लेकिन ऐसा होता हुआ लग नहीं रहा है। दिन निकलते ही पूरे महानगर में डग्गामार बसें सड़क पर निकल आती हैं और तो और सबसे हैरानी भरा खुलासा तो यह है कि रोडवेज की बसों से पहले डग्गामार सरकारी रूटों पर अपने फेरे शुरू कर देती हैं।
तो क्या अवैध संचालक आरटीओ अफसरों के इशारे पर
मेरठ। महानगर में तमाम स्थानों से दिन निकलते ही डग्गामार बसों का संचालन शुरू हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार डग्गामार करीब सत्तर से सौ बसें शहर भर में संचालित की जा रही हैं। इनको लेकर जब जनवाणी की टीम ने तहकीकात की तब कहीं जाकर असली खेल का खुलासा हुआ। इस खेल के असली व माहिर मंझे हुए खिलाड़ी आरटीओ के वो अफसर बताए जा रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी इस प्रकार की डग्गमार बसों को रोकने की है, लेकिन बजाए इन पर कार्रवाई के उनका सारा जोर इन बसों के अवैध संचालन को संरक्षण देने पर है। यहां यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि ये डग्गामार बसें अवैध कैसे हैं। ये जितनी भी बसें माफियाओं व अफसरों की मिलीभगत से संचालित की जा रही हैं, इनमें से ज्यादातर आॅल इंडिया परमिट धारी हैं। इसलिए जब भी इन बसों को लेकर तहकीकात की जाती है तब बताया जाता है कि इनके पास परमिट है, लेकिन यह जानकारी तस्वीर का एक रूख है, दरअसल जिस परमिट की जानकारी देकर आरटीओ अफसर बचकर निकल जाते हैं इन अफसरों की इस चालाकी से पर्दा उठाने का काम भी जनवाणी ने किया है। आॅल इंडिया के जिस परमिट का अधिकारी बार-बार जिक्र करते हैं, लेकिन वो यह नहीं बताते कि आॅल इंडिया का परमिट जिस भी वाहन को जारी किया जाता है, उसके साथ एक शर्त लगी होती है कि जिस रूट पर से सरकारी बसें चलती हैं उन रुटों पर आॅल इंडिया परमिट वाली बसें नहीं चलेंगी, लेकिन ये बसें फिर भी चल रही हैं। ऐसा नहीं कि इससे आॅल इंडिया परमिट जारी करने में अहम भूमिका निभाने वाले अफसरे बेखबर या अंजान होते हैं। आरटीओ के अफसर भले ही कुछ भी दावें करें, लेकिन जानकारों का कहना है कि वास्तविकता यह है कि उनकी नॉलेज में सब कुछ होता है और तो और आरटीओ कार्यालय से चंद कदम की दूरी से ही सुबह करीब सात बजे पहली डग्गामार चलती है। इसी प्रकार से शहर के तमाम इलाकों से डग्गामार फर्राटा भरती हैं। इनमें से बड़ी संख्या मेरठ से वाया गाजियाबाद दिल्ली जाने वाली बसों होती हैं। शहर के मेडिकल, तेजगढ़ी, गढ़ रोड गांधी आश्रम, इंदिरा चौक, गंगा प्लाजा, बेगमपुल, जली कोठी चौराहा, केसरगंज महताब मोड, डीएम कालेज चौराहा, ईदगाह, मेट्रो प्लाजा, शताब्दी नगर व रिठानी तथा परतापुर मोड से सवारियों बैठाते हैं।
फिक्स हैं डग्गमार की सवारियां
मेरठ। डग्गामार बसों की सवारियों की जहां तक बात है तो उनको सरकारी रोडवेज की बसों की तर्ज पर सवारियों का इंतजार नहीं करना पड़ता। उनके लिए सवारियां फिक्स हैं। दरअसल इन बसों में चलने वाला ज्यादातर स्टॉफ गाजियाबाद, दिल्ली नोएडा, गुरूग्राम आदि इलाकों में नौकरी करने वाला है। एक डग्गामार बस के पास औसतन चालिस सवारियां ऐसी फिक्स होती हैं जिनका पेमेंट महीने के हिसाब से आता है। इन चालिस सवारियों के अलावा इन बसों की डेली अपडॉउन करने वाली सवारियां अलग होती हैं। उसने प्रति दिन के हिसाब से किराया वसूला जाता है। सवारियों के इन इन डग्गामार बसों में माल की ढुलाई भी की जाती है। जो माल इनसे ढोया जाता है, वह टैक्स चोरी का होता है।
ऊपर की कमाई का सवाल है ना रखें कार्रवाई की उम्मीद
अब इससे सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि अफसरों की छत्रछाया में चल रहीं डग्गामार बसों से सूबे की योगी सरकार को किसने बडेÞ स्तर पर राजस्व का चूना लगाया जा रहा है। यदि तमाम चीजों का आंकलन कर लिया जाए तो प्रति माह की रकम करोड़ों में बैठती है, लेकिन कुछ होगा इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है क्योंकि हर माह होने वाली ऊपर की कमाई का सवाल है इसलिए बेहतर तो यही होगा कि स्थानीय आरटीओ अफसरों के स्तर से किसी प्रकार की कार्रवाई की उम्मीर पब्लिक ना करें। खुली लूट चल रही है पहले भी चल रही थी आगे भी यूं ही चलती रहेगी। कोई नहीं चाहता कि ऊपर की कमाई पर आंच आए।
रोडवेज की बसें तरस रहीं-डग्गामार फुल होकर चल रहीं
मेरठ। महानगर में रोडवेज की बसों के दो स्टैंड है भैंसाली रोडवेज और शोहराबगेट बस स्टैंड। इन दोनों से सरकारी बसों का संचालन किया जाता है इसके अलावा अनुबंधित बसें भी इन्हीं दोनों रोडवेज बस स्टैंडों से संचालित की जाती हैं। प्रतिदिन सुबह के समय दो नजारे आम हैं, पहला डग्गामार बस का रोडवेज के आगे से सवारियों को भरकर फर्राटे से निकल जाना और नजारा सवारियों के लिए रोडवेज बसोें का तरसना। उसके चालक परिचालक सवारियों के लिए इंतजार करते हैं। कई बार तो रोडवेज बस स्टॉफ के सामने दो चार दस सवारियां लेकर चलने की मजबूरी होती है, क्योंकि उनसे जिन सवारियों का जाना चाहिए वो तो डग्गामार बस का स्टाफ पहले ही उठाकर ले जाता है। रोडवेज की बसें खाली नजर आती हैं जबकि डग्गामार अवैध बसें सवरियों से लदीबदी होती हैं।
संगठित गिरोह के तर्ज पर संचालन
मेरठ में जितनी भी डग्गामार बसें हैं उन सभी का संचालन संगठित गिरोह की तर्ज पर किया जा रहा है। इसका मुखिया आमतौर पर बस का मालिक होता है। इनके अलावा आरटीओ के अफसर प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इनके बाद रोडवेज अफसरों का भी कम कसूर नहीं और रही सही कसर पुलिस के सहयोग से पूरी हो जाती है।

@Back Home

 


Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *