तो क्या मौत के चैंबर को भी…

तो क्या मौत के चैंबर को भी...
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तो क्या मौत के चैंबर को भी…, मेरठ विकास प्राधिकरण की मेरठ महायोजना 2031 का खाका तैयार कर लिया गया है। बस शासन स्तर पर कुछ मामलों की मंजूरी अटकी है बाकि सब कुछ फाइनल है। दरअसल महयोजना में मवाना हस्तिनापुर के कुछ गांव भी शामिल किए गए हैं। उसका एक ड्राफ्ट बनाकर शासन से मंजूरी के लिए भेजने में देरी हो गयी थी, जिसकी वजह से फाइनल टच नहीं दिया जा सका। जहां तक महायोजना 2031 का सवाल है तो अफसरों की मानें तो उसका जमीन पर उतरना तय है। वैसे महायोजना के जमीन पर उतरने को लेकर कोई शक सरीखी बात नहीं, लेकिन महायोजन को लेकर जो खाका खींचा गया है, उसमें एक ही सवाल बार-बार कोंधता है कि जो मेरठ विकास प्राधिकरण के कुछ अफसरों की बदौलत मौत के चेंबर की तर्ज पर जो बड़े-बडे. अवैध कांप्लैक्स मानकों के विपरीत बना दिए गए हैं, क्या महयोजना 2031 में ऐसे मौत के चेंबरों की तर्ज पर बनाए गए अवैध कांप्लैक्स को भी जगह मिलेगी। हमारी मंशा महायोजना 2031 पर किसी प्रकार के सवाल खड़े करने की कतई न समझी जाए, यहां तो सिर्फ इतना सा सवाल है कि तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर जो भारी भरकम अवैध कांप्लैक्स बनाए जा रहे हैं मेरठ महायोजना 2031 में उन्हें कैसे जगह दी जाएगी। उसका क्या स्वरूप होगा। क्योंकि जहां तक महायोजना जैसी सरकारी प्लानों की बात है तो महायोजनाएं इसलिए बनाए जाती है ताकि किसी भी शहर को व्यवस्थित ढंग से बसाया जा सके, उसमें लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएं मौजूद हों देश के बाकि हाईटेक शहरों की तरह महायोजना वाला शहर भी विकास के पंख लगाकर परवाज भर सके। लेकिन इतना जरूर है कि महायोजना में अवैध कालोनियों या अवैध कांप्लैक्स का संभवत कोई कांस्पेट नहीं होता। मेरठ महायोजना 2031 का खाका खींचने वाले एमडीए व दूसरे विभागों के अफसरा संभवत महायोजना को लेकर अपनी व्यवस्तता के चलते मेरठ में अवैध रूप से मानकों के एकदम विपरीत होकर बना लिए गए अवैध कांप्लैकसों व कालोनियों से बेखबर ही रहे। इसीलिए यह सवाल दिमांग मे कौंधा कि क्या शहर की घनी आबादी के बीच बेतरकीब तरीके से बनाए गए अवैध कांप्लैक्स जिन्हें मौत के चेंबर कहना गैर मुनासिब नहीं होगा, को कैसे और किस नाम से जगह दी जाएगी।

लालकुर्ती पैठ एरिया से सटे आदर्श नगर के समीप ही मौत के चेंबर सरीखा अवैध कांप्लैक्स बना डाला गया है। मौत का चेंबर इसलिए कहा जा रहा है कि जिस जगह यह अवैध कांप्लैक्स बनाया गया है वहां साप्ताहिक पैठ जो मंगलवार व शनिनवार को लगती है उससे भी इतर इस कदर भीड़ रहती है कि कई बार वहां से पैदल निकलना भी दुश्वार होता है। इस इलाके में बनाए गए जिस अवैध कांप्लैक्स की बात की जा रही है वहां दुकानें तो बना दी गयी हैं, लेकिन इन दुकानों के मालिक, स्टाफ और दुकानों में आने वाले ग्राहकों के वाहनों के लिए पार्किंग कहां होगी यह कुछ साफ नहीं। एमडीए के मानकों की मानें तो जहां भी कांप्लैक्स बनाया जाता है, वहां सबसे पहला काम फायर सेफ्टी का किया जाता है ताकि आग सरीखे हादसों से लोगों को सुरक्षा दी जा सके, लेकिन फायर सेफ्टी तो दूर की बात रही जब इस कांप्लैक्स में वाहनों के लिए पार्किंग स्थल तक नहीं छोड़ा गया है तो एमडीए के तय बाकि मानकों की बात करना ही बेमाने होगा। सबसे महत्वपूर्ण आग या भगदड़ हादसे की स्थिति में कितनी बड़ जन हानि की आशंका है यह सोचकर ही रूह कांप जाती है। इसलिए मेरठ महानगर के इस प्रकार के अवैध कांप्लैक्सों को मौत के चेंबर की संज्ञा दिया जाना मुनासिब ही होगा। सबसे ज्यादा आशंका आग सरीखे हादसों को लेकर है। ऐसे हादसों की स्थिति में लोग खुद को कैसे बचा पाएंगे यह समझ से परे है।

जिस कांप्लैक्स की यहां बात की जा रही है वो कोई एक दिन में नहीं बन गया। एक लंबा अरसा उसकी तामीर में लगा है। एमडीए प्रशासन के आला अधिकारी अब भले ही कुछ भी सफाई देते रहें, लेकिन यह बात किसी भी तरह गले नहीं उतरती कि मानकों के विपरीत इतना बड़ा कांप्लैक्स बना दिया जाता है और एमडीए के स्टाफ को इसकी भनक तक नहीं लगी। जिसे मौत का चेंबर कहा जा रहा है वो कांप्लैक्स बन भी गया और उसकी दुकानें भी बिक गयी हैं। हो सकता है कि इसकी दुकानें बनने के बाद एमडीए के अफसर अपनी गर्दन बचाने के लिए इस प्रकार के मामलों को लेकर जो कंपाउंडिंग का खेल खेला जाता है वो भी खेल लें, लेकिन यदि कोई हादसा होता है और जनहानि होती है तो उसका जिम्मेदार अवैध कांपलैक्स बनाने वाला होगा या अवैध कांप्लैक्सों को बनने से रोकने के लिए जिन अफसरों की जिम्मेदारी है, वो होंगे।

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