अवैध निर्माण पर कार्रवाई का विरोध और कार्रवाई में देरी करने वाले अफसर भी अवमानना के दोषी
मेरठ/ सेंट्रल मार्केट हो या फिर कोई अन्य अवैध निर्माण सुप्रीमकोर्ट की सख्ती में कोई कमी नहीं। देश की सर्वोच्च अदालत ने बार-बार कहा है कि न्यायपालिका को अवैध निर्माण के खिलाफ सख्ती से काम करना चाहिए और अदालतों को ऐसे मामलों से निपटने में बहुत सख्त होना चाहिए और अवैध या अनधिकृत संरचनाओं को नियमित करने से मना करना चाहिए। दरअसल सुप्रीमकोर्ट कोलकाता में एक अवैध इमारत को नियमित करने की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई कर रहा था, हालांकि याचिका को को खारिज करते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि जिस व्यक्ति को कानून का कोई सम्मान नहीं है, उसे दो मंजिलों का अनधिकृत निर्माण करने के बाद नियमितीकरण के लिए प्रार्थना करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। शीर्ष अदालत के एक हालिया फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, हमने खुद को बहुत स्पष्ट रूप से स्पष्ट कर दिया है कि प्रत्येक निर्माण को नियमों और विनियमों का कड़ाई से पालन करते हुए और ईमानदारी से बनाया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है, यदि कोई उल्लंघन न्यायालयों के ध्यान में लाया जाता है, तो उससे कठोरता से निपटा जाना चाहिए तथा अनधिकृत निर्माण के दोषी व्यक्ति के प्रति कोई भी नरमी या दया दिखाना अनुचित सहानुभूति दर्शाने के समान होगा।
अफसर भी अवमानना के दायरे में
सेंट्रल मार्केट को लेकर दायर की गई याचिकाओं की अंतिम सुनवाई के दौरान एक माह का समय दिए जाने की मांग की याचिका पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने ध्वस्तीकरण के करीब दस साल पहले आदेश दिए। उसके बाद यह अदालत तीन माह का समय दे चुकी है। फिर एक माह का समय मांगा जाने क्या अर्थ निकाला जाए। अपने आदेश में सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में किसी भी प्रकार की बाधा कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। इसके अलावा यदि कार्रवाई में विलंब होता है भले ही किसी भी कारण से क्यों न हो उसको भी कोर्ट की अवमानना की रौशनी में देखा जाएगा।
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