बगैर पक्ष सुने आरएफपी डॉक्यूमेंट पर लिया निर्णय तो करेंगे आयोग पर मौन प्रदर्शन, संघर्ष समिति ने नियामक आयोग अध्यक्ष से वार्ता का मांगा समय
मेरठ। सूबे में बिजली विभाग के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन कर रही विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने नियामक आयोग के अध्यक्ष से वार्ता के लिए समय मांगा है। वहीं दूसरी ओर संघर्ष समिति के संयोजक आलोक त्रिपाठी ने कहा है कि यदि कर्मचारियों का पक्ष सुने बगैर बगैर पक्ष सुने आरएफपी डॉक्यूमेंट पर लिया निर्णय तो करेंगे आयोग पर मौन प्रदर्शन किया जाएगा। आलोक त्रिपाठी ने बताया कि निजीकरण की प्रक्रिया तेज होते देख विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार को बुधवार को एक पत्र भेजकर मांग की है कि वह पॉवर कारपोरेशन द्वारा दिये गए आरएफपी डॉक्यूमेंट पर विद्युत नियामक आयोग द्वारा लगाई गई आपत्तियों पर पावर कॉरपोरेशन का जवाब सुनने के पहले संघर्ष समिति को अपना पक्ष रखने के लिए समय दें। यदि समय न दिया तो बिजली कर्मी विद्युत आयोग के मुख्यालय पर प्रदर्शन करेंगे। पता चला है किआयोग के अध्यक्ष ने ऊर्जा मंत्री, प्रमुख सचिव ऊर्जा और पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष से पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम केआरएफपी डॉक्यूमेंट पर नियामक आयोग द्वारा लगाई गई आपत्तियों के संबंध में अलग से चर्चा की है। तय हो गया है कि पावर कापोर्रेशन प्रबंधन द्वारा आपत्तियों पर दिए जाने वाले जवाब पर विद्युत नियामक आयोग ने अपनी सहमति दे दी है, जिसके बाद निजीकरण का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा। यदि यह सही है तो यह बहुत ही गंभीर बात है कि सरकार, प्रबंधन और विद्युत नियामक आयोग के बीच निजीकरण को लेकर मिलीभगत हो गई है। एक लाख करोड रुपए से अधिक की पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के दाम पूर्व निर्धारित निजी घरानों के हाथ बेचने की साजिश है। बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़े स्टेकहोल्डर बिजली के उपभोक्ता और बिजली के कर्मचारी हैं। पूर्वांचल में लगभग 6 हजर संविदा कर्मियों और 17 हजार नियमित कर्मचारियों की नौकरी समाप्त होने जा रही है। हजारों की संख्या में बिजली कर्मियों की पदावनती होने जा रही है। निजीकरण के दुष्प्रभाव से बिजली कर्मचारियों में भारी चिंता और गुस्सा व्याप्त है।