टिकट ही नहीं टीम भी जरूरी

अभी तो चुनाव खड़ा करने का संकट
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टिकट ही नहीं टीम भी जरूरी, मेरठ नगर निगम के महापौर के चुनाव बनने का सपना पाले बैठे दावेदारों यह समझ लें कि केवल टिकट भर जीत का गारंटी नहीं टिकट के साथ-साथ टीम भी जरूरी है। जिसके पास टीम होगी, वही इस बार चुनाव में सिकंदर कह लाएगा। टीम भी ऐसी होनी चाहिए जिसकी पकड़ केवल एक वर्ग या जाति विशेष नहीं बल्कि आल राउंडर हो। यह बात सबसे ज्यादा याद रखने की जरूरत भाजपाइ दावेदारों काे है। संघ की सिफारिश से केवल टिकट मिलेगा, लेकिन यदि चुनाव जीतना है तो उसके लिए टीम ऐसी चाहिए जिसकी दुआ सलाम मुस्लिमों और गैर अगड़े हिन्दुओं में अधिक हो। यह भी कटू सत्य है कि इन दिनों भाजपा के नाम पर गैर अगड़े हिन्दुओं का स्वाद कैसेला हो जाता है अब यदि भगवा पार्टी में दावेदारों की बात कर ली जाए तो समय सिंह सैनी, डॉ. जेवी चिकारा, उमाशंकर पाल और विनोद चौधरी, डीएन कॉलेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष अंकित चौधरी,  राहुल चौधरी, पूर्व पार्षद रविंद्र तेवतिया और सचिन सिरोही के नाम लिए जा रहे हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट संदीप पहल का नाम भी चर्चाओं में है। इनके अलावा संघ के कोटे से हरिकांत अहूलवालिया भी गिनती में शामिल हैं, लेकिन बड़ा सवाल कि इनमें से ऐसे कितने हैं, जो जिनके नाम पर मुसलमानों के वोट मिल जाएंगे और गैर अगड़े हिन्दु भी भगवा थामने को राजी हो जाएंगे। क्योंकि सपा खेमे से जिस प्रकार से सीमा प्रधान के नाम की खासी चर्चा है उसके चलते इतना तो यह है कि इस बार भी भगवा खेमे के लिए यह चुनाव आसान नहीं है। इसलिए नाम फाइनल करने से पहले नफा नुकसान तय करना जरूरी है। याद रहे कि सीमा एंड टीम अपनी ताकत विधानसभा में सरधना में दिखा चुकी है। भाजपा के दिग्गज व फायर ब्रांड विधायक संगीत सोम के हिस्से में इसी टीम के चलते शिकस्त खानी पड़ी थी। हां इतना जरूर है कि यदि बसपा ने मुसलमान व पिछड़ों के वोट कटवा को मैदान में उतार दिया तो शायद बिल्ली के भाग से छींका टूट जाए, मसलम भगवा खेमा इस बार सीट निकाल जाए। जहां तक चंद्रशेखर आजाद रावण की पार्टी की बात है तो वो यदि चुनाव में उतरती है तो सपा रालोद गठबंधन व बसपा के वोट काटने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगी।  एक बात और भी यहां याद रखना जरूरी है चुनावी मौसम में अक्सर निष्ठावनों की निष्ठा रातों रात चौराहों पर बिकती देखी गयी है। इसलिए चुनावी मौसम में यदि किसी दावेदार की निष्ठा रातों रात चौराहे पर नीलाम हो जाए तो इसको लेकर चौंकने जैसी जरूरत नहीं है।  लेकिन जहां तक महापौर के चुनाव के विश्लेषण का सवाल है तो इस बार भी खुद को राष्ट्रीय पार्टी कहने वाले कांग्रेसियों से किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं जा सकती। कांग्रेस के नाम पर जो कुछ भी चुनाव बाद नगर निगम में नजर आता भी है तो वह व्यक्तिगत प्रदर्शन के बूते अधिक होगा। ऐसे नामों में रंजन शर्मा सरीखे शुमार किए जा सकते हैं। वैसे यदि भाजपा की बात की जाए तो संघ की सूची में केवल दो नाम है उनमें एक डाक्टर और दूसरे पूर्व महापौर बताए जा रहे हैं। यूं भाई चुनावी मौसम हैं सो ऐसे में तमाम दल शोशेबाजी में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं भले ही पैरों तले से जमीन खिसक चुकी हो।

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